प्रवासी श्रमिकों को घर तक पहुंचाने के सारे खर्च और जिम्मेदारी राज्य सरकार की - सुप्रीम कोर्ट

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प्रवासी श्रमिकों को घर तक पहुंचाने के सारे खर्च और जिम्मेदारी राज्य सरकार की - सुप्रीम कोर्ट

टाइम्स खबर timeskhabar.com

लॉकडाउन की वजह से श्रमिकों और उनके परिवारों की स्थिति नाजूक हैं। असहाय लाखों श्रमिक सैकड़ों किलोमीटर दूर पैदल और साइकल से हीं अपने अपने गांवों के लिये निकल पड़े। कईयों ने दम  तोड़ा दिया। मासूम बच्चों को पता भी नहीं कि वे जिस मां के आंचल या चादर से खेल रहा है वे जिंदा भी हैं या नहीं। प्रवासी श्रमिकों पर आई मुसिबतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पहल की और अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सिर्फ 3 फीसदी ट्रेनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि प्रवासी श्रमिकों की संख्या लगभग चार करोड़ के आसपास है। वहीं केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह अभूतपूर्व संकट है। और सरकार इससे निपटने के लिये अभूतपूर्व कदम उठा रही है। 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश :

- सु्प्रीम कोर्ट ने कहा कि श्रमिकों से बस और ट्रेनों का किराया नहीं लिया जायेगा। 

- राज्य सरकरों की जिम्मेवारी है कि वे श्रमिकों का किराया दे और घर पहुंचने की व्यवस्था करे। इस कार्य को तीव्रता से करें। 

- फंसे सभी श्रमिकों को भोजन कराने की व्यवस्था राज्य सरकार द्धारा कराया जाये। उन्हें बस व ट्रेन के समय बताये जायें। उनका व्यवस्थित पंजीकरण हो

- स्टेशनों पर भोजन और पानी की व्यवस्था राज्य सरकारें मुहैया करवाएं और ट्रेनों के भीतर मजदूरों के लिए यह व्यवस्था रेलवे की जिम्मेदारी है। बसों में भी उन्हें खाना और पानी दिया जाए।

- बिहार सरकार ने अदालत को बताया कि राज्य में लगभग  10 लाख श्रमिक सड़के के मार्फत आये हैं जबकि बिहार के लिये कई ट्रेने चल रही हैं। 

- केंद्र सरकार ने कहा कि एक करोड़ प्रवासी श्रमिक भेजे जा चुके हैं। जो पैदल जा रहे है वे अन्य कारण हैं।  

- सुप्रीम अदालत ने कहा कि श्रमिक पहचान के बाद 10 दिनों के अंदर श्रमिकों को भेज दिया जाना चाहिये। 

-अदालत के पूछने पर सरकार ने कहा कि किसी राज्य ने श्रमिक को नहीं रोका। रोक नहीं सकते। वे सभी भारत के नागरिक हैं। 

- केंद्र ने अदालत को बताया कि 3700 ट्रेने चलाई जा रही है।   1 मई से 27 मई के बीच 91 लाख श्रमिक शिफ्ट किये गये हैं। राज्यों की मदद से 40 लाख श्रमिकों को सड़को से शिफ्ट किया गया है। 

- तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को राजनीतिक मंच नहीं बनाया जाना चाहिये। कपिल सिब्बल ने कहा कि यह मानवीय आपदा है। फिर तुषार मेहता ने कहा कि इसमें आपका क्या योगदान है। फिर सिब्बल ने बताया कि मेरा योगदान 4 करोड़ रूपये का है। 

इस बीच अदालत में कांग्रेस लीडर व सप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील  कपिल सिब्बल और केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच बहस के दौरान कई मामले उठे। सिब्बल ने ने कहा कि श्रमिकों की संख्या लगभग चार करोड़ है। सरकार ने 27 दिन में लगभग 91 लाख श्रमिकों को भेजे हैं ऐसे तो 4 करोड़ को भेजने में 3 महीन और लगेंगे। इसपर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कपिल सिब्बल से कहा कि आप कैसे कह सकते हैं कि सभी श्रमिक जाना चाहते हैं तो जवाब में सिब्बल पूछते हैं कि आप कैसे कह सकते हैं कि नहीं जाना चाहते हैं। बहरहाल केंद्र सरकार ने सुप्रीम अदालत को बताया कि केंद्र सरकार श्रमिकों के लिये ट्रेन का का संचालन तबतक करते रहेगी जबतक सभी श्रमिक अपने घर न पहुंच जाये। 

बहरहाल इस मामले का संज्ञान सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही लिया था और कहा था कि श्रमिकों की हालत खराब है। सरकार ने जो इंतजाम किये हैं वे नाकाफी हैं। जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एमआर शाह ने केन्द्र, राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को नोटिस भेजते हुए 28 मई तक जवाब  मांगा था।