भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के जनक हैं डॉ विक्रम साराभाई।

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भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के जनक हैं डॉ विक्रम साराभाई।

- राजेश कुमार, टाइम्स खबर timeskhabar.com

भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में तेजी से उभरता हुआ एक मात्र विकासशील देश है। अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत का नाम है। हालांकि इस क्षेत्र में अभी बहुत कुछ किया जाना है। अंतरिक्ष विज्ञान के महत्व को सबसे पहले भारतीय वैज्ञानिक विक्रम अंबलाल साराभाई ने देश के सामने रखा। आज हम विदेशी सेटेलाइट भी भेज रहे हैं। इतना नहीं चांद पर यान उतारने की कोशिश की गई और आगे भी जारी रहेगा। अंतरिक्ष में मानव भेजने की तैयारी है। आइये जानते हैं अपने महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के बारे में। 

विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पद्मभूषण (1966) से सम्मानित साराभाई का जन्म जैन परिवार में 12 अगस्त 1919 को हुआ था अहमदाबाद में। निधन (30 दिसंबर 1971) से पहले तक वे लगातार शोध करते रहे। वे 86 रिसर्च लिख चुके थे। उनके नेतृत्व में 40 संस्थान खुले। उन्होंने न सिर्फ अंतरिक्ष के क्षेत्र में योगदान दिया बल्कि आणविक ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, आदि क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। 

 

- जन्म अहमदाबाद में 12 अगस्त 1919 को एक जैन परिवार में हुआ। पिता का नाम अंबालाल साराभाई और माता का नाम श्रीमती सरला साराभाई था। 

- प्रारम्भिक शिक्षा उनकी माता सरला साराभाई द्वारा मैडम मारिया मोन्टेसरी की तरह शुरू किए गए पारिवारिक स्कूल में हुई।

- गुजरात कॉलेज से इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वे 1937 में कैम्ब्रिज (इंग्लैंड) चले गए जहां 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की।

- द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने पर वे भारत लौट आए और बंगलौर स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में नौकरी करने लगे, जहां वह महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन के निरीक्षण में ब्रह्माण्ड किरणों पर अनुसंधान के क्षेत्र में काम शुरू किये। 

- उनका पहला अनुसंधान लेख "टाइम डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ कास्मिक रेज़" भारतीय विज्ञान अकादमी की कार्य-विवरणिका में प्रकाशित हुआ। 

- स्वतंत्रता से पूर्व हीं वर्ष 1940-45 के दौरान कॉस्मिक रेज़ पर साराभाई के अनुसंधान कार्य में बंगलौर और कश्मीर-हिमालय में उच्च स्तरीय केन्द्र के गेइजर-मूलर गणकों पर कॉस्मिक रेज़ के समय-रूपांतरणों का अध्ययन शामिल था। 

- द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति पर वे कॉस्मिक-रे भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में अपनी डाक्ट्रेट पूरी करने के लिए कैम्ब्रिज लौट गए। 

- 1947 में उष्णकटीबंधीय अक्षांक्ष (ट्रॉपीकल लैटीच्यूड्स) में कॉस्मिक-रे पर अपने शोधग्रंथ के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्हें डाक्ट्ररेट की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके बाद वे भारत लौट आए।

- भारत वापस आने के बाद उन्होंने  कॉस्मिक-रे भौतिक विज्ञान पर अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा। भारत में उन्होंने अंतर-भूमंडलीय अंतरिक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय संबंध और भू-चुम्बकत्व पर अध्ययन किया।

दरअसल डॉ साराभाई देश के लिये कुछ करने की ठान चुके थे। कठोर परिश्रमी थे। कार्य करने की असाधारण क्षमता थी। फ्रांसीसी भौतिक वैज्ञानिक पीएरे क्यूरी के अनुसार डॉ॰ साराभाई का उद्देश्य जीवन को स्वप्न बनाना और उस स्वप्न को वास्तविक रूप देना था। उन्होंने कई लोगों को स्वप्न देखना और स्वप्न को पूरा करना सिखाया। इसी का परिणाम है भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलता। मैरी क्यूरी पीएरे क्यूरी की पत्नी थी और दोनो ही मिलकर पोलोनियम और रेडियम का अविष्कार किया था। 

