कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती देने में जुटी सोनिया गांधी। राहुल के नेतृत्व में पद-यात्रा तो अध्यक्ष पद का कमान मल्लिकार्जुन खड़गे को।

1
  कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूती देने में जुटी सोनिया गांधी। राहुल के नेतृत्व में पद-यात्रा तो अध्यक्ष पद का कमान मल्लिकार्जुन खड़गे को।

- राजेश कुमार 

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस पार्टी (Congress) के नाम से चर्चित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अध्यक्ष पद का चुनाव जीता और 26 अक्टूबर को पार्टी की कमान संभाली। इस मौके पर पार्टी की नेता सोनिया गांधी ने कहा कि आप सभी ने इतने सालों तक प्यार और सम्मान दिया है, यह मेरे लिए गौरव की बात है। इसका एहसास मुझे अपने जीवन की आखिरी सांस तक रहेगा। लेकिन ये सम्मान एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी थी। मुझसे अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार जितना बन पड़ा उतना किया। मैं सबको दिल से धन्यवाद देती हूं कि आपने अपना सहयोग और समर्थन मुझे दिया। अध्यक्ष पद के चुनाव में सोनिया-राहुल ने किसी भी प्रकार का हस्ताक्षेप नहीं किया। दो उम्मीदवार थे - मल्लिकार्जुन खड़गे और शशि थरूर।

 

दरअसल, पिछले कई सालों से कांग्रेस पार्टी लगातार  चुनावी हार के साथ साथ कमजोर भी होती गई। इसके लिये नाराज नेताओं ने सोनिया-राहुल को जिम्मेदार ठहराते रहे। अध्यक्ष पद पर बने रहने के लिये गांधी परिवार के सदस्यों को विपक्ष द्धारा लगातार निशाना बनाया जा रहा था। पार्टी के अंदर भी एक बड़े गुट के निशाने पर थे सोनिया-राहुल।  राहुल गांधी ने भी साफ कह दिया था कि वे इस बार अध्यक्ष नहीं बनेंगे।  भारी दबाव के बावजूद वे अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़े। सोनिया-राहुल के नजदीकी व राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नाम की चर्चा थी कि वे अध्यक्ष पद के उम्मीदवार होंगे। लेकिन एक राजनीतिक घटनाचक्र के बाद वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष पद के लिये नामांकन भरा और शशि थरूर को बहुत बड़े अंतर से हराकर पार्टी अध्यक्ष बने। अब हाल-फिलहाल में कांग्रेस पार्टी में घटित राजनीतिक चक्र को समझने की कोशिश करते हैं । 

1. आखिर अशोक गहलोत की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष पद का उम्मीदवार क्यों बनाया गया?

2. राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की  भारत जोड़ो यात्रा का महत्व?

 

इन सवालों के उत्तर जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि कांग्रेस पार्टी इतनी कमजोर कैसे हो गई ? दरअसल कांग्रेस पार्टी को ब्राह्मण नेतृत्व में अगड़ों की पार्टी माना जाता रहा। यह एक राष्ट्रीय पार्टी है। इनसे जुड़े अधिकांश क्षेत्रीय पार्टी के छत्रप पिछड़े या दलित या आदिवासी समुदाय से हैं। अघोषित रूप से यह मान लिया गया था कि केंद्र कांग्रेस का और जिन राज्यों में क्षेत्रीय दल प्रभावी हैं वहां का नेतृत्व उनका। लेकिन साल 2014 के लोक सभा चुनाव में एक बड़ा बदलाव आ गया। बीजेपी में भारी हलचल थी। पार्टी के अंदर भारी विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी पार्टी नेता बने।  बीजेपी का अपना एक स्थायी वोट बैंक है। लेकिन सिर्फ उस बल पर चुनाव जीतना और केंद्र में अपने दम पर सरकार बनाना असंभव था। चुनावी माहौल में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने नरेंद्र मोदी पर अनावश्यक जातीय टिप्पणी कर दी। फिर क्या था नरेंद्र मोदी ने अंतिम ओवर के 6 गेंदों में 6 छक्का मार कर  मैच जीत लिया और बीते सारे रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। जैसे हीं कांग्रेस नेताओं द्धारा जातीय टिप्पणी की गई वैसे हीं नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे पिछड़ी जाति के हैं इसलिये उन्हें नीच कहा जा रहा है। मानो वे कांग्रेस की ओर से इस तरह के बयान का इंतजार हीं कर रहे थे। फिर क्या था गैर बीजेपी दलों से जुड़े पिछड़े वर्ग के लोगों ने OBC नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी को वोट कर गये। परिणाम सामने है। कांग्रेस पार्टी में इस बात को सिर्फ राहुल गांधी हीं समझ पाये। इसलिये उन्होंने एक नई रणनीति पर कार्य करना शुरू कर दिया। 

 

आखिर अशोक गहलोत की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे :

