चीन को झटका देते हुए रूस ने भारत को एस-400 देने का निर्णय लिया। और संकेत दिया कि भारत-चीन दोनो दोस्त हैं लेकिन प्राथमिकता भारत है - वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार।

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चीन को झटका देते हुए रूस ने भारत को एस-400 देने का निर्णय लिया। और संकेत दिया कि भारत-चीन दोनो दोस्त हैं लेकिन प्राथमिकता भारत है - वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार।

- राजेश कुमार

रूस की विजयी दिवस पर आयोजित भव्य पैरेड समारोह में भारतीय सैनिकों ने भी हिस्सा लिया। इस समारोह में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी शामिल हुए। यह समारोह कई मायने में महत्वपूर्ण है। साथ हीं  एक बार फिर भारत और रूस की दोस्ती ने अपने विरोधियों को करारा जवाब दिया है। रूस ने इस संकट की घड़ी में चीन के विरोध को दरकिनार करते हुए साफ कर दिया कि रूस भारत को एडवांस एस-400 समय से पहले दे देगा। भारत और रूस को लेकर भारत में और देश के बाहर भी दो सवाल हमेशा से किये जाते रहे हैं पहला, रूस को भारत से लाभ हैं इसलिये वे साथ हैं और दूसरा जब भी चीन से भारत का मुकाबला होगा तब रूस चीन केसाथ होगा भारत के साथ नहीं। लेकिन आज की तारीख में भारत-रूस की दोस्ती के विरोधी चुप हैं। उनके मुंह पर ताला जड़ गया है। जो मीडिया रूस लीडर के अपेक्षा दूसरे अन्य विदेशी लीडर  को अधिक तरजीह देते थे वे आज इस दोस्ती का गुनगान कर रहे हैं। 

यह बात सत्य है कि भारत की रक्षा प्रणाली का 70 प्रतिशत हिस्सा रूस से जुड़ा है। दुनिया का हर देश व्यापार करना चाहता है तो रूस क्यों नहीं करेगा? लेकिन इस व्यापार में रूस ने भारत के साथ सिर्फ व्यापारिक रिश्ते नहीं जोड़े बल्कि एक भावनात्मक रिश्ते भी कायम किये हैं। और समय समय पर रूस ने अपनी दोस्ती को निभाया है। लद्दाख के गलवान घाटी प्रकरण के बाद सवाल यह उठ रहे थे कि भारत और चीन दोनों ही रूस के दोस्त हैं ऐसे में रूस किसका साथ देगा। रूस ने भी कहा कि दोनो देश उसके मित्र देश हैं। लेकिन रूस ने जो कदम उठाये हैं वे भारत के हित में है। और इसके उन्होंने  संकेत भी दिये - 

1. रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लवारोव ने कहा कि भारत और चीन अपने विवाद सुलझा लेंगे किसी तीसरे देश की जरूरत नहीं है। 23 जून को रूस, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच वर्चुअल बैठक हुई।  रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लवारोव, भारत के विदेश मंत्री जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने वर्चुअल बैठक में रूस ने गलवान झड़प पर कहा कि मध्यस्थता से इंकार किया और कहा दोनों देश खुद ही सुलझा लेंगे। इससे साफ है कि रूस ने चीन का साथ नहीं दिया। और भारत को चीन की बराबरी का माना। 

2. चीन के विरोध के बावजूद रूस भारत को आधुनिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 ( S-400)देने को तैयार है। और समय से पहले हीं दे देगा। इस दौर रूस का कदम काफी अहम माना जा रहा है। चीन के पास भी रूस का ही मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 है। हालांकि चीन को बेचने के पहले रूस ने भारत को हीं ऑफर किया था लेकिन भारतीय ब्यूरोक्रेसी की वजह से इस देरी होती गई। एक यही एक हथियार है जो चीन को भारत पर थोड़ा मजबूती दिलाता है। भारत के एस-400 आ जाने के बाद चीन और भारत दोनो बराबर की शक्ति होंगे। इतना हीं नहीं फिर पाकिस्तान जैसे देश भारत के किसी सीमा पर धोखे से हमला करने की भी हिम्मत भी नहीं करेगा। एस-400 के अलावा अन्य फाइटर प्लेन पर भी भारत और रूस के बीच बातचीत जारी है। 

