मजबूत व स्वस्थ लोकतंत्र के लिये प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू को साधुवाद : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार।

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मजबूत व स्वस्थ लोकतंत्र के लिये प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू को साधुवाद : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार।

हम सभी जानते हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश। इस पर हर देशवासियों को गर्व है। इसका मूल श्रेय जाता है महात्मा गांधी, सरदार पटेल और पंडित जवाहर लाल नेहरू को। ये हीं वे त्रिमूर्ति थे जिन्होंने एक लोकतांत्रिक देश की बुनियाद रखी और उसे मजबूत बनाया। ये चाहते तो देश का स्वरूप कुछ और भी हो सकता था।  तानाशाही को भी अपना सकते थे।  हो सकता था कि देश को एक नये दौर से गुजरना पड़ता, लेकिन भारत लोकतंत्र के साथ आगे बढा। वहीं भारत से अलग होकर एक नया देश बना पाकिस्तान। जहां ईमानदारी और स्वस्थ वैचारिकता के अभाव में पाकिस्तान प्राचीन काल की ओर अग्रसर है, वहीं भारत तमाम कठिनाइयों के बावजूद चांद और मंगल ग्रह तक अपनी पहुंच बना चुका है। भारत अपने विज्ञान के दम पर कोरोना जैसे महामारी को भी नियंत्रित करने में सफल रहा। आजाद भारत की यह सफलता कोई एक-दो दिनों की नहीं है बल्कि आजादी के बाद विज्ञान के क्षेत्र में लगातार नई ऊंचाईयों को छूने की कोशिश करते रहने का सकारात्मक परिणाम है। विज्ञान को इस ऊंचाई तक पहुंचाने में प्रधानमंत्री नेहरू से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम प्रधानमंत्रियों का योगदान है लेकिन  प्रधानमंत्री नेहरू का योगदान अनमोल है। क्योंकि जिस  समय नेहरू ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेवारी संभाली थी वह दौर भयावह था। देश और देशवासी निर्धन थे। 

देश की स्थिति आज जैसी नहीं थी। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तब चारो ओर से संकट के बादल भारत को घेरे हुए था।  आजादी की मुस्कान थी हर भारतीयों के चेहरों पर, लेकिन भारी दुखों और पीड़ा के साथ। इतनी भयावह स्थिति थी जिसकी कल्पना करना भी आसान नहीं है। अंग्रेजों ने सब कुछ तबाह कर दिया था। देश को धार्मिक और जातीय स्तर पर एक दूसरे के खिलाफ कर दिया। 1857 के विद्रोह को हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिये भी जाना जाता है। इसके बाद से हीं अंग्रेजों ने दोनों समुदायों के बीच विवाद पैदा करने की शुरूआत की और अपना मकसद पूरा करने में  सफल रहे। दो देश बना - भारत और पाकिस्तान। हिंदू और मुस्लिम के बीच हुए सांप्रदायिक दंगों में दोनों हीं ओर से बड़ी संख्या में लोग मारे गये। हर-कोना खून से लहूलुहान था। आजादी का यह उल्लास जिसे असीम और अबाध होना चाहिये था, दुख और उदासी से भरा हुआ था। चकनाचूर हो चुका था भारत की एकता सपना। 

 

जर्जर हो चुकी थी कृषि व्यवस्था अंग्रेजी कार्यकाल में :

