बिहार चुनाव : आरजेडी-कांग्रेस और जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी गठबंधन के बीच ही टक्कर संभव। एनडीए को भारी नुकसान की संभावनाएं ।

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बिहार चुनाव : आरजेडी-कांग्रेस और जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी गठबंधन के बीच ही टक्कर संभव। एनडीए को भारी नुकसान की संभावनाएं ।

राजेश कुमार, टाइम्स खबर timeskhabar.com

दिल्ली विधान सभा चुनाव संपन्न होने के बाद अब बिहार विधान सभा चुनाव की गूंज तेज होने लगी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्धारा दिल्ली में आयोजित हुनर हाट में लिट्टी चोखा खाने के बाद चुनाव की चर्चा और तेज हो गई है। सभी लोगों के बीच एक ही चर्चा है कि बिहार में क्या होगा? चुनावी नतीजे क्या होंगे यह तो चुनाव के बाद ही मालूम चल पायेगा लेकिन एक बात तय है कि दिल्ली की तरह बिहार में भी सीधा मुकाबला होगा आरजेडी-कांग्रेस (RJD-Cong) और जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी ( JDU-BJP-LJP) गठबंधन के बीच। बाकि अन्य पार्टियां सुर्खियों में रहेंगी लेकिन जैसे जैसे चुनावी ध्रुवीकरण बढता जायेगा वैसे वैसे मतदाताओं के दोनो मजबूत गठंबधन की ओर विभाजित होने की संभावनाएं बढती जायेंगी। 

इसी साल नवंबर तक विधान सभा चुनाव होने हैं। यहां सीधा मुकाबला है आरजेडी-कांग्रेस बनाम जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी गठबंधन के बीच। दिल्ली और बिहार चुनाव में एक अंतर यह है दिल्ली में जहां आम आदमी पार्टी के पास साफ तस्वीरें थी कि पार्टी जीतेगी तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल होंगे। वहीं बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार तय नहीं कर पायी थी। लेकिन बिहार में दोनों पक्षों की ओर से मुख्यमंत्री उम्मीदवार साफ है। आरजेडी चुनाव जीतती है तो मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होंगे और एनडीए चुनाव जीतता है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार होंगे। 

दिल्ली विधान सभा चुनाव में आप के सामने चुनाव लड़ने के अहम मुद्दे थे विकास-विकास-विकास। लेकिन बीजेपी विकास को मुद्दा बनाने की वजाय अंध राष्ट्रवाद पर चुनाव लड़ रही थी जो सफल नहीं हुई। बिहार में हिन्दू-मुस्लिम कार्ड या अंध राष्ट्रवाद का मुद्दा भी नहीं चलने वाला है। ऐसे में यह सवाल है कि सत्तारूढ जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी क्या आरजेडी को चुनाव में टक्कर देने की स्थिति में है? 

जेडीयू गठबंधन के पास विकास के नाम पर भी कहने को कुछ नहीं । राजनीतिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि राष्ट्रवाद का मुद्दा बिहार में चल नहीं पायेगा। ऐसे में एक ही मुद्दा है सामाजिक न्याय का। इसलिये बीजेपी ने आखिरकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला किया।

आईये जानते हैं कि कौन कौन से मुद्दे हैं जो सत्तारूढ जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी को नुकसान पहुंचाने और आरजेडी के पक्ष जाता दिख रहा है : 

1. झारखंड अलग होने के बाद बिहार में विकास के लिये जो भी कोशिशें की गई हों वो सार्थक नहीं दिखी। बेरोजगारी की संख्या लगातार बढती जा रही है। कल-कारखाने की भारी कमी है। खेती को भी इंडस्ट्री का रूप नहीं दिया जा सका। नदियों को बांध कर नहरें नहीं बनाई जा सकी। गंगा नदी की सफाई भी नहीं हो पाई। शहर से जल निकासी तक की व्यवस्था दुरूस्त नहीं है। बिहार की जमीनें इतनी उपजाऊ है कि दो-तीन फसलें हो सकती हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्य बन सकता था लेकिन ऐसा नहीं हो सका। 

2. विकास से अधिक आरक्षण के मुद्दे पर जेडीयू-बीजेपी को संकट का सामना करना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण के दायरे को सीमित करते जा रही है। ओबीसी कैटगेरी में जो टॉपर होंगे तो भी उनके सामान्य कोटे में जाने पर रोक लगा दी गई। ओबीसी समर्थकों का मानना है कि केंद्र की सरकार के पास इतनी क्षमता है कि वह संसद से कानून पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रोक लगा सकती है लेकिन सरकार ने ओबीसी हितों का ध्यान नहीं दिया। इस बात को लेकर नाराजगी है और यह नाराजगी बीजेपी के खिलाफ वोटो में तब्दील हो सकती है। ओबीसी का कहना है कि हमने अगड़े वर्ग के आरक्षण का समर्थन किया लेकिन हमारे साथ न्याय क्यों नहीं? 

3. राम मंदिर ट्रस्ट : राम जन्म भूमि तीर्थ ट्रस्ट में 15 सदस्य हैं लेकिन इनमें से एक भी ओबीसी को नहीं रखा गया है। इस बात को लेकर ओबीसी समुदाय में खासी नाराजगी है। उनका कहना है कि जब राम मंदिर आंदोलन हुए तो सडको पर ओबीसी समुदाय के लोग ही थे बड़ी संख्या में । आज जब मंदिर बनने की स्थिति बनी है और ट्रस्ट बनाया गया है तो उसमे ओबीसी के लिये जगह नहीं। अगड़े वर्ग के लोगों का कहना है कि इसके लिये उन्हें दोषी नहीं ठहरा सकते। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ही देखरेख में हुआ है और प्रधानमंत्री खुद ओबीसी हैं। इसका प्रभाव बिहार चुनाव मे देखा जा सकता है। 

4.हिन्दू-मुस्लिम : सीएए और एनआरसी को लेकर जिस प्रकार से केंद्र सरकार के खिलाफ मुस्लिम समुदाय में गुस्सा है वह चुनाव में दिख सकता है। कुछ मुस्लिम वोट मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की वजह से उनके पक्ष में जाता रहा है लेकिन इसबार ऐसा संभव नहीं दिख रहा। 

बहरहाल आरजेडी-कांग्रेस और जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी गठबंधन के अलावा कई राजनीतिक पार्टियां चुनाव में उतरने की जोरशोर से तैयारी में हैं। इनमें मुख्य है कन्हैया कुमार के नेतृत्व सीपीआई, राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के नेतृत्व में हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा सेक्यूलर के अलावा और भी राजनीतिक दलें हैं। इनके अलावा चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी सक्रिय हो रहे हैं। इन क्षेत्रीय दलों का कुछ पॉकेट में प्रभाव हो सकता है लेकिन जैसे जैसे वोटो का ध्रुवीकरण होगा उसमें ये लीडर तो जीत सकते हैं लेकिन मुख्य लडाई आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन और जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी गठबंधन के बीच ही संभव है। और इसी लाइन पर वोटो का ध्रुविकरण भी संभव है। 

 

Rajesh kumar, globalkhabar.com