राहुल एजुकेशन ग्रुप प्रधानमंत्री के स्किल आधारित शिक्षा शुरू करने वाला संभवत: पहला शैक्षणिक संस्थान बना : सेक्रेटरी राहुल तिवारी।

राहुल एजुकेशन ग्रुप प्रधानमंत्री के स्किल आधारित शिक्षा शुरू करने वाला संभवत: पहला शैक्षणिक संस्थान बना : सेक्रेटरी राहुल तिवारी।

टाइम्स खबर डेस्क timeskhabar.com

मुंबई के मीरा-भाईंदर से लेकर उत्तर प्रदेश तक राहुल एजुकेशन ग्रुप का विस्तार है। इस ग्रुप के अंतर्गत प्राइमरी स्कूल से लेकर डिग्री कॉलेज, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज तक है। यह संस्थान एक  बार फिर सुर्खियों में स्किल बेस्ड एजुकेशन के लिये। राहुल एजुकेशन ग्रुप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्किल बेस्ड एजुकेशन कार्यक्रम को पूरा करने वाला संभवत: पहला शैक्षणिक संस्थान बन गया है। यहां इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल , ऑटोमोबाइल और कंप्यूटर के शुरूआती रोजगार आधारित कार्यक्रम शुरू किये गये हैं। राहुल एजुकेशन ग्रुप के चेयरमैन पंडित ललन तिवारी, सेक्रेटरी राहुल तिवारी और संचालिका कृष्णा तिवारी हैं। इन्होंने कठिन मेहनत कर इस ग्रुप के एक मुकाम तक पहुंचाया। संस्थान के सेक्रेटरी राहुल ने कहा कि  इस शिक्षण संस्थान के अंतर्गत कम से कम 100 स्कूल-कॉलेज समेत शिक्षा संस्थान हों।  

- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्किल बेस्ड शिक्षा पर आधारित कार्यक्रम राहुल एजुकेशन ग्रुप में :

राहुल एजुकेशन ग्रुप हमेशा से ही स्किल बेस्ड एजुकेशन का पक्षधर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्किल बेस्ड शिक्षा के सपने को पूरा करने के लिये हमारी शिक्षा संस्थान ने पाठ्यक्रम में शामिल करने की पहल की है चार स्कूलों में। संभवत: यह देश का पहला संस्थान है। हमने इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल, ऑटोमोबाइल कंप्यूटर के शुरूआती रोजगार उन्मुख कदम को इस स्किल बेस्ड छठी के  पाठयक्रमों में इस तरह जोड़ा है जो आगे उन्हें जीवनभर काम आयेगा। मेरा मानना है कि शिक्षा वह होनी चाहिये जो देश की औद्योगिक और व्यवसायिक जरूरतों को मुताबिक हो। बाजार के जरूरत को ध्यान में रखते हुए एजुकेशन दिया जाये तो इससे हर छात्र को लाभ होगा। और उनके जीवन को मजबूती देगा। बच्चों में प्राथमिक स्कूल से हीं उनके इंटरेस्ट को देखते हुए  शिक्षा आधारित हो तो बेहतर। अभी इसकी शुरूआत चार स्कूलों में किया है। मुंबई से लगे एक भाईंदर, दो नालासोपारा और एक बोईसर में है।

- सरकार द्धारा शिक्षा में किये जा रहे सुधार  : 

