बुराड़ी कांड के पीछे क्या था? लगे रहो मुन्ना भाई’के केमिकल लोचे ने फंदे पर लटकाया - वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

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बुराड़ी कांड के पीछे क्या था? लगे रहो मुन्ना भाई’के केमिकल लोचे ने फंदे पर लटकाया - वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

(नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक उपेन्द्र प्रसाद)दिल्ली की बुराड़ी में 11 लोगों की मौत की गुत्थी लगभग पूरी तरह सुलझ गईहै। लोगों को दहलाने वाली इस घटना ने राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीयख्याति पा ली। एक साथ एक संयुक्त परिवार के सभी 11 सदस्यों का फांसी परलटक कर मर जाना अपने आप में एक दहशत भर देने वाली घटना थी। इस तरह कीघटना कम से कम भारत में नहीं हुई थी कि एक ही परिवार के इतने सारे सदस्यएक साथ अपने ही घर में फांसी के फंदे पर लटकते पुलिस को लगा था कि उन सबकी हत्या हुई है, क्योंकि घर के रसोईघर में अगली सुबह के बे्रकफास्ट की तैयारी शाम को कर दी गई थी। यानी यह साफ था कि उन लोगों का इरादा आत्महत्या करने का नहीं था। लेकिन पुलिस को इस आश्चर्य इस बात पर हो रहा था कि घर में सबकुछ सामान्य था। यदि हत्यारों के गिरोह होते और उतने सारे लोगों की हत्या होती, तो घर में संघर्ष के निशान अवश्य होते। घर में कुछ न कुछ टूट फूट तो जरूर ही होती। लेकिन वैसा कुछ नहीं था।

इसलिए हत्या का केस दर्ज होने के बाद भी मामला हत्या का नहीं लग रहा था, लेकिन वह आत्महत्या का मामला भी नहीं लग रहा था, क्योंकि आत्महत्या का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था। वह एक संपन्न परिवार था। उनपर किसी प्रकार का कर्ज भी नहीं था। उनका धंधा अच्छा चल रहा था। घर की एक बेटी की शादी तय हुई थी। उसकी सगाई दो सप्ताह पहले ही हुई थी। घर में मेहमान 4 दिन पहले तक टिके हुए थे। सब लोग खुश थे। यानी यदि वह हत्या का मामला नहीं था, तो फिर आत्महत्या का मामला भी नहीं बन रहा था। एकाएक एक डायरी मिली और उसने राज खोलना शुरू कर दिया। उसके बाद और भी डायरियां मिलीं। कुछ एक दर्जन से ज्यादा डायरियां मिल गईं और उनके पन्नों ने उन मौतों के कारण बयां करना शुरू कर दिया। पता चला कि परिवार के एक सदस्य ललित पर उनके मृत पिताजी की आत्मा आया करती थी। और आत्मा के आदेश के अनुसार परिवार के सदस्य आचरण करते थे।

इस तरह की घटनाएं भारत में खूब देखने को मिलती हैं। खासकर महिलाओं पर मृत रिश्तेदारों के भूत आया करते हैं। देश का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा है, जहां से इस तरह की घटनाओं की रिपोर्ट नहीं आती हो। इसे विश्वास कहें या अंधविश्वास लेकिन ऐसा होता है और खूब होता है। लेकिन यह मुख्य रूप से ग्रामीण घटनाएं हैं। शहरों में इस तरह की घटनाएं या तो दिखाई ही नहीं देतीं और यदि दिखाई भी देती हैं, तो बहुत कम दिखाई देती हैं।

 जाहिर है, इस तरह की घटनाएं मानसिक बीमारी का नतीजा है। यह बीमारी ज्यादातर महिलाओं को होती हैं। वह भी ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को ही होती है। ग्रामीण महिलाओ में भी जो भूत प्रेत को नहीं मानती ( हालांकि ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत कम है) उन पर भूत या प्रेत का इस तरह का साया पड़ता नहीं दिखाई देता। गांवों में इसके कारण तांत्रिकों और ओझाओ की चांदी रहती है और वे ही बात को बढ़ावा देते हैं कि फलां का भूत फलां पर आता है। एक खास बात यह भी होती है कि जिस व्यक्ति पर जिस मृत व्यक्ति की कथित आत्मा सवार होती है, वह उसी की आवाज और अंदाज में बोलने लगता है। ललित के साथ भी ऐसा ही हुआ करता था। वह अपने मृत पिता के अंदाज और आवाज में बातें करने लगता था और लोग समझते थे कि उसके ऊपर उसके पिता की आत्मा आई हुई है। उस समय ललित बोलकर और लिखकर अपने पिता की सलाह यह हुक्म संग्रहित करता था और परिवार के लोगों को उसके अनुसार आचरण करने को कहता था। परिवार के लोग भी उसका पालन करते थे। परिवार में महिलाओं की संख्या बहुत ज्यादा थी और महिलाएं ज्यादा अंधविश्वासी होती हैं। दो लड़के भी थे, लेकिन दोनों छोटे थे और उनमें समझ आई ही नहीं थी। ललित का बड़ा भाई ही घर में एकमात्र व्यस्क पुरुष था, जो उस कांड को रोक सकता था और ललित की मनमानियों पर लगाम लगा सकता था, लेकिन वह भी अपने परिवार के सदस्यों की तरह ही ललित की बातों में आता गया। ललित एक मानसिक रोग से ग्रस्त था। 

संजय दत्त की एक फिल्म है, लगे रहो मुन्ना भाई। उस फिल्म में संजय दत्त यानी मुन्ना भाई को महात्मा गांधी दिखाई देते हैं और उनकी सलाह पर वह काम करता रहता है और सफल भी होता रहता है। एक मनोचिकित्सक यह साबित करता है कि मुन्ना के दिमाग में केमिकल लोचा है, जिसके कारण उसे महात्मा गांधी दिखाई देते हैं। इसी तरह से ललित के दिमाग में भी केमिकल लोचा था, जिसके कारण उसे पिताजी दिखाई देते थे और सलाह देते रहते थे, जिसे वह डायरी में लिखता रहता था। यह महज संयोग नहीं कि ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ 2006-07 की फिल्म है और ललित का यह केमिकल लोचा भी 2007 से चल रहा था। क्या पता उसने वह फिल्म देखी होगी और उसे भी उसी तरह आभास होने लगा होगा कि उसके पिताजी उसके आसपास होते हैं और अच्छी अच्छी सलाह देते हैं। डायरी से यह पता चलता है कि ललित के पिताजी की आत्मा इस बात को लेकर दुखी भी होती थी कि परिवार के लोग उनकी बात पूरी तरह नहीं मानते। 

आत्मा ने परिवार के लोगों को यह भी कह रखा था कि वे तभी वहां आएंगे, जब घर के अंदर बाहर के लोग नहीं होंगे। मुन्ना भाई को महात्मा गांधी की आत्मा ने तो नुकसान नहीं पहुंचाया क्योंकि वह एक लिखी हुई कहानी का हिस्सा थे और कहानी कहानीकार की मंशा के अनुसार आगे बढ़ती है, लेकिन ललित के केमिकल लोचे ने तो पूरे परिवार को फांसी पर ही चढ़ा दिया और वह भी कुछ इस तरह कि कोशिश करने पर भी कोई बच न सके। बंधे हाथ, बंद मुह, ढकी आंखें यानी सबकुछ ऐसा कि मौत के मुह से कोई बचे ही नहीं।  (उपेन्द्र प्रसाद  - लेखक नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीति व आर्थिक मामलों के जानकार हैं। इस आलेख में लेखक द्धारा दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है। और ये उनके निजी विचार हैं।