भाजपा को चुनावी झटका, वे खबरें जो इन नतीजों से निकल रही हैं : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

भाजपा को चुनावी झटका, वे खबरें जो इन नतीजों से निकल रही हैं : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

दो राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव और अनेक राज्यों के उपचुनावों के नतीजों ने भाजपा को एक ऐसा झटका दिया है, जिसकी उम्मीद उसके नेता नहीं कर रहे थे। ये चुनाव जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त किए जाने की पृष्ठभूमि में हो रहे थे। जम्मू और कश्मीर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित भाजपा के अन्य नेता चुनाव में मुद्दा बना रहे थे। इस मुद्दे पर सरकार को देश की एक बहुत बड़ी आबादी की समर्थन भी हासिल है। देश की विशाल आबादी इस बात से खुश है कि प्रधानमंत्री ने आखिरकार साहस दिखाकर कश्मीर में कुछ करने का निर्णय लिया। लेकिन इसके बावजूद देश भर में हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी मनचाहा नतीजा नहीं पा सकी।

यह सच है कि महाराष्ट्र और हरियाणा में वह सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है और दोनों राज्यों में सरकार बनाने का उसका दावा भी मजबूत है, लेकिन यह भी सच है कि उन दोनों राज्यों में उसका प्रदर्शन 2014 की लोकसभा, उसी साल हुए विधानसभा और 2019 की लोकसभा के चुनावी नतीजों से खराब रहा है। लोकसभा में हुए चुनाव में महाराष्ट्र में उसकी पार्टी के उम्मीदवारा 122 विधानसभा सीटों पर आगे रहे थे, जबकि इस चुनाव में यह संख्या घटकर 100 के आसपास हो गई है। प्रदर्शन बेहतर कर भाजपा शिवसेना को सबक सिखाने की उम्मीद पाल रही थी, लेकिन अब वह खुद शिवसेना के राजनीतिक दांवपेच की शिकार होती दिख रही है। हरियाणा में तो उसका मतप्रतिशत पिछले लोकसभा में मिले मतप्रतिशत से 22 प्रतिशत कम हो गया। और यह सब उस स्थिति में हुआ, जब मुख्यमंत्री खट्टर को एक लोकप्रिय, स्वच्छ छवि और कर्मठ नेता की छवि बनी हुई थी। वहां तो मुख्यमंत्री सहित दो मंत्रियों को छोड़कर अन्य सारे मंत्री भी चुनाव हार गए। भाजपा को बहुत उम्मीद थी कि उसे वहां भारी बहुमत मिलेगा, क्योंकि कश्मीर मसले का संबल मिलने का भी उन्हें भरोसा था। वे 90 में से कम से कम 75 सीटों पर जीत हासिल करने की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन विपक्षी पार्टियों में भारी बिखराब के बावजूद भाजपा 40 के आंकड़े को छू पाई है।

इन दोनों राज्यों में ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों में जहां उपचुनाव हुए, वहां भारतीय जनता पार्टी की छोटी या बड़ी हार ही हुई। गुजरात में 6 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे थे। वहां भाजपा मात्र 2 सीट ही जीत पाई और कांग्रेस शेष 4 सीटों पर जीत गई। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी उसका बुरा हाल रहा। बिहार में तो उसके नेतृत्व वाले राजग को 5 विधानसभा सीटों में से मात्र एक सीट पर जीत हासिल हुई, जबकि उसके चार विधायकों के सांसद बन जाने के कारण वहां की चार सीटें खाली हुई थीं। उत्तर प्रदेश में भाजपा अभी भी अपनी विरोधी पार्टियों पर भारी है, लेकिन वहां भी उसने गंवाया ही गंवाया है। 11 में से 10 सीटें तो उसके विधायकों द्वारा ही खाली की गई थी, लेकिन उनमें से तीन उसने गंवा दिए। हालांकि 11 में से 7 सीट जीतने पर वह गर्व कर सकती है। पंजाब में भी वह कांग्रेस की जीत के रथ को रोक नहीं सकी। हिमाचल प्रदेश को लेकर वह संतोष कर सकती है, लेकिन वह तो अपवाद ही था।

