गांधी परिवार के बिना कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं। राहुल हीं कांग्रेस को मजबूत करने में सक्षम : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार

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गांधी परिवार के बिना कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं। राहुल हीं कांग्रेस को मजबूत करने में सक्षम : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस पार्टी का ग्राफ काफी तेजी से गिरा। इसे लेकर कांग्रेस में मंथन का दौर जारी है। और कहा जा रहा है कि गांधी परिवार से बाहर किसी को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिये। कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने के उद्धेश्य से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक पत्र भी लिखा, जिसको लेकर काफी विवाद हुए। बात यहां तक हो गई कि पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले नेता बीजेपी से मिले हुए हैं। इस पर पूर्व केंद्रीय मंत्रियों गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल ने प्रतिक्रियाएं व्यक्त की और इसका खंडन किया। बाद में इसे मैनेज किया गया।

अब सवाल है कि क्या गांधी परिवार कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने की स्थिति में है? क्या गांधी परिवार के बाहर से किसी को पार्टी अध्यक्ष बनाया जाना चाहिये? क्या राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिये चुनौती पेश कर सकेंगे? ऐसे कई सवाल उठाये जा रहे हैं। इस बारे में आगे बढने से पहले दो बातों पर ध्यान देना उचित होगा - 1. कांग्रेस पार्टी का कोई विधायक या सांसद या अन्य नेतागण बीजेपी या अन्य विरोधी विचार धारा वाली पार्टियों के नेताओं से मिलते हैं तो इसे नकारात्मक रूप में नहीं लिया जाना चाहिये।  पार्टी के अलग अलग लीडर्स आपसी मित्र भी तो हो सकते हैं। और जो टूटने वाले होंगे उसे कब तक रोका जा सकता है?  2. आज की तिथि में कांग्रेस पार्टी को कोई बचा सकता है तो वे गांधी परिवार के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हीं हैं। आइये जानते हैं - 

 चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देना कांग्रेस पार्टी के लिये बहुत बड़ी बात नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले बीजेपी को हराना आज की तिथि में बेहद कठिन है। प्रमाण के लिये चुनाव परिणाम हीं काफी है। आप यह देखें कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी की जोड़ी को भी इतनी चुनावी सफलता नहीं मिली। इनके समय में बीजेपी को पूर्ण बहुमत कभी  नहीं मिला। लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र की राजनीति में इतनी ताकत से जम गये कि उन्हें राजनीतिक चुनौती देना बेहद मुश्किल हो गया, दोनों के लिये - कांग्रेस समेत पूरी विपक्ष और बीजेपी के अंदर भी। जैसे एक समय पूरे देश में कांग्रेस पार्टी थी वैसी हीं इस समय पूरे देश में बीजेपी है।   लेकिन समय के साथ राहुल गांधी ने नई रणनीति बनाई और सफलता के मार्ग प्रशस्त किये। इसकी शुरूआत हुई साल 2017 में गुजरात विधान सभा चुनाव के दौरान।  

 

प्रधानमंत्री मोदी की सफलता :

जातीय व्यवस्था के तहत बीजेपी शुद्ध रूप से अगड़ो की पार्टी मानी जाती है। लेकिन साल 2014 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद स्थिति में बदलाव दिखने लगे।  साथ हीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बयानों ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान, बीजेपी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को लाभ हीं पहुंचाया। इसकी शुरूआत हुई कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर के बयान से। मणिशंकर अय्यर के एक बयान को बीजेपी लीडर नरेंद्र मोदी ने सामाजिक मुद्दा बना दिया और अपने को पिछड़ा बताते हुए कहा कि वे पिछड़ी जाति के हैं इसलिये कांग्रेस के लीडर मणिशंकर अय्यर ने उन्हें नीच और चाय बेचने वाला कहा । इसका सामाजिक प्रभाव इतना पड़ा कि आरजेडी, सपा व बसपा समेत तमाम देश के पिछड़े-दलित-आदिवासी समुदाय से जुड़े लोगों को लगा कि उनके वर्ग से कोई तो है जो प्रधानमंत्री बन सकता है। फिर क्या था वोट-फोर-मोदी की गूंज गूंजने लगी। यह स्थिति आज भी है राष्ट्रीय स्तर पर।  

राहुल गांधी भी सफलता के मार्ग पर :

केंद्रीय राजनीति में आये बदलाव ने कांग्रेस पार्टी को हिला कर रख दिया। कांग्रेस में किसी को समझ नहीं आ रहा था कि मोदी-लहर को कैसे रोका जाये। साल 2014 के बाद दिल्ली विधान सभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत ने कांग्रेस को और दबाव में ले गया। इसके बाद बिहार में आरजेडी, जेडीयू (बाद में जेडीयू महागठबंधन छोड़ बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली) और कांग्रेस गठबंधन को भारी सफलता मिली।  

विशेषज्ञों का कहना है कि राहुल गांधी ने साल 2017 में गुजरात विधान सभा चुनाव में एक नये राजनीतिक प्रयोग कर चुनावी मैदान में उतरे। पटेल समाज समेत पिछड़े वर्ग और दलित-आदिवासी-मुस्लिम वर्ग के युवाओं को साथ लेकर आगे बढे। इसके चुनावी परिणाम अच्छे आये। बीजेपी का गढ माना जाने वाले गुजरात में कांग्रेस पार्टी भले हीं सत्ता में नहीं आई लेकिन मजबूती से उभरी और बीजेपी को नुकसान का सामना करना पड़ा। साल 2012 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को जहां 61 सीटें मिली थी वहीं साल 2017 के चुनाव में 77 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं बीजेपी को जहां साल 2012 में 115 सीटें मिली थी वहीं साल 2017 में 99 सीटें मिली। इसी सामाजिक समीकरण को राहुल गांधी ने आगे बढाया और बीजेपी शासित राज्य मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में सरकार बनाई।

बहरहाल राहुल गांधी के इसी नये सामाजिक समीकरण ने पार्टी के अंदर और बीजेपी को कहीं न कहीं चिंतित कर दिया है। कांग्रेस के अंदर पुराने नेताओं को लगने लगा है कि अब मुख्य धारा में पार्टी में नये नये लोग आयेंगे और वहीं बीजेपी को लगने लगा है कि यदि राहुल गांधी ने मंडल कमिशन को पूरी तरह लागू करने और सामाजिक समीकरण को लेकर आगे बढ़ते हैं तो उन्हें दिक्कत होगी। बताया जाता है कि राहुल गांधी सामाजिक समीकरण का इस्तेमाल बिहार-यूपी-झारखंड में एक हद तक हीं करेंगे क्योंकि यहां उनके सहयोगी दल हैं। इन राज्यों को छोड़ पूरे देश में नये समीकरण बनाने वाले हैं।