कर्नाटक चुनाव संपन्न होते ही पेट्रोल-डीजल के दामों में वृद्धि।

1
कर्नाटक चुनाव संपन्न होते ही पेट्रोल-डीजल के दामों में वृद्धि।

नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद तेल कंपनियों ने ग्राहकों को जोर का झटका दिया है। पेट्रोल-डीजल के दामों में बड़ा इजाफा किया है, जो 56 महीनों में सबसे महंगे स्तर पर जा पहुंचा है। पेट्रोल की कीमत में 17 पैसे जबकि डीजल के मूल्य में 21 पैसे की वृद्धि की गई हैं। वैसे ये कोई पहली बार नहीं है जो चुनावों के बाद ये ट्रेंड देखने को मिल रहा है। दिसम्बर 2017 में सम्पन्न गुजरात चुनावों के बाद भी नजारा कुछ ऐसा ही था। तब से लगातार इसकी कीमतों में इजाफा हो रहा है। कर्नाटक चुनावों से 19 दिन पहले कीमतें बढ़ी थीं, जिस पर चुनाव तक रोक लगा दी गई थी। हालांकि आईओसी की मानना है कि ये संयोग है।

तेल कंपनियों ने कर्नाटक चुनाव के लिए मतदान होने से पहले करीब तीन हफ्ते से पेट्रोल-डीजल की कीमतों को स्थिर रखा था। 12 मई को कर्नाटक में मतदान हुए। उसके बाद 14 मई को तेल कंपनियों ने फिर से कीमतों की रोज समीक्षा शुरू कर दी। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 19 दिन तक बदलाव नहीं करने से तेल कंपनियों को करीब 500 करोड़ रुपए के नुकसान का अनुमान है। क्‍योंकि, अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में कच्‍चे तेल की कीमतों में तेजी और डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होन से उनकी लागत में इजाफा हुआ। पिछले हफ्ते इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के चेयरमैन संजीव सिंह ने कहा था कि तेल कंपनियां कीमतों में तेज बढ़ोत्‍तरी से कंज्‍यूमर के बीच घबराहट न हो इसके लिए कीमतों को अस्‍थायी तौर पर कम रखे हुए हैं।   

तेल कंपनियों द्वारा जारी डेली प्राइस नोटिफिकेशन बताता है कि 24 अप्रैल से पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रखी थीं। पिछले साल जून से कंपनियां लागत में बदलाव के अनुसार ऑटो फ्यूल की कीमतों की रोज समीक्षा करती हैं। इससे पहले, पिछले 15 साल से हर महीने की पहली और 16वीं तारीख को तेल की कीमतों की समीक्षा होती थी। तेल कंपनियों ने यह मानने से इनकार कर दिया था कि कर्नाटक में बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों को फ्रीज रखा गया। इस सेक्‍टर से जुड़े एक एनॉलिस्‍ट का कहना है कि यदि तेल कंपनियां नियमित तौर पर अपनी समीक्षा जारी रखती तो बीते 19 दिन में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 1।5 रुपए प्रति लीटर की बढ़ोत्‍तरी हो जाती।

 

56 महीनों में सबसे महंगा!

उल्लेखनीय है कि अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव की वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ईरान के साथ न्यूक्लियर डील तोड़ने के फैसले के ऐलान के बाद बुधवार को ब्रेन्ट क्रूड की कीमत प्रति बैरल 77 डालर के पार चली गई। यह नवंबर 2014 के बाद पहली बार है जब कच्चे तेल की कीमत 77 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर चली गई है।  इस बदलाव के बाद दिल्‍ली में पेट्रोल की कीमत 74।63 से बढ़कर 74।80 रुपए प्रति लीटर और डीजल 65।93 रुपए से बढ़कर 66।14 रुपए प्रति लीटर हो गया। इसके साथ ही डीजल रिकॉर्ड हाई पर जबकि पेट्रोल 56 महीने में सबसे महंगा हो गया।

गुजरात चुनाव के दौरान घटे थे पेट्रोल-डीजल के दाम

दिसंबर 2017 में गुजरात चुनाव के लिए मतदान होने से पहले 15 दिन तक भी सरकारी तेल कंपनियों ने रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 1-3 पैसे प्रति लीटर की रोजाना कटौती की थी। मतदान होने के बाद तेल कंपनियों ने तत्‍काल कीमतें बढ़ानी शुरू कर दी थी। ऐसे में उस वक्‍त भी यह अटकलें थी कि सरकार ने शायद तेल कंपनियों को कीमतें स्थिर रखने के लिए कहा था। तब पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने इस बात से साफ तौर पर इनकार किया था। उन्होंने कहा था कि सरकार की तरफ से तेल कंपनियों पर इस तरह का कोई दबाव बनाया जा रहा है कि वे तेल कीमतों में हो रही वृद्धि को खुद ही वहन करे। गौरतलब है कि जनवरी- मार्च, 2017 के बीच जब उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और असम जैसे राज्यों में चुनाव थे, उस दौरान भी तेल की क़ीमतें स्थिर रखी गई थीं। तब 15 दिनों में प्राइस में बदलाव होते थे, लेकिन इस दौरान वो नहीं किया गया था।