3. रूस के विजयी दिवस पर आयोजित समारोह में रूस की सैन्य ताकत दिखी। इस मौके पर भव्य पैरेड का आयोजन किया गया जिसमें भारत और चीन के सैनिक भी शामिल हुए। इस पैरेड से भी यह साफ संकेत मिलता है कि भारत और चीन दोनो हीं उनके दोस्त हैं लेकिन प्राथमिकता भारत हीं है। पैरेड मे भारतीय सैनिकों को चीन के सैनिकों से आगे रखा गया था। 

4. भारत और चीन के बीच हुए खुनी झड़प और भारी तनाव के बीच रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी सदस्य बनने का समर्थन किया और कहा कि भारत सुरक्षा परिषद का स्थाई सदस्य बन सकता है। स्ट्रोंग कैंडिडेट है और हम उसे समर्थन करते हैं। 

इससे एक बात तो साफ हो गया कि रूस हर हाल में भारत के साथ है। इसका साफ संदेश चीन को भी दे दिया गया। साथ हीं पाकिस्तान जैसा देश अब भारत के खिलाफ योजना बनाने से पहले दस बार जरूर सोचेगा। अब आइये जानते हैं कि रूस ने किस प्रकार से भारत को मदद की, जो ऐतिहासिक है। ऐसा आम तौर पर कोई देश नहीं करता। 

1. कोल्डवार के समय जब तत्कालीन सोवियत संघ (रूस) के लीडर का विश्वास भारत के प्रति दृढ हुआ तो वह भारत को मदद करने की प्रबल धारणा बनाई। सामरिक क्षेत्रों में रूस ने भारत को सिर्फ हथियार नहीं  बेचे बल्कि उसकी तकनीक भी दी। इंजीनियरों को उन्होंने सिखाया। और सबसे बड़ी बात अपेक्षाकृत यह हथियार विश्व के अन्य हथियार से अधिक घातक और सस्ते थे।  

2. सिर्फ सामरिक क्षेत्र में हीं नही बल्कि आर्थिक और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में मदद की। बतौर उदाहरण स्टील उत्पादन के लिये बोकोरो में स्टिल प्लांट स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। आर्थिक के साथ साथ हमारे इंजीनियरों को भी ट्रेंड किया। 

3. आज भारत और अमेरिका काफी निकट है। लेकिन एक समय था जब अमेरिका और ब्रिटेन समेत नाटो के देश भारत के खिलाफ थे। वे आये दिन पाकिस्तान के पक्ष में और  जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने की मकसद से संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव लाया करते थे। दर्जनों बार लेकर आये लेकिन हर बार रूस ने वीटो कर दिया। यदि रूस भारत का साथ नहीं देता तो बड़ी शक्तियां कब का जम्मू कश्मीर को अलग कर देती। 

4. 1971 का भारत पाकिस्तान का युद्ध , भारत और रूस की दोस्ती की मिसाल के लिये भी जाना जाता है। जब अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस समेत पूरा नाटो देश पाकिस्तान के पक्ष में था। यहां तक की चीन भी पाकिस्तान को नैतिक समर्थन दे रहा था। यहां तक कि अमेरिका ने भारत के खिलाफ सबसे आधुनिक और खतराक जंगी जहाज सातवां बेड़ा भारत के खिलाफ भेजा तो पूरे पाकिस्तान में खुशियों की लहर उमड़ पड़ी। उसे लगा कि भारत को वह करारी शिकस्त दे देगा। पर उस समय पूरे पाकिस्तान में मातम पसर गया जब रूस ने ऐलान किया कि अमेरिका अपना सातवां बेड़े वापस ले नहीं तो भारत के पक्ष में रूस का सातवां बेड़ा और सैनिक युद्ध के मैदान में होंगे। पाकिस्तान के हौसले तो पस्त हुए हीं अमेरिका भी हिम्मत नहीं जुटा पाया और अपने जंगी जहाजों को वापस आने का आदेश दिया। इस जंग में भारत की शानदार जीत हुई और भारत पाकिस्तान को विभाजित कर बांग्लादेश का गठन किया। 

यही वजह है कि रूस और भारत की दोस्ती पूरी दुनिया में एक मिसाल है। इस दोस्ती को अमेरिका और ब्रिटेन की दोस्ती से भी मजबूत माना जाता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने इस दोस्ती को और मजबूत बनाया है। 

नोट - वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार ( Rajesh Kumar) globalkhabar.com के संपादक हैं।