पश्चिम बंगाल : तृणमूल, बीजेपी और वामपंथ-कांग्रेस गठबंधन के बीच त्रिकोणीय मुकाबला संभव।

पश्चिम बंगाल : तृणमूल, बीजेपी और वामपंथ-कांग्रेस गठबंधन के बीच त्रिकोणीय मुकाबला संभव।

- राजेश कुमार 

अप्रैल-मई के महीने में पश्चिम बंगाल में विधान सभा के चुनाव होने हैं। 294 विधान सभा सीटों वाले बंगाल में इस बार राजनीतिक पिछले चुनावों की तुलना में ज्यादा घमासान है। तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी के कर्यकर्ताओं के बीच आये दिन हिंसक झड़पें हो रही है। दोनों ही पार्टियां एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। नेताओं के बीच बयानबाजी की कोई सीमा नहीं है। राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है तो केंद्र में बीजेपी की। इन दोनों ही पार्टियों के अलावा वामपंथी दलें और कांग्रेस पार्टी भी होंगी चुनावी मैदान में। दोनों दलों के बीच तालमेल संभव है। तो कह सकते हैं कि आने वाला विधान सभा विधान चुनाव त्रिकोणीय संभव है। 

पश्चिम बंगाल की राजनीति में भारी उतार-चढाव का दौर रहा है। कांग्रेस पार्टी के बाद सीपीएम के नेतृत्व में वामपंथ का लंबे समय तक शासन रहा। इसके बाद बीते दो विधान सभा चनावों में तृणमूल ने जीत हासिल की। ये सारी पार्टियां समाजवाद व लेफ्ट विंग की तरह हैं इस बीच दक्षिणपंथी पार्टी बीजेपी ने भी इस बार चुनावी दस्तक दी है। सवाल उठने लगे हैं कि क्या पश्चिम बंगाल का राजनीतिक इतिहास बदलने वाला है? क्योंकि वहां ज्योती दा के निधन के  बाद वामपंथ और कांग्रेस पार्टी में कोई करिश्माई लीडर नहीं बचा है। तृणमूल कांग्रेस की लीडर और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अभी भी बहुत सक्षम लीडर हैं । बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के बावजूद वे मजबूती से खड़ी है ,बावजूद संशय के बादल मंडरा रहे हैं। 

इसे समझने के लिये बहुत पीछे नहीं सिर्फ साल 2019 के लोकसभा चुनाव और साल 2016 के विधान सभा चुनाव पर दृष्टिपात करना जरूरी होगा। इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को शानदार सफलता मिली और लगातार ममता बनर्जी के नेतृत्व में दूसरी बार सरकार बनी। तृणमूल को 294 विधान सभा सीटों में से 211 सीटें मिली। कांग्रेस पार्टी को 44, वामपंथ 32 ( सीपीएम26, सीपीआई 1, फॉरवर्ड ब्लॉक 2, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी 1), गोरखा जनमुक्ति मोर्चा 3, बीजेपी 3 और निर्दलीय 1 सीट पर जीतने में सफल रहे। अब बात साल 2019 के लोकसभा चुनाव परिणामों पर। यहां लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं - इनमें से 22 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस और 18 सीटों बीजेपी ने जीत हासिल की। कांग्रेस पार्टी ने 2 सीटों पर जीत हासिल की और वामपंथी पार्टियां खाता तक नहीं खोल सकी।  अब इन चुनाव के राजनीतिक मायने समझने की जरूरत है विधान सभा के हिसाब से। 

साल 2016 के विधान सभा चुनाव परिणाम पर नजर डाले तो साफ है कि बीजेपी की स्थिति बेहद कमजोर है। सिर्फ 3 सीटें ही जीतने में सफल हई बीजेपी। इससे पहले साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने दो सीटें जीतने में सफल हुई थी लेकिन साल 2019 के लोक सभा चुनाव परिणाम ने सभी को चौंका दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 42 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की। पश्चिम बंगाल में बीजेपी की इतनी बड़ी जीत के बाद विधान सभा को लेकर चर्चाएं तेज हो गई। क्योंकि लोकसभा के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिली। और इसे विधान सभा क्षेत्र के हिसाब से वोट मत को देखें तो तृणमूल कांग्रेस को 158 विधान सभा क्षेत्र में बढत है। विधान सभा में बहुत का आंकड़ा 148 है। यानी 10 सीटें अधिक है। लेकिन जब इसकी तुलना साल 2016 यानी पिछले विधान सभा चुनाव परिणाम से करें तो तृणमूल कांग्रेस को भारी नुकसान है। जहां उसे 2016 में 211 सीटें मिली थी वहीं लोकसभा चुनाव परिणाम के हिसाब से देखें तो 158 सीटेों पर बढत है यानी 53 सीटों को नुकसान। अब इसी चुनावी परिणाम को बीजेपी के हिसाब से देखें तो बीजेपी काफी उत्साहित है। साल 2016 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थी जो कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को विधान सभा क्षेत्र में विभाजित कर देखें तो बीजेपी 128 विधान सभा क्षेत्रों में बढत बनाये हुए है। यानी विधान सभा के जादुई आंकड़े से सिर्फ 20 सीटें पीछे है। इस बीच तृणमूल कांग्रेस में बडी टूट हो चुकी है और बीजेपी को लग रहा है कि वे पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने की स्थिति में आ सकते हैं। 

