समाप्त होना ही अनुच्छेद 370 की नियति थी। स्थिति सामान्य करने में हमें सरकार की मदद करनी चाहिए : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

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समाप्त होना ही अनुच्छेद 370 की नियति थी। स्थिति सामान्य करने में हमें सरकार की मदद करनी चाहिए : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

संसद ने संविधान की धारा 370 के उन प्रावधानों को समाप्त कर दिया है, जिनसे जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिलता था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय होगा, इसका पता तो तभी लगेगा, जब सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आएगा। फिलहाल हम कह सकते हैं कि उस राज्य का विशेष दर्जा समाप्त हो गया है। भारत का अभिन्न अंग तो वह पहले से ही है, लेकिन विशेष दर्जा समाप्त होने से अब वह देश के अन्य प्रदेशों जैसा ही हो गया है।

देश का भारी बहुमत मोदी सरकार के इस फैसले से खुश है। उनका खुश होना लाजिमी भी है। जम्मू और कश्मीर में पिछले 3 दशकों से जो हो रहा था या हो रहा है, वह किसी भी भारतीय को पसंद नहीं आएगा। अलगाववादी और आतंकवादी उसे भारत से अलग करने की कोशिश कर रहे थे। इस दरम्यान करीब 42 हजार लोग मारे गए। इनमें आतंकवादी, अलगाववादी, सुरक्षाकर्मी व अन्य अनेक ऐसे लोग शामिल हैं, जिनका इस अलगाववादी आंदोलन से कोई लेना देना नहीं था।

अलगाववादियों को लगता था कि उनका मकसद पूरा हो जाएगा। जिन्हें मकसद पूरा होने की संभावना नहीं दिखती थी, वे भी अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए वहां की अशांति को हवा दिया करते थे। उनमें वे राजनेता भी शामिल थे, जो चुनाव लड़कर प्रदेश की सरकार में सत्ता में आया करते थे और केन्द्र सरकार को ब्लैकमेल करने के लिए गुपचुप तरीके से और कभी कभी तो घोषित रूप से अशांति को बढ़ावा देते थे। वे राजसत्ता का इस्तेमाल भी अशांति को बनाए रखने के लिए किया करते थे।

इसलिए धारा 370 को समाप्त कर वैसे लोगों के मनोबल को तोड़ना जरूरी हो गया था। वैसे संविधान की यह व्यवस्था थी भी अस्थाई। इसे संक्रमणकाल की व्यवस्था माना गया था। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इसके अस्थाई होने की बात संविधान में ही लिखी हुई है। इसके लिए किसी प्रकार के अनुमान लगाने या विश्लेषण से निष्कर्ष पर पहुंचने की भी गुंजायश नहीं थी। हम कह सकते हैं कि यह व्यवस्था समाप्त होने के लिए ही बनी थी। जो इसके पक्षधर हैं, वे भी इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि यह अस्थाई व्यवस्था थी।

और जब व्यवस्था अस्थाई थी, तो इसे समाप्त कर क्या बुरा किया गया है? कहा जा रहा है कि इसे समाप्त करने की प्रक्रिया का सही तरीके से पालन नहीं किया गया। सही प्रक्रिया यह थी कि कश्मीर की संविधान सभा की सहमति से इसे भारत के राष्ट्रपति समाप्त करते। पर सवाल यह है कि वहां संविधान सभा अब है ही कहां? कहीं की संविधान सभा स्थाई नहीं होती। संविधान के बनने के साथ ही संविधान सभा का काम पूरा हो जाता है और वह समाप्त कर दी जाती है।

भारत की संविधान सभा भी संविधान बनने और भारत गणतंत्र के अस्तित्व में आने के साथ समाप्त हो गई थी। उसे ही संसद का रूप दे दिया गया था। बाद में संसदीय चुनाव होने लगे और निर्वाचित संसद के अस्तित्व में आने के साथ ही संविधान सभा का अंतिम अवशेष समाप्त हो गया। जम्मू और कश्मीर में भी एक संविधान सभा गठित हुई थी और उसने वहां का संविधान बनाया था। उसी संविधान सभा को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि राष्ट्रपति को अपनी सहमति देकर 370 को समाप्त करवा दे।

जाहिर है, जब संविधान में धारा 370 डाली गई थी, तो माना गया था कि यह अस्थाई ही नहीं, बल्कि बहुत ज्यादा अस्थाई साबित होगी। जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा अपने जीवन काल में ही समाप्त कर देगी। पर वैसा हुआ नहीं, जबकि वही होना चाहिए था। संविधान सभा कश्मीर का संविधान बनाकर समाप्त हो गई और वहीं से वह संवैधानिक समस्या शुरू हुई, जिसका अंत करने की कोशिश मोदी सरकार ने पिछले दिनों की।

समस्या कितनी विकट थी, इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बाध्य होकर जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री( वैसे उस समय वहां के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहा जाता था) शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार करके जेल भेजना पड़ा था। दरअसल शेख अब्दुल्ला की नीयत खराब थी। वे एक साथ दो देशों ( भारत और पाकिस्तान) की सवारी करना चाहते थे। वह अपनी एक जेब में भारत तो दूसरी जेब में पाकिस्तान रखना चाहते थे। वे चाहते थे कि जम्मू और कश्मीर संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बन जाए, जबकि कोई संप्रभु देश ही इसका सदस्य बन सकता है।

शेख अब्दुल्ला के इस अजीबोगरीब शौक ने वहां समस्या को और भी जटिल बनाया। वे लंबे समय तक जेल में रहे। इन्दिरा गांधी के साथ समझौता करने के बाद 1975 में एक बार फिर वहां के मुख्यमंत्री बने। इस बीच संवैधानिक अड़चनो के कारण 370 तो समाप्त नहीं किया गया, लेकिन कांग्रेस सरकार के दौरान भी यह लगातार कमजोर किया जाता रहा। प्रधानमंत्री को मुख्यमंत्री बना दिया गया। सदर ए रियासत को राज्यपाल बना दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से वह पहले बाहर था। वे उसके अधिकार क्षेत्र में आ गया। भारतीय प्रशासनिक सेवा क अधिकारियों का वहां पहले पदस्थापन नहीं हो सकता था। यह भी होने लगा।

यानी धारा 370 को समाप्त करने की प्रक्रिया नेहरू के शासन से ही शुरू हो गई थी और यह नरसिंह राव की सरकार के समय तक चलती रही थी। वहां चुनाव लड़ने वाली और सत्ता में आने वाली पार्टियां यह स्वप्न देखती रहीं कि धारा 370 अपने पूर्ण स्वरूप में आएगा और वे उन अलगाववादियों का समर्थन करती रहीं, जो पाकिस्तान द्वारा पोषित थे।

अब सरकार और संसद ने इस धारा को समाप्त कर दिया है। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती जम्मू और कश्मीर में स्थिति को सामान्य करने की है। यह उसकी जिम्मेदारी है, लेकिन यह प्रत्येक भारतीय की भी जिम्मेदारी है कि वह कश्मीर में सामान्य स्थिति पैदा करने के सरकार के प्रयासों का समर्थन करे। सरकार को इस मसले पर कुछ अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों का सामना भी करना पड़ सकता है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह लगना चाहिए कि इस मसले पर पूरा देश एक है।

नोट - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचार हैं)

नोट - पहली बार प्रकाशित 10 अगस्त 2019 को।