अशोक गहलोत पिछड़ी जाति से हैं और मल्लिकार्जुन खड़गे दलित समुदाय से। राजस्थान की राजनीति को लेकर अशोक गहलोत अपने को अध्यक्ष पद के चुनाव से दूर कर लेते हैं। इसी बीच पार्टी अध्यक्ष के चुनाव के लिये खड़गे जी का नाम सामने आता है।  इनका नाम सामने आते हीं पार्टी के वरिष्ठ नेताओं दिग्गविजय सिंह और प्रमोद तिवारी समेत तमाम लीडर उनका स्वागत करते हैं। दिग्गविजय सिंह खुद अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने वाले थे लेकिन खड़गे जी का नाम आते हीं वे अपना नाम वापस लेते हैं और उन्हें समर्थन देते हैं। दरअसल, राहुल गांधी इस बात को समझ चुके कि राजनीति में जातीय गणित का क्या महत्व है?  कांग्रेस पार्टी का आधार वोट बैंक रहा है ब्राह्मण नेतृत्व में अगड़ी जातियां, दलित-आदिवासी और मुस्लिम समाज। देश की आबादी का लगभग 57% ओबीसी समाज को कांग्रेस पार्टी ने मुख्य राजनीति का हिस्सा नहीं बनाया था। सोनिया गांधी को गुमराह किया जाता रहा ओबीसी मामले में। इसी बात को समझ राहुल गांधी ने पिछड़े वर्ग को कांग्रेस पार्टी में महत्व देना शुरू किया। परिणाम भी अच्छे आये। प्रधानमंत्री मोदी के लहर के बावजूद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तिसगढ में सरकार बनाने में सफल रहे। ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का राजनीतिक लाभ दिखने लगा। इससे पहले बीते गुजराज विधान सभा चुनाव में सर्वे जहां कांग्रेस सफाया की बात करती थी वहां कांग्रेस पार्टी मजबूती से उभरी। पिछड़ों को महत्वपूर्ण स्थान देते हुए कांग्रेस पार्टी लीडर राहुल गांधी ने अपने पारंपरिक वोटों का भी ध्यान रखा। दलित समाज से पार्टी अध्यक्ष बनाने का फैसला किया। इससे जहां दलित समाज के वोट बैंक को बनाये रखने में मदद मिलेगी वहीं बीजेपी के लिये कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन पर सीधे कटाक्ष करना आसान नहीं होगा।

 

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की  भारत जोड़ो यात्रा का महत्व :

राहुल गांधी के नेतृत्व में जारी में जारी भारत-जोड़ो पद यात्रा कांग्रेस पार्टी के लिये संजीवनी का कार्य करेगी। इसका सबसे बड़ा लाभ यही होगा कि अब कोई कांग्रेस लीडर से बगावत करने से पहले कई बार सोचेगा। दूसरा महत्वपूर्ण लाभ यह हुआ कि राहुल गांधी एक राष्ट्रीय लीडर के रूप में मजबूती से स्थापित हो गये। इस पद यात्रा को जो सकारात्मक समर्थन मिल रहा है वह ऐतिहासिक है। शायद यह यात्रा पहले शुरू हो गई होती तो जिन नेताओं ने विद्रोह किया वे विद्रोह करने का साहस नहीं जुटा पाते। सिर्फ पार्टी के अंदर हीं नहीं बल्कि समान विचार धारा वाले जो क्षेत्रीय शक्ति हैं और राहुल गांधी को नेता मानने से इंकार करते रहे, वे भी नजरअंदाज नहीं कर पायेंगे। तीसरा देश को एक विकल्प मिल गया है जो कि लोकतंत्र के लिये बहुत जरूरी था। 

बहरहाल, इस समय गांधी-परिवार पार्टी की संरक्षक की भूमिका में रहेगी। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी कांग्रेस पार्टी की मजबूत स्तंभ हैं। आज की तारीख में इनके बिना कांग्रेस पार्टी की कल्पना नहीं की जी सकती। लेकिन यह भी सत्य है कि पार्टी को मजबूती से खड़ा करने और चुनावी जीत हासिल करने के लिये नई रणनीति की जरूरत महसूस की जा रही थी, इसके लिये और पिलर बनाये जाने हैं, उन्हीं में से एक हैं वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे। राहुल गांधी ने अगड़े, दलित-आदिवासी, मुस्लिम समुदाय को महत्व देते हुए जिस प्रकार से पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा से जोड़ा है वह एक मजबूत समीकरण प्रतीत होता है। इसका लाभ आने वाले लोकसभा चुनाव में दिखेगा। बीजेपी भी इसके तोड़ में जुटी है। बताया जाता है कि बीजेपी पिछड़े वर्ग(OBC)के आरक्षण पर कार्य कर रही है जिसमें आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से अधिक हो और इसे अनुसूची 9 के अंतर्गत लाने की तैयारी में है ताकि आरक्षण को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सके। शायद कांग्रेस पार्टी भी इस बारे में विचार कर रही हो।