टाइम्स खबर timeskhabar.com
मुख्य आयकर आयुक्त पद से सेवनिवृत संगीता गुप्ता बहुमुखी प्रतिभा की धनी है। उन्हें शुरू से चित्राकारी और कविता के क्षेत्र में रूचि रही है। इसी वजह से बतौर कवयित्री और चित्रकार के रूप में वे देश के अगली पंक्ति में हैं। प्रतिष्ठित नामों में से एक।
उनके चित्रों की देश-विदेश में 30 एकल और 200 से अधिक सामूहिक प्रदर्शनियाँ आयोजित हुईं हैं। कई कविता संग्रह और हिंदी-अंग्रेजी में कुछ किताबें प्रकाशित हैं। संगीता गुप्ता की इधर की कविताओं में प्रेम का रंग और चढ़ा है और वह चटख, धूसर, मटमैला, और फीके रंगों में तरह-तरह से सामने आता है। उनकी संवेदना कभी चित्र का रूप लेती है और कभी शब्दों में ढल जाती है। चित्रों के साथ शब्दों का प्रयोग करने वाली वे विरल चित्रकार हैं। कविता और पेंटिग का साहचर्य उनकी ‘मुसव्विर का ख्याल’ पुस्तक में बखूबी देखा जा सकता है. उनकी कविताएँ उर्दू नज़्मों के नज़दीक बैठती हैं। इतना ही नहां वे फिल्म निर्माता भी है। कई डॉक्यूमेंट्री बना चुकी है।
इनके कविताओं और चित्रों का संग्रह किया है समालोचन ब्लॉगस्पोट ( samalochan.blogspot.com)ने। उनकी कुछ कविताएँ आपके लिये :
1)
हरसिंगार इस उम्मीद में
रात भर झरता है कि
किसी सुबह जब तुम आओ तो
तुम्हारी राहें महकती रहें
बेमौसम भी बादल बरसते हैं कि
कभी तो तुम्हें भिगा सकें
सूरज उगता-डूबता है कि
आते-जाते तुम्हें देख लेगा
रात तुम्हारे साथ सोने को
बहुत तरसती है
चांद कब से लोरियो का खज़ाना
समेटे बैठा है कि
तुम आओ तो तुम्हें थपक दे
मेरे साथ पूरी कायनात को
तुम्हारा इंतजार रहता है.
2)
ज़मीन की तरह मैं भी
रोशनी के सफर पर हूँ
ख्वाहिश है
रोशनी की रफ्तार से चलूं
और वक्त थम जाये
ठहर जाए
जिस्म से परे
रूह निकल जाये
मुसलसल
जमीन की तरह
मैं भी
रोशनी के सफर पर हूँ.
3)
कल उम्मीदें बोईं हैं
गमलों में
देखें कब
खिलती हैं.
4)
मत दो वैभव
मत दो सफलता
मत दो यश
बस मेरे प्रभु
रहने दो मेरे साथ
मेरे प्रेम की
सामर्थ.
5)
तूफान अक्सर
बिन बताये ही आते हैं
उथल-पुथल मचा कर
लौट जाते हैं
ज़िंदगी ब-दस्तूर चलती है
फ़क़त आप-आप नहीं रहते
वक़्त बदला जाता है
कई दर्द कई जख़्म
साथ हो लेते हैं.
6)
फिर सावन आया
नीम, जामुन और नन्हे पौधे
सब भीग रहे
सावन सबके लिए आया
मीठी फुहारें सबको महका रहीं
तुम भी कहीं भीग रहे होगे
कुछ सावन में
कुछ यादों में
कुछ मेरे करीब होने के एहसास में
इन सब को भीगते देखना
अच्छा-सा लगता
मैं भी अरसे बाद
मुस्करा पड़ी हूं
देखो न
फिर सावन आया .
प्रकाशित कृतियाँ : वीव्ज़ ऑफ टाइम (2013), विज़न एंड इल्यूमिनेशन (2009), लेखक का समय (2006), प्रतिनाद (2005), समुद्र से लौटती नदी (1999), इस पार उस पार (1996), नागफनी के जंगल (1991), अन्तस् से (1988). बेपरवाह रूह (2017), मुसव्विर का खयाल (2018 ) रोशनी का सफ़र (2019) आदि। 30 एकल एवं 200 से अधिक सामूहिक चित्रकला प्रदर्शनियाँ आयोजित.अनुवाद : 'इस पार उस पार’ बंगला में एवं 'प्रतिनाद’ अंग्रेजी, जर्मन और बंगला में अनूदित.
नोट - कवयित्री और लेखिका संगीता गुप्ता के कविता और चित्र samalochan.blogspot.com से लिये गये हैं।