सरकार लगातार शिक्षा में सुधार कर रही है। उनका दूसरा सराहनीय कार्य है कि जब कोई छात्र डिग्री लेकर निकले तो वह कोई न कोई प्रोफेशन से जुड़ी डिग्री भी उनके हाथ हो। इस दिशा में शुरूआत हो चुकी है। मैं अन्य मीडिया को दिये इंटरव्यू में भी कहा है कि अगर डिग्री के तीन साल के कोर्स को, अगर 4 साल जैसे इंजीनियरिंग के 4 साल के कोर्स जैसा बनाकर उसमें जोड़ते हुए विशेषज्ञ का स्वरूप दिया जाये, तो वह और भी बेहतरीन बन सकेगा। यह उसी तरह होगा जैसे बीएससी की डिग्री को कुछ प्रोफेशनल कोर्सज में डालकर उसकी विशेषज्ञता वाली डिग्री बना दिया गया है। जैसे कला के क्षेत्र में अब ड्रामा, फिल्म और अन्य को डिग्री में शामिल कर अब नई दिशा में बढा दिया गया है। इसे अब विशाल पैमाने पर करने की जरूरत है। इसके अलावा सरकार का एक और काम सराहनीय है कि शिक्षा देने वालों को और अधिक शिक्षित करने का। शिक्षा को और स्तरीय बनाने के लिये शिक्षकों के जरूरी बी-एड कोर्स को चार साल किया जा रहा है। यानी जो लोग पढाने-लिखाने के क्षेत्र में अपनी रूचि से आना चाहते हैं वे ही आयेंगे। नहीं तो यह देखा गया है कि वे छात्र-छात्राएं भी इस फिल्ड में आ रहे हैं जिन्हें कहीं और जॉब नहीं मिल पा रही है। मीडिया में आये एक सर्व में भी इस बात का उल्लेख था कि ऐसे कई शिक्षक हैं जो इस क्षेत्र में नहीं आना चाहते थे। मजबूरी थी। ऐसे लोग कितने मन से पढायेंगे। इसमें बदलाव जरूरी है। मेरा सुझाव यह भी है कि शिक्षक बनने के लिये किसी डिग्री के साथ 5 साल का इंटीग्रेटेड कोर्स बनाया जाये तो अच्छा रहेगा। इससे बेहतर परिणाम मिलेंगे। 

- वर्तमान शिक्षा प्रणाली रिसर्च आधारित बनाने की जरूरत  :

शिक्षा प्रणाली में जिस कुशलता की जरूरत है उसमें अभाव दिख रहा है। मेरा मानना है कि ऐसे विषय को मुख्य विषय के रूप में क्यों पढाये जिसकी जरूरत जिंदगी भर प्रोफेशनल लाइफ में नहीं होती। जैसे मुगल काल के बादशाहों या अन्य राजाओं का जन्म कब हुआ? उसके पिता का क्या नाम था? उसके बेटे का क्या नाम था ... । दरअसल उस ज्ञान की जरूरत अधिक है जिससे जीवन बेहतर हो सके। बिजनेश प्रबंध से जुड़े कॉलेज देख लें। वे उन्हीं छात्रों को प्राथमिकता देते हैं जिनके पास विभिन्न क्षेत्रों के अनुभव होते हैं। मेरा मानना है कि शिक्षा प्रणाली को रिसर्च आधारित बनाने की जरूरत है। इसमें सबसे बड़ी बाधा है इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव का। स्तरीय शिक्षक की भी कमी है। 

- स्कूल-कॉलेजों में प्रिंसिपल की नियुक्ति को आपाधापी :

स्कूल-कॉलेजों में प्रिंसिपल की नियुक्ति जो निर्धारित मापदंड हैं सरकार के उसी आधार पर किया जाता है। लेकिन इस दिशा में भी परिवर्तन की जरूरत है। शिक्षा हीं देश का भविष्य है। इस लिये जरूरी है कि प्रिंसिपल, वाइस प्रिंसिपल और प्रबंधन के क्षेत्र में आईएएस व आईपीएस स्तर के लोगों को दिया जाना चाहिये। तात्पर्य जो अपने विषयों पर पूरी तरह से पारंगत और सर्वश्रेष्ठ हो। कहीं से कोई सवाल हो तो पूरा करने में सक्षम हों। इससे समाज के हर क्षेत्र को लाभ होगा। अन्यथा इन दिनों हाल ऐसा है कि स्कूल-कॉलेज में पढाये कुछ ही वर्ष हीं होते हैं कि लोग प्रिंसिपल बनने बनने की कोशिश में लग जाते हैं। बेहतर होगा कि आयु सीमा को हटाकर एंट्रेंस टेस्ट के माध्यम से मौका दिया जाना चाहिये। 

 

मुख्य बातें : 

- राहुल एजुकेशन ग्रुप की शुरूआत पंडित ललन तिवारी ने की। और इसे आगे बढा रहे हैं उनके पुत्र राहुल तिवारी जो संस्थान के सेक्रेटरी हैं। बहु कृष्णा जो मुख्य संचालिका हैं। 

- इस ग्रुप के अंदर 50 से अधिक शिक्षण संस्थाएं हैं। जहां प्राइमरी स्कूल से लेकर डिग्री कॉलेज, इंजीनियरिंग और मेडिकल तक की पढाई होती है।

- शिक्षा संस्थान की बनियाद साल 1992 में रखा गया। इसी वर्ष मदर-मेरी-हाई स्कूल की शुरूआत की। साल 1997 में दूसरा स्कूल फादर-जोसेफ हाई स्कूल शुरू किया गया जो गर्ल्स स्कूल था। साल 1999 में तीसरा स्कूल क्वीन-मैरी ओपन किया गया। यह सिलसिला लगातार आगे बढता जा रहा है। 

 

 - उत्तर प्रदेश से मुंबई आकर शिक्षा के क्षेत्र में गौरवशाली कार्य :

मेरे दादाजी आजादी के तीन साल बाद ही यानी साल 1950 में चंदौली(वाराणसी) से मुंबई आ गये। शुरूआती दौर में उन्होंने किराने की दुकान शुरू की। इसका विस्तार हुआ बिजनस को देखने के लिये और लोगो की जरूरत थी इसी कड़ी में मेरे पिताजी पंडित ललन तिवारी साल 1966 में मुंबई आ गये। उन्होंने किराने के कारोबार को रिटेल से होलसेल के कारोबार में विस्तार दिया। वे स्थानीय लोगो के बीच काफी लोकप्रिय भी थे। हमेशा सभी की मदद करते। इसी कड़ी में वे दक्षिण भारत कॉपरेटिव बैंक के लिये काफी सक्रिय रहे। कई पदों पर कार्य किये। एक समय ऐसा आया जब वे इसके चेयरमैन बने। 80 के दशक में मुंबई के पश्चिमी रेलवे के क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग बसने लगे थे। पिताजी ने मित्रों और शुभचिंतको की सलाह पर इस क्षेत्र में कंस्ट्रक्शन का नया कार्य शुरू किये। बात 1989 की है। इमारते बनते हीं बिक गई। सभी लोग इससे उत्साहित हुए। इसी बीच फ्लैट खरीदने वालों का पहला सवाल यही होता था कि बच्चों के लिये निकट में कोई स्कूल है क्या? यह सवाल ने पिताजी को स्कूल बनाने की क्षेत्र में प्रोत्साहित किया। और इस तरह साल 1992 में पहला स्कूल स्थापित किया गया। नाम था - मदर-मेरी-हाईस्कूल। साल 1997 में दूसरा स्कूल फादर-जोसेफ हाई स्कूल शुरू किया गया जो गर्ल्स स्कूल था। साल 1999 में तीसरा स्कूल क्वीन-मैरी ओपन किया गया। यह सिलसिला लगातार आगे बढता जा रहा है। तीसरे स्कूल मैरी-क्वीन की स्थापना में मेरी भूमिका अहम रही। यह मेरे हीं देखरेख में बना। स्कूल बनाने से लेकर इसके परमिशन तक में।

- प्राथमिक स्कूल के बाद  डिग्री कॉलेज व प्रोफेशनल कोर्स की शुरूआत :  