आज की तारीख में वामपंथ और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों की स्थिति कमजोर है। साल 2016 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 44 और वामपंथ 32 ( सीपीएम26, सीपीआई 1, फॉरवर्ड ब्लॉक 2, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी 1) सीटें मिली थी। यानी कुल 76 सीटें। साल 2016 के लोकसभा चुनाव परिणाम को देखें तो कांग्रेस को सिर्फ सीटें हैं और वामपंथ को एक भी नहीं। यदि लोकसभा परिणाम को कांग्रेस के हिसाब से विधान सभा क्षेत्र में विभाजित कर देखें तो कांग्रेस पार्टी 20 सीटे भी नहीं आ रही है। और वामपंथ कहीं है हीं नही। लेकिन क्या साल 2021 के विधान सभा चुनाव में ऐसा होगा? यह तो आने वाला समय हीं बतायेगा परन्तु स्थितियां अलग होगी। क्योंकि जिस प्रकार से वामपंथी दलों ने जोर लगाया है और उनकी रैलियों में जो लोग जुट रहे हैं वह काफी कुछ राजनीतिक संकेत देता है। इन्हें भले हीं मीडिया में जगह नहीं मिल रही हो लेकिन वामपंथ के लिये उत्साहवर्धक है। 

वामपंथी पार्टियां जिस तेजी से अपने को मजबूत करने में जुटी है। इसको लेकर राजनीतिक विश्लेषकों की अलग अलग राय है। एक पक्ष का कहना है कि यह बीजेपी के लिये लाभदायक होगा क्योंकि वामंपथ और तृणमूल के वोट बैंक लगभग एक ही तरह के हैं। इससे तृणमूल का वोट कटेगा और बीजेपी को लाभ होगा। वहीं दूसरे पक्षों का कहना है कि अलग-अलग विधान सभा के अलग-अलग समीकरण हैं। इसलिये दोनो हीं पार्टियों तृणमूल और वामपंथ गठबंधन को लाभ होगा। यह भी कहा जा रहा है कि यदि तृणमूल-वामपंथ-कांग्रेस के बीच गठबंधन हो जाये तो बीजेपी की स्थिति कमजोर हो जायेगी। इसके अलावा एक समीकरण यह है कि यदि किसी को बहुमत नहीं मिलता है और किसी भी जोड़-घटाव से कोई पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं होती और दोबारा चुनाव होता है तो वामपंथ को भारी लाभ होगा। क्योंकि इस चुनाव में यह धीरे धीरे साफ होता जा रहा है कि आने वाले दिनों में तृणमूल कांग्रेस का कमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे व सांसद अभिषेक मुखर्जी के हाथों में होगा। और वे ममता जैसी नेतृत्व दे पायेंगे इसमें लोगों को संदेह है। ऐसे में वामपंथ को छोड़ ममता के साथ आये लोग वापस वामपंथ में जा सकते हैं। 

बहरहाल, मार्च-अप्रैल में पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव का ऐलान होने की संभावना है। और अप्रैल-मई में चुनाव। साल 2016 में विधान सभा के चुनाव 6 चरणों में कराया गया था 4 अप्रैल से 5 मई के बीच। जो भी हो इस बार विधान सभा का चुनाव ऐतिहासिक होगा। तृणमूल, बीजेपी और वामपंथ-कांग्रेस गठबंधन के बीच त्रिकोणीय संघंर्ष की संभावनाएं हैं। माना जा रहा है कि वामपंथ-कांग्रेस किंगमेकर की भूमिका में हो सकते हैं।   

( लेखक राजेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार व संपादक ग्लोबल खबर डॉट कॉम globalkhabar.com)