पुण्यतिथि विशेष : आपके विचार सही, लक्ष्य ईमानदार हो तो सफलता निश्चित मिलती है - लोकमान्य तिलक

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पुण्यतिथि विशेष : आपके विचार सही, लक्ष्य ईमानदार हो तो सफलता निश्चित मिलती है - लोकमान्य तिलक

- राजेश कुमार, टाइम्स ख़बर (timeskhabar.com)

(जन्म 23 जुलाई 1856 - मृत्यु 1 अगस्त 1920) बाल गंगाधर तिलक (लोकमान्य तिलक) हमारे श्रेष्ठ नेतृ्त्व करने वाले स्वतंत्रतासेनानियों में से एक थे। वे श्रेष्ठ स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ विचारक और समाज सुधारक भी थे। इन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध खुलकर अपने विचार रखे। 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले स्थित चिखली गांव में इनका जन्म हुआ। इनके पिता गंगाधर पंत अध्यापक थे और दादाजी केशरावजी पेशवा राज्य में बड़े पद पर आसिन थे। 

लोकमान्य तिलक हर हाल में देश की आजादी चाहते थे। उन्होंने नारा दिया था कि "स्वराज यह मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर हीं रहूंगा।" यह नारा बहुत प्रसिद्ध हुआ था और क्रांतिकारियों की टोली में इस वाक्य ने वास्तव में क्रांति कर दी थी। इनका मानना था कि प्रार्थना से कभी भी आजादी नहीं मिलती। इन्होंने भारतीयों में एकता स्थापित करने के लिये मुंबई में गणपति पूजा और शिवाजी जयंती की शुरूआत की। ताकि लोग एक जगह इकठ्ठे हों और एक दूसरे के विचारों से अवगत होकर अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हों। अंग्रेज तिलक जी से इतने भयभीत रहते थे कि वे उन्हें भारतीय आशांति के पिता कहते थे तो देशवासी उन्हें सम्मान से 'लोकमान्य' कहते थे। वे देशवासियों के नायक थे।    

- 13 जुलाई 1856 को स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक का जन्म हुआ था।

- 1871 में 15 वर्ष की आयु में उनका विवाह तापीबाई से हुआ।

- 1873 में वे डेक्कन कॉलेज में दाखिला लिया।

- 1876 में प्रथम श्रेणी से बीए पास हुए। कानून की परीक्षा भी पास की। 

- 1880 में राजनीति के क्षेत्र में कदम रखे। बलवन्त वासुदेव फडके की सहायता से विद्रोह का झण्डा फहराकर ब्रिटिश शासन के प्रति अपना विरोध प्रकट किया।

- 1880 में पुणे में न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की। 

- 1881 में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश कर मराठा केसरी पत्रिका का संचालन किया । इसके माध्यम से जनजागरण व देशी रियासतों का पक्ष प्रस्तुत किया। 

- 1888-89 में शराबबन्दी, नशाबन्दी व भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाये। 

- 1890 में वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े। 

- 1891 को सरकार द्वारा विवाह आयु का स्वीकृति विधेयक का बिल उन्होंने प्रस्तुत किया।

- 1895 में इन्होंने कांग्रेस की नीतियों की आलोचना की। 

- 1907 में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया नरम दल और गरम दल में। तिलक गरम दल के थे। इनके साथ लाला लाजपत राय और  बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन्हें लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा।

- 1908 में लोकमान्य ने क्रांतिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया। इस वजह से इन्हें बर्मा स्थित मांडले की जेल में भेज दिया गया।

- 1916 बर्मा की जेल से छुटने के बाद इन्होंने आयरलैंड से आयी एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ मिलकर अखिल भारतीय होम रूल लीग की स्थापना की। 

- 1 अगस्त 1920 को मुंबई में उनका निधन हो गया। मरणोपरान्त श्रद्धांजलि देते हुए गांधी जी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रांति का जनक बतलाया।

 बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजो से डरे बिना आम भारतीयों के हित में जो बातें सही होती थी उसका वे खुलकर समर्थन करते और अपने पत्रिकाओं मे पब्लिश करते थे। इससे अंग्रेजों में घबराहट बनी रहती थी। 

 

 - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, मुहम्मद अली जिन्ना, अरविंद घोष और वी ओ चिदम्बरम आदि राजनेताओं से संपंर्क किये। 

- ये घोर आलोचक थे अंग्रेजी शिक्षा के। वे भारतीय शिक्षा को मजबूत और सुधार करने के लिये दक्खन सोसायटी की स्थापना की।

- तिलक अंग्रेजी (मराठा दर्पण) और मराठी (केसरी) में दो समाचार पत्र निकालते थे जो काफी लोकप्रिय हुए। 

- उन्होंने ब्रिटिश सरकार से भारतीयों को पूर्ण स्वराज देने की मांग की। अंग्रेजों के खिलाफ लेखन से इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा।

- तिलक जी ने कई किताबें लिखी हैं उनमें प्रमुख हैं - गीता-रहस्य (मांडले जेल में रहते हुए लिखे), आर्यो का मूल निवास स्थान, वेद काल का निर्णय, वेदों का काल निर्णय और वेदांग ज्योतिष। उनकी लिखी पुस्तकें तीन भाषाओं में प्रकाशित हुई मराठी, हिंदी और अंग्रेजी। 

- डैकन एजूकेशन सोसायटी तथा फग्यूर्सन कॉलेज की स्थापना की ।

-  उन्होंने जनता की गरीबी दूर करने के लिये भूमि सुधार पर बल दिया। लोगो ने इनका विरोध किया। आलोचना की।

- अकाल के समय किसानों से लगान लेने का इन्होंने विरोध किया। 

स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक एक राजनेता ही नहीं एक दार्शनिक भी थे। उनका व्यक्तित्व एक ऐसे संघंर्ष की गाथा है जिसने भारत में एक नये युग का निर्माण किया। उनके क्रांतिकारी विचार :

- स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा !

- आप मुश्किल समय में खतरों और असफलताओं के डर से बचने का प्रयास मत कीजिये। वे निश्चित रूप से आपके मार्ग में आयेंगे ही।

- यदि भगवान छुआछूत को मानते है तो मैं उन्हें भगवान नहीं कहूंगा।

- हो सकता है ये भगवान की मर्जी हो कि मैं जिस वजह का प्रतिनिधित्व करता हूँ उसे मेरे आजाद रहने से ज्यादा मेरे पीड़ा में होने से अधिक लाभ मिले।

- ये सच है कि बारिश की कमी के कारण अकाल पड़ता है लेकिन ये भी सच है कि भारत के लोगों में इस बुराई से लड़ने की शक्ति नहीं है।

-  आपके विचार सही, लक्ष्य ईमानदार और प्रयास संवैधानिक हों तो मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी सफलता निश्चित है। 

- कमजोर न बनें, शक्तिशाली बनें और यह विश्वास रखें कि भगवान आपके साथ है।

- प्रात: काल में उदय होने के लिये हीं सूरज संध्याकाल के अंधकार में डूब जाता है और अंधकार में जाये बिना प्रकाश प्राप्त नहीं होता। 

- आलसी व्यक्तियों के लिये भगवान अवतार नहीं लेते, वह मेहनती व्यक्तियों के लिये ही अवतरित होते हैं। इसलिये कार्य करना आरंभ करें।

(timeskhabar.com)