- डॉ साराभाई ने सबसे पहले अहमदाबाद में वस्त्र उद्योग अनुसंधान एसोसिएशन (एटीआईआरए) के गठन में अपना योगदान दिया। उस समय कपड़े की गुणवत नियंत्रण के लिये कोई तकनीक नहीं थी।

- डॉ॰ साराभाई द्वारा स्थापित कुछ सर्वाधिक जानी-मानी संस्थाओं के नाम इस प्रकार हैं : 

  1. भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) अहमदाबाद; 
  2. भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद; 
  3. सामुदायिक विज्ञान केन्द्र; अहमदाबाद, 
  4. दर्पण अकादमी फॉर परफार्मिंग आट्र्स, अहमदाबाद; 
  5. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र, तिरुवनन्तपुरम; 
  6. अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद; 
  7. फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर) कलपक्कम; 
  8. वैरीएबल एनर्जी साईक्लोट्रोन प्रोजक्ट, कोलकाता; 
  9. भारतीय इलेक्ट्रानिक निगम लिमिटेड (ईसीआईएल) हैदराबाद और 
  10. भारतीय यूरेनियम निगम लिमिटेड (यूसीआईएल) जादुगुडा, बिहार।

 

डॉ होमी जहांगीर भाभा की मृत्यु (24 जनवरी, 1966) के बाद डॉ साराभाई ने परमाणु ऊर्जा आयोग का कार्यभार संभाला। उन्होंने देश की रॉकेट प्रौद्योगिकी को भी आगे बढाने में बड़ी मदद की। इतना ही नहीं उपग्रह टेलीविजन के विकास में भी अग्रणी भूमिका निभाई। 

- उपग्रह टेलीविजन के विकास में अग्रणी भूमिका। 

- भेषज उद्योग (फार्मासियुटिकल इंडस्ट्री) के भी अग्रदूत थे। उन्होंने भेषज उद्योग में इलेक्ट्रानिक आंकड़ा प्रसंस्करण और संचालन अनुसंधान तकनीकों को लागू किया।

- उन्होंने भारत के फार्मासियुटिल इंडस्ट्री को आत्मनिर्भर बनाने और अनेक दवाइयों और उपकरणों को देश में ही बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

- साराभाई देश में विज्ञान की शिक्षा की स्थिति के बारे में बहुत चिन्तित थे। इस स्थिति में सुधार लाने के लिए उन्होंने सामुदायिक विज्ञान केन्द्र की स्थापना की थी।

डॉ साराभाई सिर्फ विज्ञान ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी रूचि रखते थे। वे नेक इंसान थे :

- वे संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्व, ललित कलाओं और अन्य अनेक क्षेत्रों से जुड़े रहे। 

- अपनी पत्नी मृणालिनी के साथ मिलकर उन्होंने मंचन कलाओं की संस्था दर्पण का गठन किया। 

-  बेटी मल्लिका साराभाई बड़ी होकर भारतनाट्यम और कुचीपुड्डी की सुप्रसिध्द नृत्यांग्ना बनीं।

- कोई भी व्यक्ति बिना किसी डर या हीन भावना के डॉ॰ साराभाई से मिल सकता था, फिर चाहे संगठन में उसका कोई भी पद क्यों न रहा हो। साराभाई उसे सदा बैठने के लिए कहते। वह बराबरी के स्तर पर उनसे बातचीत कर सकता था। वे व्यक्तिविशेष को सम्मान देने में विश्वास करते थे और इस मर्यादा को उन्होंने सदा बनाये रखने का प्रयास किया।

- उनके अंतर्गत 19 लोगों ने अपनी डॉक्ट्रेट का कार्य पूर्ण किया। 

30 दिसंबर 1971 का दिन भारतीय विज्ञान और देश के लिये अच्छा नहीं रहा। इस दिन डॉ साराभाई का तिरूवनंतपुरम (केरल) के कोवलम में निधन हो गया।  इस महान वैज्ञानिक के सम्मान में तिरुवनंतपुरम में स्थापित थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाँचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और सम्बद्ध अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रखा गया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा है। 1974 में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि 'सी ऑफ सेरेनिटी' पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाएगा। उनके सम्मान में निधन के पहले वरसी पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया।