यूक्रेन पर हमले की आशंका। रूस के युद्धाभ्यास से युद्ध की संभावनाएं बढी। एस-400 और परमाणु बम से सुसज्जीत रूसी सेना।

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यूक्रेन पर हमले की आशंका। रूस के युद्धाभ्यास से युद्ध की संभावनाएं बढी। एस-400 और परमाणु बम से सुसज्जीत रूसी सेना।

राजेश चंद्रवंशी टाइम्स खबर timeskhabar.com

रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध कभी भी छिड़ सकता है। रूस ने यूक्रेन पर हमला करने को लेकर पूरी तैयारियां कर ली है। बेलारूस सीमावर्ती इलाके में युद्धाभ्यास भी जारी है सभी प्रकार के आधुनिक हथियारों के साथ। इसमें आकाश, समुद्र और जमीन से एक साथ हमला किये जा सकते हैं। सीमाओं पर जहां घातक टैंक और एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम को तैनात किया गया है वहीं सभी प्रकार के मिसाइलें वॉर-मोड पर एक्टिव हैं। समुद्र में युद्ध पोतो ने अपनी पोजिशन ले ली है। वहीं वायु हमले कि लिये घातक मिसाइलों के साथ सभी आधुनिक फाइटर प्लैन भी तैनात कर दिये गये हैं। इतना हीं नहीं युद्ध के गंभीर स्थिति पर पहुंचने परमाणु बम के इस्तेमाल को लेकर भी रूस ने पूरी तैयारी कर ली है। 

वहीं दूसरी ओर अमेरिका और ब्रिटेन समेत नाटों देश यूक्रेन के समर्थन में है। बड़े पैमाने पर अमेरिका से हथियार यूक्रेन पहुंच चुका है।  दोनों ही देश ने रूस को चेतावनी दी है लेकिन रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन पर इसका कोई असर होता दिख नहीं रहा है। वे अमेरिकी राष्ट्रपति जो. बाइडन की धमकी को गंभीरता से नहीं ले रहे। और साफ कर दिया है कि यदि अमेरिका यूक्रेन को नाटो (NATO)में शामिल करने की कोशिश को छोड़ दे। 

राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार यदि यूक्रेन नाटो के साथ आ जाता है तो रूस के लिये खतरा पैदा हो जायेगा। रूस और यूक्रेन की सीमाएं मिलती है। ऐसे में रूस को आशंका है कि अमेरिका यूक्रेन में अपने आधुनिक हथियार तैनात कर रूस के लिये खतरा पैदा कर सकता है। इस लिये हर हाल में रूस चाहता है कि अमेरिका यह आश्वासन दे कि वह यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं करेगा। इस बीच अमेरिका और रूस दोनों ने हीं यूक्रेन की राजधानी किवी से राजनयिकों को छोड़ अपने अपने नागरिक को वापस बुला लिया है। 

सवाल है कि आखिर अमेरिका यूक्रेन को नाटो सदस्य बनाने पर क्यों अड़ा है? क्या वह यूक्रेन को अपने पाले में कर रूस पर दबाव बढाने की नीति है। दरअसल द्धितीय विश्व के बाद से लगभग पूरी दुनिया दो भागों में विभाजित हो गई - एक अमेरिका के साथ तो दूसरा रूस (सोवियत संघ के साथ। दोनों ही देशों के बीच जबरदस्त कोल्डवॉर चला। 26 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ बिखर गया। रूस से अलग कई देश बने। सोवियत संघ के बिखरने के साथ हीं कॉल्डवॉर पर विराम लग गया लेकिन रूस के लिये यह एक गहरा घाव था। रूस हर हाल में अपनी वैश्विक प्रतिष्ठा को हासिल करने केलिये लगातार कोशिश करता रहा। राष्ट्रपति पुतिन शायद उसी प्रतिष्ठा को हासिल करने की कोशिश में है। 

यदि अमेरिका मान लेता है कि वह यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं करेगा तो यह रूस की बतौर मनोवैज्ञानिक और सामरिक जीत होगी। और अमेरिका नहीं मानता है तो रूस यूक्रेन पर हमला कर अपनी ताकत से विश्व को परिचय कराने की कोशिश करेगा। इस युद्ध के दौरान रूस यह सिद्ध करेगा कि उसके पास विश्व के सबसे घातक और रक्षक हथियार हैं। इससे हथियार के बाजार में रूस का दबदबा बढ जायेगा।