रिफ़ार्म के रत्न हैं रतन टाटा – मुकेश अंबानी

रिफ़ार्म के रत्न हैं रतन टाटा – मुकेश अंबानी

मुकेश अंबानी (चेयरमैन, रिलायंस इंडस्ट्रीज)

1991 से पहले, भारत राजनीतिक रूप से भले ही आजाद था, लेकिन यहां आर्थिक स्वतंत्रता नहीं थी. बहुत सारे युवाओं की तरह मेरे बच्चों को भी लगता था कि सरकार कारोबारियों की प्रतिभा पर बंदिशें लगा रही है. यह नौकरशाह तय करते थे कि किस कंपनी को क्या व्यापार करना है, उन्हें कितना उत्पादन और निर्यात करना है, विकास के लिए वे अपनी पूंजी को कितनी बढ़ा सकते हैं, कितने लोगों को नौकरी दे सकते हैं और किस तरह के उत्पाद या सेवाएं बेच सकते हैं.

1991 में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा लागू किये गये आर्थिक सुधारों ने देश के आर्थिक परिदृश्य को बदल दिया. कम से कम पिछली एक सदी में यह पहली बार हुआ है कि आज ज्यादातर भारतीय महसूस कर रहे हैं कि वे अपने जीवन में, अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में बदलाव ला सकते हैं. पिछले बीस वर्षो में भारत ने बड़ी कंपनियों और संपत्ति का उदय देखा है. हालांकि यह भी सच है कि इस संपत्ति के समावेशी वितरण के लिए अभी काफ़ी कुछ किया जाना बाकी है. मेरे व्यक्तिगत आदर्श सदैव मेरे पिता रहे हैं, जो आज भी मेरे लिए सबसे बड़े प्रेरणास्रोत हैं.यह उनके मार्गदर्शन का ही नतीजा है कि मैंने कारोबार की बारीकियां सीखी और उसमें आगे बढ़ कर सपने देखने में सक्षम हुआ. लेकिन एक और व्यक्ति हैं, जिनके लिए मेरे मन में बहुत ज्यादा सम्मान है और वे हैं जेआरडी टाटा.

कारोबारियों के लिए वे एक आदर्श पुरुष हैं. देश में लाइसेंस-परमिट-कोटा राज के बावजूद उन्होंने अपनी उपलब्धियों से एक ऐसी नजीर पेश की है, जो हमेशा बताती रहेगी कि अपनी दूरदर्शिता और क्षमता के दम पर मनुष्य बड़ी से बड़ी बाधा को पार कर सकता है. जेआरडी के कद के कारण लोगों के मन में यह संदेह स्वाभाविक था कि क्या उनका कोई उत्तराधिकारी उनकी विरासत को उसी योग्यता के साथ संभाल पायेगा? लेकिन 1991 में टाटा समूह के चेयरमैन के रूप में रतन के चयन ने साबित कर दिया कि उत्तराधिकारी चुनने की जेआरडी की क्षमता भी अद्भुत थी. आर्थिक सुधारों के साथ रतन भी नयी ऊंचाइयों पर पहुंचते गये. भारत में बदलाव के साथ टाटा के स्टील, ऑटोमोबाइल, केमिकल जैसे पारंपरिक कारोबार में भी बड़े पैमाने पर आधुनिकीकरण की जरूरत महसूस की गयी, क्योंकि सुधारों ने इन क्षेत्रों को घरेलू के साथ-साथ विदेशी कंपनियों के लिए भी खोल दिया. रतन ने इन चुनौतियों का दृढ़ निश्चय के साथ सामना किया, जो उनकी खासियत भी है.

उनके आधुनिक विचार और सूझबूझ ने टाटा समूह को प्रतिस्पर्धाओं में आगे बढ़ने की राह दिखायी और इसे 21वीं सदी में पहुंचा दिया. कुछ ही वर्षो में रतन ने एक सदी पुराने बिजनेस घराने को आधुनिक बना कर इसके घरेलू साम्राज्य को वैश्विक रूप दे दिया.रतन ने न केवल पुरानी कंपनियों टाटा स्टील और टाटा केमिकल को दुनिया की अग्रणी कंपनियों में शामिल कराया, बल्कि टाटा बेभरेज, टीसीएस, इंडियन होटल्स, टाइटन और वोल्टास जैसी कंपनियों की सफ़लता के साथ अंतरराष्ट्रीय मंच पर टाटा की मार्केटिंग और ब्रांडिंग इमेज को भी मजबूती प्रदान की. टाटा समूह को आधुनिक बनाने और इसे व्यापक विस्तार देने के बावजूद रतन ने इसके मूल्यों को नहीं बदलने दिया. टाटा समूह के परोपकार के कार्यो में भी रतन का बहुत बड़ा योगदान है, हालांकि उनके योगदान के इस पक्ष की चर्चा कम ही हुई है. टाटा नैनो और टाटा स्वच्छ जैसे अभिनव उत्पादों के जरिये रतन ने बिजनेस के साथ देश के विकास में योगदान देने के मामले में भी टाटा समूह को एक आदर्श बना दिया.

वास्तव में, तकनीक की शक्ति और नवोन्मेष में रतन के गहरे विश्वास और अपनी टीम से इसे समय पर तैयार करवाने की उनकी क्षमता का मैं कायल हूं. असली नेता वह होता है, जो कई नये नेता तैयार कर पाता है. और रतन ने तो प्रतिभावान इंजीनियरों, मैनेजरों और कार्यकारियों की एक पूरी नयी पीढ़ी तैयार कर दी है. यह नयी पीढ़ी टाटा समूह की चुनौतियों को सफ़लता की नयी कहानी में तब्दील करने की काबिलियत रखती है. टाटा समूह को स्थायित्व और कामयाबी दिलाने में उसके प्रबंधन की कुशलता और गंभीरता का अहम योगदान है. हाल के वर्षो में रतन ने भारतीय बिजनेस घरानों का सम्मानित प्रतिनिधि बन कर भी देश को लाभ पहुंचाया है. मैंने बिजनेस और आर्थिक मामलों की कई सरकारी समितियों में रतन के साथ भाग लिया है, जहां नीतिगत मामलों में उनके सुझावों को सभी ने खुले दिल से सराहा है. अपनी प्रत्यक्ष भूमिकाओं से इतर, रतन ने कई अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों में भी परदे के पीछे रह कर महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.

यह टाटा समूह के व्यावसायिक नजरिये और टाटा परिवार की सहृदयता ही है कि जेआरडी से टाटा समूह की विरासत मिलने के 20 वर्षो बाद रतन भी अपने उत्तराधिकारी को यह विरासत सौंपने की तैयारी कर रहे हैं. मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उदारीकरण के बाद भारत की आर्थिक तरक्की का इतिहास जब भी लिखा जायेगा, इसमें रतन के दूरदर्शी नेतृत्व में टाटा समूह की कामयाबी को सबसे बड़ी उपलब्धियों में दर्ज किया जायेगा.

 

(आर्थिक सुधारों पर द इंडियन एक्सप्रेस के विशेषांक रिफ़ॉर्म 2020’ से साभार)