सब कुछ उस समय के हालात और परिस्थितियों अनुसार होता गया। केजी से पढाई करने के बाद बच्चे जब मैट्रिक तक पहंचे तब सवाल उठा कि अब क्या? ये बच्चे कहां जायेंगे? इसी कड़ी पहले जूनियर और फिर डिग्री कॉलेज बनाने की ओर योजना बनी और उसे साकार किया गया। यह सिलसिला चलता रहा और इसका विस्तार उत्तर प्रदेश तक हुआ। इसी कड़ी में बी.एड, एम.एड लॉ कॉलेज, इंजीनियरिंग, मेडिकल कॉलेज, आईआईटी, आर्किटेक्चर कॉलेज और पॉलिटेक्निक भी बना। 

- सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड के पाठ्यक्रम :    

CBSE (सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन) और ICSE (इंडियन सर्टिफेकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन) के लिये बने नॉर्मस काफी सख्त और बंधनकारी है। इनके शत-प्रतिशत  नियमों को निभाने में स्कूलों को अपना सब कुछ गवां देना पड़ता है। शिक्षा संस्थान को होने वाली आमदनी का 50 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ शिक्षकों की सैलरी में चला जाता है। यहां तक कि शिक्षकों को अपडेट करने और उन्हें रिफ्रेशर कोर्स कराने की जिम्मेदारी भी स्कूलों की होती है। इसके अलावा हर स्कूल चाहता है कि उनके यहां बेहतर शिक्षक हों। वे अधिक से अधिक सैलरी देने को तैयार होते हैं। छात्रों के माता-पिता हर प्रकार की सुविधाओँ की मांग करते हैं जैसे - क्लास रूम और बसों में एसी व सीसीटीवी कैमरे, कक्षा में शानदार बेंच, साउंड सिस्टम, बसों में अतिरिक्त कर्मचारी, एक महिला कर्मचारी, जीपीएस सिस्टम और क्लीनर आदि। कई मुद्दों को लेकर छात्रों के अभिभावक और स्कूल मैनेजमेंट के मतभेद होते हैं। 

- संस्थान के सचिव राहुल और उनका परिवार :  

मैं पहले ही बता चुका हूं कि मुंबई सबसे पहले मेरे दादा जी फिर पिताजी आये। शिक्षण संस्थानों की मजबूत बुनियाद मेरे पिता पंडित ललन तिवारी जी ने ही रखी। वे हीं इसके चेयरमैन हैं और आज भी पूरी तरह से सक्रिय हैं। मैं अपने शिक्षा संस्थान का सेक्रेटरी हूं जिसकी जिम्मेदारी आप खुद भी समझते हैं। मेरी पत्नी कृष्णा तिवारी राहुल एजुकेशन ग्रुप के सारे स्कूलों का संचालन करती हैं। एम.एससी और एमएड हैं। स्कूलों के करिकुलम बनाने में अहम भूमिका है। पुत्र उत्सव बीएमएस की पढाई कर रहा है और पुत्री सौम्या 11वीं में पढ रही है।  मैं अकेला भाई हूं। मेरी छह बहनें हैं। इसलिये शुरू से एक विशेष जिम्मेदारी थी मुझ पर। बहरहाल मेरी पढाई की शुरूआत दादर स्थित सेंट एंटोनी हाईस्कूल से  हई। लेकिन जब हम सभी परिवार दादर से भाईंदर शिफ्ट हुए तो मेरा दाखिला पोद्दार स्कूल में कराया गया। जब छठी क्लास पहुंचा तो पिताजी ने मेरा दाखिला नासिक स्थित भोंसले मिलिट्री स्कूल कराया। इसके बाद कॉलेज की पढाई प्रहलाद राय डालमिया लायंस कॉलेज मलाड से पूरी की। ग्रेजुएशन के बाद पूरी तरह से मैं पिताजी के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा। वैसे तो मैं 12 वीं कक्षा के बाद से हीं पिताजी को मदद करने लगा था। नासिक स्थित भोंसले मिलिट्री स्कूल में पढना मेरे लिये काफी रोमांचकारी रहा। देशप्रेम क्या होता यह सजिंदगी से जाना। जिंदगी में अनुशासन का क्या महत्व होता है यह जानने व समझने को मिला।