कोरोना काल में बिहार चुनाव आखिर हमारे राजनेता चाहते क्या हैं? : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

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कोरोना काल में बिहार चुनाव आखिर हमारे राजनेता चाहते क्या हैं? : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

बिहार में चुनाव होने या न होने की अनिश्चितता के बीच भारत के निर्वाचन आयोग ने विधानसभा चुनाव के लिए नियमावली भी प्रकाशित कर दी है और मीडिया में आई खबर को यदि सही मानें, तो सितंबर के तीसरे सप्ताह में चुनाव की तिथियां भी घोषित कर दी जाएगी। यानी निर्वाचन आयोग की तरफ से चुनाव की पूरी तैयारी की जा रही है और बिहार सरकार भी वहां चुनाव चाहती है। चुनाव अपने तय समय पर होना अच्छी बात है। नवंबर महीने में वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो जाएगा और उसके पहले नई विधानसभा का चुनाव हो जाना संवैधानिक जिम्मेदारी है।

लेकिन क्या लॉकडाउन के बीच में चुनाव करवाए जा सकते हैं? सरकार चाहे तो सबकुछ हो सकता है। 500 कोरोना मरीजों के समय लॉकडाउन कराए जा सकते हैं और 5 लाख मरीजो की संख्या हो जाए, तो लॉकडाउन हटाए जा सकते हैं। तो फिर लाॅकडाउन में चुनाव क्यों नहीं कराए जा सकते हैं? शायद यही तर्क है बिहार सरकार का, जो चुनाव किसी भी कीमत पर चाहती है। गौरतलब हो कि बिहार में अभी भी लॉकडाउन चल रहा है। बिहार सरकार उसकी अवधि लगातार बढ़ाती जा रही है और फिलहाल यह बढ़ाकर 6 सितंबर कर दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद नये कोरोना संक्रमणों की संख्या खतरनाक स्तर तक बढ़ी हुई ह। अभी यह प्रतिदिन ढाई हजार के आसपास है। एक समय यह 4 हजार का आंकड़ा भी पार कर चुका था।

जैसा कि अनुभव बताता है कि लॉकडाउन से समस्या का हल नहीं निकलता। इससे हम समस्या को थोड़ा आगे टरका देते हैं और जब लाॅकडाउन टूटता है, तो फिर कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगती है। यही पैटर्न हमें दिल्ली में देखने को मिला और मुंबई में भी। फिर हर्ड इम्युनिटी के बढ़ते जाने के कारण संक्रमितों की संख्या घटने भी लगी। दिल्ली में जब 4 मई को केजरीवाल सरकार ने लगभग 90 फीसदी से ज्यादा बंदिशें हटा ली थीं, तो संक्रमण बढ़ने लगा और यह प्रतिदिन संक्रमण 4 हजार तक पहुंच गया। उसके बाद यह कम होते होते प्रतिदिन 600 तक हो गया। अब बाहर से दिल्ली इलाज के लिए आ रहे लोगों के कारण यह आंकड़ा हजार से ऊपर हो गया है।

जाहिर है, जब बिहार में लाॅकडाउन हटेगा, तो संक्रमितों की संख्या और भी तेजी से बढ़ेगी। यदि दिल्ली का पैटर्न वहां सामने आया, तो प्रतिदिन संक्रमण 10 हजार तक जा सकता है। यह संभावना बहुत ही बलवती संभावना है। लेकिन फिर भी वहां नीतीश सरकार चुनाव करवाना चाह रही है, जबकि उस ेपता है कि चुनावी गतिविधियों के कारण सामाजिक डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ती हैं और उसके कारण कोरोना के संक्रमण और भी तेज हो जाने की आशंका बन जाती है। चुनाव के दौरान प्रचार होता है। प्रत्याशी और उसके समर्थक मतदाताओं तक पहुंचने के सारे हथकंडों का इस्तेमाल करते हैं। वे कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। छोटी से छोटी और बड़ी से बडी सभाएं होती हैं, जिनमें लोग डिस्टेंसिंग बनाकर रख ही नहीं सकते। और अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसी स्थिति में क्या होगा।

