मराठा आरक्षण : सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिये मराठा समाज को आरक्षण देने के लिये - मराठा लीडर व याचिकाकर्ता विनोद पाटील।

1
मराठा आरक्षण : सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिये मराठा समाज को आरक्षण देने के लिये - मराठा लीडर व याचिकाकर्ता विनोद पाटील।

(राजेश कुमार, टाइम्स ख़बर)  महाराष्ट्र में आरक्षण की मांग को लेकर मराठा समाज आंदोलित है। इस बार पिछली बार की तरह शांतिपूर्वक नहीं बल्कि आक्रमक आंदोलन है। इसको लेकर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृ्त्व में बैठकों का सिलसिला जारी है। मराठा समाज को आरक्षण दिलाने के लिये कानूनी लड़ाई लड़ने वाले याचिकाकर्ता व मराठा लीडर विनोद पाटील ने ग्लोबल ख़बर से बातचीत में कहा कि मराठा समाज को जो 16 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई थी वह मिलनी चाहिये। और सरकार को इस बारे में तुंरत कदम उठाने चाहिये।

याचिकाकर्ता विनोद पाटील ने कहा कि आरक्षण किस कोटे के तहत दिया जायेगा। यह सरकार की जिम्मेवारी है। हमलोग किसी तरह का विवाद नहीं चाहते। जो सरकार ने पहले तय किया था उसे लागू किया जाये। क्या आपलोग ओबीसी कोटे के तहत आरक्षण की मांग कर रहे हैं या आपको ओबीसी मानते हुए आरक्षण का प्रावधान अलग से किया जाये? इस सवाल के जवाब में मराठा लीडर विनोद पाटील ने कहा कि यह कार्य राज्य सरकार को देखना है। उन्होंने संकेत दिये कि ओबीसी के वर्तमान कोटे के तहत संभव नहीं दिखता। अब सरकार को तय करना है और आरक्षण की व्यवस्था करनी है। 

मराठा आरक्षण का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया । इस बारे में याचिकाकर्ता पाटील ने कहा कि वापस हाईकोर्ट में यह मामला आया। अदालत के आदेश के बाद यह मामला बैकवर्ड कमिशन के पास गया है। वह पूरी स्थिति का आंकलन करेगी। विनोद पाटील ने कहा कि सरकार को चाहिये कि इन सब से इतर जल्द से जल्द फैसला कर मराठा समाज को आरक्षण दिया जाये।

मराठा समाज को क्यों चाहिये आरक्षण :

कहा जाता है कि मराठा समाज महाराष्ट्र में एक राजनैतिक शक्ति है। इनकी संख्या लगभग 30-33 प्रतिशत है। संपन्न समाज है ऐसे में इन्हें आरक्षण की क्या जरूरत? इस बारे में मराठा समाज के लोगो का कहना है कि जातीय आधार पर मराठा समाज की सामाजिक स्थिति पिछडे वर्ग की ही है। लेकिन पिछड़े वर्ग में शामिल नहीं किया गया। समाज में यदि कोई दो-चार पैसे वाले हो जायें या कोई मुख्यमंत्री व मंत्री बन जाये इससे पूरे समाज का भला नहीं होता। आज असमानता की खाई बहुत चौड़ी है। समाज की बहुत बड़ी आबादी की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। गांवों में किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। वे शिक्षा के स्तर पर भी बहुत पीछे हैं। समानता का अभाव है। काफी पीछे रह गये मराठा समाज के लोगो को मुख्य धारा में लाने के लिये सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिये। और आरक्षण की व्यवस्था करनी चाहिये। 

आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन - 

आरक्षण की मांग को लेकर बीते दो सालों से मराठा समाज आंदोलित है। पूरे राज्य में शांतिपूर्वक बड़ी बड़ी 50 से अधिक मोर्चा निकाले गये। ये सभी रैलियां कई मायनों में ऐतिहासिक थी। एक तो सभी रैलियों में लाखो-लाख लोग जुटे। दूसरा लाखों की भीड़ के बावजूद  हो-हल्ला तक नहीं हुआ। इसके विपरीत शांतिपूर्वक और सहयोगी की रैली हुई। इतना हीं रैलियों के दरम्यान कोई एंबूलेंस या स्कूल वैन आ गये तो रैली में शामिल कार्यकर्ता ही फूर्ति से उनके लिये रास्ते बनाते दिखे। उन रैलियों का नेतृत्व कोई राजनीतिक लीडरों ने नहीं किया बल्कि मराठा समाज के आम सदस्य ही कर रहे थे। बड़ी संख्याओं में महिला और छात्राओं ने भी हिस्सा लिया। लेकिन बीते चार दिनों पहले शुरू हुए आंदोलन का स्वरूप एकदम अलग है। मराठा समाज के दो कार्यकर्ता आरक्षण के समर्थन में जान दे चुके हैं। औरंगाबाद जिले के कायगांव निवासी प्रदर्शनकारी काका साहब शिंदे ने गोदावरी नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली। औरंगाबाद में किसान जगन्नाथ सोनावने ने आरक्षण की मांग को लेकर जहर खा लिया। इनकी भी मौत हो गई। इसके बाद राज्य के कई इलाकों में तोडफोड और हिंसा हुई। वाहनों में आग लगा दी गई। स्थिति तनाव पूर्ण बना हुआ है। हिंसा को देखते हुए मराठा समाज के नेताओं ने मुंबई बंद का के ऐलान को दोपहर में ही वापस ले लिया लेकिन कार्यकर्ताओं का आंदोलन देर तक जारी है। और आरक्षण की मांग को लेकर नारे लगाते रहे।  

महाराष्ट्र सरकार और मराठा आरक्षण : 

आरक्षण का समाधान और हो रहे मराठा आंदोलन महाराष्ट्र सरकार के लिये एक चुनौती है। अबतक पांच विधायक मराठा आरक्षण के समर्थन में इस्तीफा दे चुके हैं। ये है  - भाऊसाहेब पाटिल (एनसीपी), हर्षवर्धन जाधव (शिवसेना),  भरत भाल्के (कांग्रेस), राहुल अहेर(बीजेपी), दत्तात्रेय भारणे (एनसीपी)। इसको लेकर सरकार की बैठके लगातार जारी है। विपक्ष के साथ भी बैठक होगी ताकि कोई रास्ता निकाला जा सके। अब देखना है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस मामले का हल किस प्रकार से निकालते हैं। आखिर रास्ता क्या है आरक्षण देने का ? मराठा समाज सामाजिक स्तर पर पिछडे हैं। जैसे बिहार में कुर्मी जाति है उसी प्रकार महाराष्ट्र में मराठा हैं। इन्हें आरक्षण की सूची में  नहीं रखा गया। लेकिन अब ओबीसी के वर्तमान कोटे के तहत इन्हें आरक्षण दिया जाता है तो आशंका है कि ओबीसी की अन्य जातियां  आंदोलित हो जायेंगी अपने हक के लिये। राजनीतिक रूप से बीजेपी के लिये यह घातक होगा न सिर्फ महाराष्ट्र में बल्कि पूरे देश में। दूसरी ओर कोई भी राजनीतिक दल महाराष्ट्र में मराठा समाज को अलग कर राजनीति नहीं कर सकता। यहां इनकी आबादी 30-33 प्रतिशत है। कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना-आरपीआई और यहां तक कि बीजेपी नेताओं ने भी मराठा आरक्षण का समर्थन किया है। 

क्या आरक्षण 50 प्रतिशत से ऊपर संभव है :

वर्तमान में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। एक पक्ष का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के गाइड लाइन के अनुसार 50 प्रतिशत से ऊपर आरक्षण का प्रवाधान नहीं किया जा सकता। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ एक निर्देश दिया है। लेकिन विधान सभा चाहे तो कानून बनाकर 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है। कानून बनाना विधायिका का काम है। सुप्रीम कोर्ट के निर्दश वहां लागू होते हैं जहां कानून मौन है। और तभी तक लागू होते हैं जबतक विधायिका कानून न बना दे। दक्षिण भारत के राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण दिये जा रहे हैं। 

बहरहाल, मराठा समाज के लिये कानूनी लड़ाई को हर स्तर पर लडने वाले याचिकाकर्ता विनोद पाटील को विश्वास है कि मराठा समाज को आरक्षण जल्द ही मिलेगा। सरकार विपक्ष से बातचीत कर जल्द ही आरक्षण को लागू करेगी।