सवाल उठता है कि आखिर भाजपा का सितारा पस्त होता क्यों दिखाई पड़ा? उसने कश्मीर के भावनात्मक मुद्दे पर चुनाव लड़ा था। इस बीच एक सर्जिकल स्ट्राइक भी पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकियों के लांच पैड पर किया गया था और उसे बहुत प्रचारित भी किया गया। लखनऊ में कमलेश तिवारी की हत्या के मामले को भी तूल देकर हिन्दू बनाम मुस्लिम फीलिंग को भुनाने की कोशिश हुई। इन कोशिशों में उसे खासकर खबरिया न्यूज चैनलों से बहुत सहायता भी मिली और भावना का ऐसा बेग बहाने की कोशिश हुई, जिससे भाजपा हरियाणा में 75 पार कर जाय और महाराष्ट्र में पिछली विधानसभा के चुनाव में उसे और शिवसेना को मिली संयुक्त सीटों की संख्या को भी इस बार के नतीजे पा कर जाय। लेकिन जितनी सीटें भाजपा और शिवसेना ने पिछली बार अकेले- अकेले चुनाव लड़कर जीती थी, दोनों की सीटें इस बार कम हो गई।

भाजपा के लिए सबसे बुरी खबर यह है कि हिन्दी प्रदेशों के मतदाताओं पर नरेन्द्र मोदी का बुखार उतरता नजर आ रहा है। उसके लिए एक अन्य बुरी खबर यह है कि मुसलमानों और पाकिस्तान के नाम पर भावनाओं को भड़काकर मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की नीति भी अब कम काम कर रही है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? यदि हम इसके कारणों का विश्लेषण करें, तो यह भारतीय जनता पार्टी और उसके नेता मोदी के लिए और भी बुरी खबरें देगा। दरअसल, देश के लोगों में मोदी पर जो भरोसा था, वह कमजोर होने लगा है, क्योंकि लोगों की आर्थिक कठिनाइयां लगातार बढ़ती जा रही हैं और उन्हें अपना भविष्य भी बुरा दिखाई पड़ने लगा है। सरकारी उपक्रमों को या तो बंद करने की कोशिश हो रही है या उन्हें बेचा जा रहा है। सरकार की संपत्तियों का बहुत ही आक्रामक तरीके से सस्ती कीमतों पर बेचा जा रहा है। यह निजीकरण के नाम पर किया जा रहा है, लेकिन इसके कारण लाखों लोग सीधे प्रभावित हो रहे हैं और करोड़ों लोगों को अपना भविष्य खराब लगने लगा है। बीएसएनएल और एमटीएनएल का भविष्य खराब है। उसके बंद कर दिए जाने की खबरें आ रही थीं। उनके कर्मचारियों की तनख्वाह के लाले पड़ने की बातें की जा रही थीं। भारत पेट्रोलियम को बेचा जा रहा है। रेलगाड़ियों तक को बेचने की योजना सरकार के पास है। वे स्टेशनों को बेचने के लिए भी बोली लगा रही है। बैंकों के हाल खराब हैं। पीएमसी बैंक में लाखों लोगो के रुपये डूब रहे हैं। उसके ग्राहक आत्महत्या कर रहे हैं और कुछ की सदमों से भी मौत हो रही है। बैंकों का एक दूसरे के साथ विलय भी हो रहा है और लोग डर रहे हैं कि कहीं बैंकों में जमा उनका रुपया भी डूब न जाय। बैंकों से मिलने वाली ब्याज दर भी बहुत कम हो गई है।

जाहिर है, नरेन्द्र मोदी सरकार को लेकर लोग धीरे धीरे भयभीत होते जा रहे हैं और भाजपा द्वारा फैलाए जा रहे भावनात्मक गुबारे के प्रभाव से धीरे धीरे वे बाहर आने लगे हैं। इस प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है और आने वाले दिनों मे यह प्रक्रिया और भी तेज हो सकती है। भाजपा के लिए सबसे बुरी खबर यही है।

नोट - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचार हैं)