आर्थिक मोर्चे पर भी अंग्रेजों ने भारत को कंगाली और बदहाली की स्थिति तक पहुंचा दिया था। जर्जर अर्थव्यवस्था थी। गैरबराबरी कानून को लाद कर भारतीय व्यापारियों को घूटने पर बैठने के लिये मजबूर कर दिया गया। लगान भरते भरते व्यापारियों,  किसानों और खेतीहर श्रमिकों समेत तमाम भारतीयों के कमर टूट चुके थे। भारतीय अर्थव्यवस्था के परंपरागत ढांचे को पूरी तरह छिन्न-भिन्न कर दिया गया था। वहीं यूरोप में हुई औद्योगिक क्रांति और आधुनिक यंत्रो के दम पर अंग्रेज भारतीय संसाधनों का दोहन करते रहे। अंग्रेज सरकार, भू-स्वामी और महाजन के तिहरे बोझ से किसानों को कुचल दिया गया। इन तीनों हीं द्धारा अपने-अपने हिस्से ले लेने के बाद इतना नहीं बचता था कि खेतिहर और उसका परिवार निर्वाह कर सके।  साल 1943 में सिर्फ बंगाल में अकाल से 30 लाख से अधिक लोग भूख से मर गए। लगान की वसूली कितनी क्रूरता से की जाती थी इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि आजादी के बाद 1950-51 में जब हिसाब लगाया कि तब भू-लगान और महाजन का ब्याज लगभग 14 अरब रूपये था यानी उस साल कुल उत्पादन का लगभग एक तिहाई। इस व्यवस्था में सुधार करने के लिये प्रधानमंत्री नेहरूको कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कांग्रेस में भी दो वर्ग थे एक प्रगतिशील विचारों का अनुसरण करने वाला, पंडित नेहरू इसी वर्ग का नेतृत्व कर रहे थे और दूसरा वर्ग अनुदारवादी था यानी प्रगतिशील विचारों का विरोध करने वाला, इसमें पूंजीवादी और बड़े बड़े जमींदार सम्मिलित थे।

 

गांधी-पटेल के बाद नेहरू अकेले पड़ गये :      

देश सिर्फ आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्रों में हीं बेहद कमजोर नहीं था बल्कि विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र समेत तमाम क्षेत्रों में भी बहुत पीछे था। विदेशी मदद की जरूरत थी। पूरी दुनिया दो भागों में विभाजित होने की वजह से यह काम आसान भी नहीं था। एक राजा के सामने खेतीहर मजदूरों की जो हैसियत होती है उसी हैसियत के आसपास विश्व के पूंजीवादी देशों के सामने हम थे। वे भारतीय को हीन समझते थे। गांवो में बसने वाले गरीब भारतीयों को छोड़े हीं दे। जो धनी भारतीय थे उनमें से भी बहुत कम हीं लोग पढे-लिखे होते थे। उनमें वैज्ञानिक सोच की भारी कमी थी। देश में भूखमरी जैसी स्थिति थी। ऐसे में प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू को देश का कमान मिला था। नेहरू जी को पहला झटका आजादी के लगभग साढे पांच महीने में ही लगा जब उनके राजनीतिक संरक्षक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या ( 30 जनवरी, 1948) कर दी गई। दूसरा झटका आजादी के तीन साल चार महीने बाद 15 दिसंबर 1950 को लगा जब प्रथम उप-प्रधानमंत्री व गृहमंत्री सरदार पटेल का निधन हो गया। दोनों ही महान हस्तियों ने अपना बहुत बड़ा कार्य कर चुके थे। गांधी जी के नेतृत्व में देश को आजादी मिली और सरदार पटेल के नेतृत्व में पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया गया। देश से अलग रहने वाले सभी राजाओं और नवाबों को उनके सामने सरेंडर करना पड़ा। आज जो पूरे देश का स्वरूप है इसका पूरा श्रेय सरदार पटेल को जाता है। इसलिये उन्हें भारत का विस्मार्क व लौह पुरूष कहा जाता है। लेकिन आजादी के तीन सवा तीन वर्षों बाद हीं बड़ी चुनौतियों का सामना पंडित नेहरू को अकेले हीं करना पड़ा। वे मजबूत ब्रिज बने गुलाम भारत से लेकर आजाद भारते के विकास में। 

पंचवर्षीय योजना : 

