संघीय ढांचे को बचाने के लिये IPS-IPS से संबंधित मामले में मुख्यमंत्री सोरेन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। कहा केंद्र का संशोधित प्रस्ताव संघीय ढांचे की भावना के विपरीत है।

संघीय ढांचे को बचाने के लिये IPS-IPS से संबंधित मामले में मुख्यमंत्री सोरेन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। कहा केंद्र का संशोधित प्रस्ताव संघीय ढांचे की भावना के विपरीत है।

टाइम्स खबर timeskhabar.com झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) ने आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के नियुक्ति व प्रतिनियुक्ति को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है और विरोध के साथ अपना पक्ष रखा। दरअसल केंद्र सरकार आईएएस और आईपीएस की नियुक्ति को लेकर राज्य सरकारों की मंजूरी वाली अनिवार्यता को खत्म करने की तैयारी में है। इसी को लेकर मुख्यमंत्री सोरेन ने   केंद्र सरकार के प्रस्तावित संशोधन पर सवाल उठाये हैं। इसके बाद देश के सबसे ताकतवर ब्यूरोक्रेटस को लेकर राष्ट्रीय बहस छिड़ चुकी है।

यदि इन अधिकारियों पर केंद्र सरकार अपना दबदबा बनाना चाहती है तो यह संघीय ढांचे के लिये बहुत खतरनाक सिद्ध हो सकता है। अधिकारीगण सकारात्मक कार्य करते रहे तो कभी कोई खतरा नहीं होता लेकिन यदि वे किसी दबाव में या नकारात्मक कार्य कर बैठे तो संघीय ढांचे पर बहुत बूरा असर होगा। केंद्र सीधे राज्य सरकारों को नियंत्रित करने लगेगा। यदि केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार हो तो इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा लेकिन यदि केंद्र और राज्यों में अलग अलग दलों की सरकार हों तो इसका बहुत ज्यादा असर पडे़गा संघीय ढाचें पर।  

यदि केंद्र सरकार अपनी बातों पर अड़ी रही और राज्यों में नियुक्त आईएएस व आईपीएस को नियंत्रित करने लगे तो संभवत: एक नई व्यवस्था जन्म ले ले। यानी राज्य सरकारें राज्य स्तर की प्रशासनिक सेवाओं से आये अधिकारियों को प्रमोशन देकर जिले और राज्य के उच्च स्तर पर नियुक्ति  करने में तेजी लायेगी । ऐसे स्थिति में एक बार फिर केंद्र और राज्यों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो जायेगी। इस लिये उपयुक्त होगा कि देश के संघीय ढांचे से छेड़छाड़ न हो। 

बहरहाल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन केंद्र द्धारा आईएएस से संबंधित 1954 के प्रस्ताव में संशोधन के जो प्रस्ताव दिये गये हैं उसका विरोध किया है। उन्होंने प्रस्तावित संशोधन के लेकर अपने पत्र में लिखा है कि पिछले प्रस्ताव की तुलना में यह प्रस्ताव दमनकारी प्रतीत होता है। यह संघवाद की भावना के विपरीत है।