कुपोषण से बचायें देश को।

 कुपोषण से बचायें देश को।

अभी हाल हीं में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के निकट अन्नाज खरीदी केंद्र पर लगभग पांच हजार क्विंटल गेहूं सड़ गया। जिसकी बाजार में कीमत लगभग 70 लाख रूपये है। वहीं दूसरी ओर पिछले दिनों उड़ीसा के एक गांव में एक गरीब महिला ने भुखमरी से विवश होकर अपने एक साल के बेटे को एक हजार रुपये में बेचने की कोशिश की।

आप खुद हीं समझ सकते हैं कि देश के प्रति हमारे व्यवस्थापक कितने ईमानदार हैं। उपरोक्त बातें देश की दो तस्वीरों की ओर हम सभी का ध्यान आकर्षित करती हैं। एक ओर जहां अन्नाज सड़ रहा है वहीं दूसरी ओर लोग भूख से मर रहे हैं। ऐसा सिर्फ इसलिये है कि देश और राज्यों की सरकारें चलाने वालों के बीच तालमेल के अभाव के साथ साथ भ्रष्टाचार का बोलबाला है। देश में इतने मंत्री हैं और इतनी बड़ी ब्यूरोक्रेसी है, बावजूद हम पिछले 60 साल में एक सिस्टम नहीं बना पाये कि उत्पादित अन्नाज को कैसे बचाया जाये। ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसी ब्यूरोक्रेसी किस काम की।

भारत कुपोषण की चपेट में –

यह सच्चाई है कि देश में राजनीतिज्ञ और ब्यूरोक्रेट्स के बिना सिस्टम नहीं चल सकता। लेकिन भ्रष्टाचार ने सिस्टम चलाने वाले कई अधिकारियों की सोच को नष्ट कर दिया है। उनकी सोच सामंतवादी हो चुकी है। वे गरीबों के उत्थान के प्रति सोचना भी नहीं चाहते। और कभी विकास के बारे में सोच भी लिये तो योजना बना कर उसे अमल में नहीं ला पाते। उपलब्ध आंकड़ो के मुताबिक पूरी दुनिया में भूख से त्रस्त 81 देशों की कतार में भारत 67वें स्थान पर पहुंच गया है।

अन्नाज को बचाने के उपाय –

किसान द्वारा उत्पादित अन्नाजों को जिस प्रकार से बर्बाद होने के लिये छोड़ दिया जाता है और हजारों टन अन्नाज बर्बाद हो जाते हैं। ऐसे में उसे बचाने के लिये विभिन्न उपायों पर विचार करना चाहिये –

1. केंद्र और राज्य सरकारें अन्नाजों को सुरक्षित रखने के लिये और भंडार बनाये। साथ हीं उनकी खपत के लिये योजना बनायें।

2. गरीब परिवारो को महीने में एक बार राशन कार्ड पर राशन दिया जाता है। इसे बढाकर कम से कम 4 महीने या 6 महीने का राशन एक बार दे दिया जाये। इससे खुली आकाश में अन्नाज सड़ने की अपेक्षा गरीब परिवार को मिल जायेगा। सरकारी खजाने में थोडे पैसे भी आ जायेंगे। योजना आयोग के एक अध्ययन के अनुसार एक रुपये का अनाज उपभोक्ता तक पहुंचाने में सरकार के 3 रुपये 65 पैसे खर्च हो जाते हैं। दूसरी तरफ अनाज खुले में रखने के कारण लगभग 60 हजार करोड़ रुपये का अनाज हर साल खराब हो जाता है। इससे बचने के लिये राशन कोटा को एक महीने से बढा कर चार या छह महीने का राशन एक साथ दिये जाने से कई लाभ होंगे।

3. सरकार को ऐसी रणनीति अपनाना चाहिये कि वे जिस किसान से अन्नाज खरीदते हैं उनके पास हीं तब तक रखें जब तक सरकारी गोदाम में अन्नाज रखने की व्यवस्था न हो। और मुवाअजे के तौर पर उन्हें पैसे दे दें। इससे सरकार और किसान दोनो को हीं फायदा होगा। साथ हीं अन्नाज को सड़ने से भी बचाया जा सकेगा।

बहरहाल, हर हाल में अन्नाज को बचाने की कोशिश करनी चाहिये। यदि सरकार अन्नाज को सड़ने से बचाती है तो देश में जहां कुपोषण में भारी कमी की जा सकेगी वहीं निर्यात कर धन कमाने की भी व्वयवस्था हो सकती है।