सवाल उठता है कि आखिर बिहार की सरकार चुनाव कराने पर आमादा क्यों हैं? तो इसका कारण यह लगता है कि सत्तारूढ़ भाजपा और जदयू को लगता है कि डिजिटल कैंपेनिंग के द्वारा वे बेहतर तरीके से चुनाव अभियान चला सकते हैं, जबकि विपक्षी पार्टियो के पास इस तरह के कैंपेन चलाने के पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। दूसरा कारण यह हो सकता है कि लाॅकडाउन के कारण मतदान का प्रतिशत बहुत कम होगा। जो मतदाता किसी पार्टी या उम्मीदवार से ज्यादा जुड़ाव महसूस नहीं करते, वे मतदान करने के लिए निकलेंगे ही नहीं, क्योंकि उन्हें संक्रमण का डर रहेगा। वैसी हालत में जिन पार्टियो के पास प्रतिबद्ध मतदाताओं का आधार है, उनकी जीत आसान हो जाएगी। भारतीय जनता पाटी को लगता है कि उनके पास ज्यादा प्रतिबद्ध समर्थक हैं, जो खतरे के बावजूद मतदान के लिए निकलेंगे और कम मतदान का प्रतिशत उन्हें सूट करेगा।

एक तीसरा कारण कोरोना काल में केन्द्र की मोदी सरकार और बिहार की नीतीश सरकार की विफलता भी हो सकता है। बिहार के लोगों में दोनों के खिलाफ आक्रोश का स्तर आज कुछ ज्यादा है। इसलिए यदि वे ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट देने के लिए निकले, तो मौजूदा सरकार चला रही पार्टियां चुनाव हार सकती हैं, जबकि विपक्ष को फायदा हो सकता है। लेकिन कोरोना का डर वैसे मतदाताओं को ज्यादा से ज्यादा संख्या में घर से निकलकर मतदान केन्द्र पर जाने और वहां लाइन लगाकर खड़ा होने से रोकेगा।

चौथा कारण नीतीश कुमार का यह डर भी हो सकता है कि वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के साथ उन्हें कुर्सी से हटाकर बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। वैसी स्थिति में भाजपा फायदे में रहेगी, क्योंकि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का मतलब परोक्ष तरीके से भाजपा का ही शासन होगा, क्योंकि केन्द्र में भाजपा की सरकार है और राज्यपाल भाजपा के ही सदस्य रहे हैं। इसलिए नीतीश नहीं चाहते हैं कि चुनाव टले। भारतीय जनता पार्टी को वह स्थिति सूट करेगी, लेकिन भारतीय जनता पार्टी का केन्द्रीय नेतृत्व नीतीश को नाराज नहीं करना चाहता। भाजपा को लगता है कि बिहार में वह अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकती, इसलिए नीतीश का साथ नहीं छोड़ा जाय।

वैसे केन्द्र सरकार चाहे, तो नीतीश कुमार मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करते रह सकते हैं। भारत में ऐसे मौके कई आए हैं, जब विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी पहले से बनी सरकार आगे भी बनी रहती है, लेकिन यह पूरी तरह से केन्द्र सरकार पर निर्भर करता है और नीतीश के साथ भाजपा का भरोसे का वह रिश्ता नहीं है कि नीतीश भरोसा कर लें कि वर्तमान विधानसभा के कार्यकाल पूरा होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी की केन्द्र सरकार उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखेगी।

जाहिर है, यह पूरा सत्ता का खेल है, जिसमें राजनेताओं को जनता से कोई मतलब नहीं। उन्हें चुनाव जीतना है और सरकार में बने रहना है, इसलिए चुनाव करवाना है। भले ही इस क्रम में लाखों अन्य लोग कोरोना से संक्रमित हो जाएं।