ऐसे में पंडित नेहरू के नेतृत्व में देश के विकास के लिये पंचवर्षीय योजना ( अब इसकी जगह नीति आयोग अर्थात नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया ने ले लिया है साल 2015 से) ...... बनाई गई। इस योजना की अवधारणा तत्कालिन सोवियत संघ से ली गई थी। इसी योजना के तहत कृषि व्यवस्था में सुधार, नहरों का निर्माण, नदियों पर डैम बनाना, देश के विभिन्न कोनों में उद्योग की स्थापना, बुनियादी शिक्षा के साथ साथ उच्च शिक्षा की व्यवस्था जिसमें इंजीनियरिंग और मेडिकल शामिल हैं। विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिये  परमाणु ऊर्जा आयोग से लेकर आईआईटी  तक की स्थापना की। डॉ होमी जहांगीर भाभा और डॉ विक्रम सारा भाई ने नेहरू के नेतृत्व में भारतीय विज्ञान की बुनियाद को मजबूत किया। इसी कड़ी का विस्तार है कि साल 1969 में  इसरो की स्थापना हुई।   प्रथम आईआईटी की स्थापना साल 1951 में खड़गपुर में हुई। देश में अब कुल 23 आईआईटी संस्थान हैं। प्रधानमंत्री नेहरू के बाद इंदिरा गांधी समेत सभी प्रधानमंत्रियों ने विज्ञान को महत्व दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी अंतरिक्ष विज्ञान और आईआईटी विस्तार पर जोर दिया। इनके कार्यकाल में अबतक  7 आईआईटी संस्थान स्थापित किये गये।   

प्रथम आम चुनाव के साथ हीं लोकतंत्र की बुनियाद गहरी हुई : 

बहरहाल, कहने का तात्पर्य यह है कि गुलामी की जंजीरों को तोड़ आजाद भारत के पास स्वतंत्र रूप से अपनी बात कहने के अलावा कुछ भी नहीं था। दाने दाने के लिये हम मोहताज थे। आजादी से कुछ साल पहले हीं 1943 में अकाल से लाखों लोगो की मौत हो गई।  ऐसे में देश को चलाना और आगे बढाना कोई आसान काम नहीं था। एक नई जंग की शुरूआत थी। सिर्फ बाहरी हीं नहीं कांग्रेस के अंदर  अंदरूनी लड़ाई भी कम नहीं थी। गांधी जी की हत्या और सरदार पटेल के निधन के बाद प्रधानमंत्री नेहरू को पूंजीवादी तत्वों ने घेर रखा था और दबाव बनाये हुए थे। उनसे भी लड़ना पंडित नेहरू के लिये आसान नहीं था। इस हालात में प्रधानमंत्री नेहरू ने देश को आगे बढाया लगभग हर क्षेत्रों में। वे अपने दूर दृष्टि से देश की बुनियाद मजबूत नहीं करते तो आज हमारी हालात भी कुछ पाकिस्तान जैसा हीं होता।  

एक बात और आर्थिक तंगी जैसी विपरित परिस्थियों में भी प्रधम प्रधानमंत्री नेहरू ने पूरे देश में आम चुनाव कराये ताकि लोकतंत्र मजबूत रहे। बिना संसाधन के पूरे देश में आम चुनाव कराना भी एक नई क्रांति थी। साल 1951-52 में प्रथम आम चुनाव सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू वे ब्रिज थे जिन्होंने आजादी की लड़ाई में जेल जाने से लेकर भारत की विकास की यात्रा में अनमोल योगदान दिया। आज हम रिपब्लिक ऑफ इंडिया अर्थात गणतंत्र भारत कहे जाते हैं। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की दुहाई पूरा विश्व देता है। इसके लिये प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू साधुवाद के पात्र हैं। 

 

नोट - लेखक राजेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार हैं। मीडिया में 27 वर्ष का अनुभव। इस बीच वे करंट न्यूज हिंदी, नवभारत टाइम्स, जी न्यूज, स्टार न्यूज व एबीपी न्यूज में लंबे समय तक कार्यरत रहे।