गर्भपात और वैवाहिक रेप पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला।

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गर्भपात और वैवाहिक रेप पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फ़ैसला।

टाइम्स खबर डेस्क  timeskhabar.com

अबॉर्शन (गर्भपात) को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। सुप्रीम अदालत  ने कहा  'शादीशुदा महिलाएं भी रेप पीड़िताओं की श्रेणी में आ सकती हैं। रेप का मतलब है बिना सहमति संबंध बनाना, भले ही ये जबरन संबंध शादीशुदा रिश्ते में बने। महिला अपने पति के जबरन बनाए संबंध की वजह से प्रेग्नेंट हो सकती है। अगर ऐसे जबरन संबंधों की वजह से पत्नी प्रेग्नेंट होती हैं, तो उसे अबॉर्शन का अधिकार है।' ये फैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने सुनाया। इस बेंच के दो अन्य सदस्य हैं जस्टिस ए.एस बोपन्ना और जे.बी. परिदावाला। अदालत ने ये फैसला एक अविवाहित महिला को अबॉर्शन की इजाजत देते हुए सुनाया । सुप्रीम अदालत ने कहा कि  इससे हटकर मैरिटल रेप की कुछ और व्याख्या करने का मतलब महिला को उस पार्टनर के बच्चे को जन्म देने और पालने के लिए मजबूर करना होगा, जो उसे मानसिक और शारीरिक पीड़ा पहुंचाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  आइये जानते हैं फैसले से जुड़े तथ्यों के बारे में :

 

- पति के जबरन संबंध से पत्नी के प्रेग्नेंट होने के मामल में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल यानी MTP के रूल 3B(a) के तहत रेप माना जाएगा। MTP एक्ट के रूल 3B(a) में महिलाओं की उन कैटिगरी का जिक्र है जो 20-24 हफ्तों की प्रेग्नेंसी तक अबॉर्शन करवा सकती हैं।

- सिर्फ शादीशुदा महिलाएं हीं नहीं बल्कि अविवाहित महिलाओं को भी 20-24 हफ्तों की प्रेग्नेंसी तक अबॉर्शन कराने अधिकार है।

- महिला को MTP एक्ट के तहत अबॉर्शन कराने के लिए रेप या यौन उत्पीड़न को साबित करने की जरूरत नहीं है।

- सेक्स और जेंडर से संबंधित हिंसा के लिए केवल अजनबी जिम्मेदार हैं, ऐसा मानना बेहद दुखद है। परिवार में लंबे समय से महिलाएं ऐसी हिंसा झेलती रही हैं।

 - इंटिमेट पार्टनर की हिंसा एक असलियत है। अगर हम नहीं मानते हैं, तो ये हमारी लापरवाही होगी। ये रेप का रूप ले सकता है।

- भले ही IPCके सेक्शन 375 के अपवाद 2 के तहत मैरिटल रेप अपराध नहीं है, इसके बावजूद, MTP एक्ट के रूल 3B(a)के तहत पत्नी के साथ जबरन संबंध बनाना रेप माना जाएगा।

 

दैनिक भास्कर - सरकार का कहना है- मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से शादी को खतरा

सरकार मैरिटल रेप को लेकर कई बार कह चुकी है कि इसे क्राइम घोषित करने से विवाह संस्था को खतरा होगा और यह प्राइवेसी के अधिकार को भी प्रभावित करेगा। यह पतियों को परेशान करने का एक टूल बन सकता है। सरकार मैरिटल रेप को अपराध न घोषित करने के पीछे IPC की धारा 498A और घरेलू हिंसा जैसे कानूनों के दुरुपयोग बढ़ने का भी तर्क देती है। IPC की धारा 498A विवाहित महिला के उत्पीड़न पर उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ लगती है। 2015 में गृहराज्य मंत्री हरिभाई चौधरी ने राज्यसभा में कहा था कि मैरिटल रेप की अवधारणा भारतीय समाज के हिसाब से ठीक नहीं है, क्योंकि यहां शिक्षा,आर्थिक हालात, सामाजिक रीति रिवाज और धार्मिक मसले भी जुड़े होते हैं। 2017 में, सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में IPC की धारा 375 के तहत मैरिटल रेप को अपराध न मानने के कानूनी अपवाद को हटाने का विरोध किया था। फरवरी 2022 में केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप पर सुनवाई के दौरान कहा कि केवल इसलिए कि अन्य देशों ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया है, भारत को भी ऐसा करने की जरूरत नहीं है। केंद्र ने कहा कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने से पहले इस मुद्दे पर सावधानी से विचार किया जाना चाहिए। सरकार ने इसी साल संसद में मैरिटेल रेप के मुद्दे पर कहा कि हर शादीशुदा रिश्ते को हिंसक और हर पुरुष को रेपिस्ट मानना सही नहीं होगा।

 

बीबीसी - अबॉर्शन या गर्भावस्था को खत्म करना... कई देशों में ये हमेशा वाद-विवाद का विषय रहा है. हाल ही में, अमेरिका में गर्भपात के ख़िलाफ़ वहां के सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आया था जिसे लेकर अमेरिका में विरोध प्रदर्शन हुए और दुनिया भर में चर्चा. अमेरिका में आए फ़ैसले को रूढ़िवादी और महिलाओं के अधिकार के ख़िलाफ़ बताया गया लेकिन भारत में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर ना सिर्फ़ स्पष्टता दी है बल्कि सुरक्षित गर्भपात के अधिकार के दायरे को भी बढ़ाया है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी महिलाओं को सुरक्षित और क़ानूनी गर्भपात का अधिकार देते हुए कहा है कि अविवाहित महिलाएं भी 24 हफ़्ते तक की गर्भावस्था को ख़त्म करवा सकती हैं. कोर्ट ने ये भी कहा कि वैवाहिक जीवन में पति के ज़बरन शारीरिक संबंध बनाने की वजह से हुई गर्भावस्था भी एमटीपी एक्ट यानी मेडिकल टर्मिनेशन प्रेग्नेंसी क़ानून के दायरे में आती है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच एक 25 साल की अविवाहित महिला की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें 24 हफ़्ते की प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की मांग की गई थी.

क्या है एमटीपी क़ानून?

भारत में गर्भपात को लेकर क्या है कानून ? 1971 का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, गर्भवती महिला को 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने की इजाजत देता है। 2021 में हुए बदलाव के बाद ये सीमा कुछ विशेष परिस्थितियों में 24 हफ्ते कर दी गई। हालांकि, ऐसा बिना डॉक्टर की सलाह के नहीं किया जा सकता है।