इतने लाचार कभी न थे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार - वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार।

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इतने लाचार कभी न थे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार - वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार।

(लेखक : राजेश कुमार)। एक समय था जब जदयू अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बातों को गंभीरता से लिया जाता था राष्ट्रीय राजनीति में। सहयोगी दल उनकी बातों पर गौर तो फरमाते ही थे साथ ही बीजेपी ने भी उन्हें हल्के में लेने की गलती कभी नही की। लेकिन आज उनके पास सबकुछ है वे राजद को छोड़ बीजेपी से हाथ मिलाकर मुख्यमंत्री बन गये। समाजवादी नेता शरद यादव को बाहर कर पार्टी अध्यक्ष भी हैं। उनकी सहयोगी पार्टी बीजेपी के केंद्र से लेकर 20 राज्यों में सरकार है। वे बड़े गठबंधन का हिस्सा हैं बावजूद अब उनमें वो बातें नहीं दिखती जो एक समय हुआ करता था। 

मुख्यमंत्री कुमार माने या न माने लेकिन राजनीतिक गलियारे और जनता की दनिया में यही कहा जा रहा है कि वे आज की तिथि में लीडर नहीं बल्कि एक मात्र अधिकारी है वो भी बीजेपी के रहमोकरम पर।  ऐसा क्यों कहा जा रहा है आइये जानते हैं। 

1. महागठबंधन तोड बीजेपी से हाथ मिलाना - 

बिहार में जनता ने प्रधानमंत्री मोदी लहर के विपरीत महागठबंधन (राजद, जययू व कांग्रेस) को अपना समर्थन दिया। महागठबंधन की सरकार बनी। सबकुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक नीतीश कुमार ने भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर महागठबंधन से अलग हुए और बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली। इस काफी तीव्र प्रतिक्रिया हुई। लोग सवाल करने लगे कि जब नीतीश कुमार ने चुनाव लड़ने का फैसला किया राजद के साथ तब क्या उन्हें भ्रष्टाचार आरोपों के बारे में मालूम नहीं था? जब मालूम था और महागठबंधन कर चुनाव लड़े और जीत हासिल हुई तो ऐसे में उन्हें महागठबंधन से अलग नहीं होना चाहिये था। क्योंकि राजद और कांग्रेस नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना चुके थे। आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव को सजा होने पर भी आरजेडी समर्थन वापस नहीं लेती। लेकिन उन्होंने साथ छोड़ दिया। 

2. बीजेपी ने दरकिनार किया नीतीश कुमार को - 

नीतीश कुमार बीजेपी के साथ गठबंधन कर अभी भी मुख्यमंत्री हैं। आगे का कहा नहीं जा सकता। लेकिन एक बात तय है कि बीजेपी ने बड़ी चालाकी से उन्हें महत्वहीन बना दिया है। इसका अंदाजा भले ही मुख्यमंत्री को न हो लेकिन वास्तविकता यही दिख रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की एक भी बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने नहीं मानी। आइये इस बात को कुछ बतौर उदाहरण समझ सकते हैं। 

- बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मोदी सरकार ने नहीं दिया। इतना ही नहीं विशेष पैकेज भी नहीं दिया। 

- पटना विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को दौरान (14 अक्टूबर 2017) मुख्यमंत्री कुमार ने मंच से पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विद्यालय का दर्जा देने की मांग की। प्रधानमंत्री मोदी भी मौजूद थे। लेकिन इस बात कोई महत्व नहीं दिया गया। 

- बीजेपी से हाथ मिलाने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। उम्मीद थी कि जदयू से कम से कम दो लोगो को मोदी सरकार में जगह दी जायेगी लेकिन किसी को शामिल तक नहीं किया गया। 

- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुशासन बाबू के नाम से जाने जाते है लेकिन अभी हाल ही में बिहार सांप्रदायिक हिंसा के चपेट में आ गया और वे लाचार दिखे।

- बिहार बीजेपी के अध्यक्ष नित्यानंद राय ने हिंसक बयान दिया और कहा कि मोदी के विरोध करने वालों के हाथ काट दिये जायेंगे। 

 

ये सब ऐसे तथ्य हैं जो मु्ख्यमंत्री कुमार के लीडरशीप व्यक्तित्व को समाप्त कर दिया है। सांप्रदायिक हिंसा और हाथ काट लेने वाले बयान पर नीतीश कुमार कुछ नहीं बोल सके। लाचार दिखे। क्योंकि उनके ही दम पर वे मुख्यमंत्री हैं। इतना ही नहीं केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू को जगह नहीं, पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय की मान्यता नहीं और साथ ही बिहार को विशेष राज्य को दर्जा या पैकेज नहीं देना एक तरह नीतीश कुमार को अपमानित करना माना जा रहा है। और वे लाचारी वश सब कुछ सह रहे हैं। 

 

3. क्यों लाचार हो गये हैं नीतीश कुमार -  

नीतीश कुमार जानते हैं कि वे मुख्यमंत्री तभी तक है जबतक बीजेपी साथ है। बीजेपी भी जानती है कि उनके बिना नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं रह सकते। महागठबंधन तोडने के बाद विपक्षी दलों से नीतीश कुमार के रिश्ते इतने खराब हो चुके कि उनकी वापसी अभी तो संभव नहीं। आज की तारीख में राजद किसी भी कीमत पर नीतीश कुमार को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं होगा। और न ही भविष्य में कोई संभावना दिख रही है।  

समय समय की बात है। एक समय नीतीश कुमार ने बीजेपी लीडर नरेंद्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार करने से रोक दिया था। जब बीजेपी अड गई तब वे एनडीए से अलग अपना राह पकड़ लिये। यह वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी के साथ अपना तस्वीर अखबारों में छपने पर बीजेपी नेताओं को दिये गये पार्टी को रद्द कर दिया था साल 2010 में। इतना ही नहीं बिहार बाढ पीड़ितों की मदद के लिये जब बतौर गुजरात मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच करोड रूपये मदद की पेशकश की तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उसे वापस कर दिया। और आज वही दंबग मुख्यमंत्री किस तरह लाचार हैं इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब पटना ऐयरपोर्ट पहुंचते हैं तो मुख्यमंत्री कुमार फूल लिये वहां खड़े रहते हैं। इसे आप एक तरह का प्रोटोकॉल कहकर अलग कर सकते हैं लेकिन जिस प्रकार से नीतीश कुमार के हर बात को काट दिया गया। इस राजनीतिक दुनिया में उनके अपमान के तौर पर ही लिया जा रहा है।   

जानकार बताते हैं कि जेडीयू के अधिकांश ओबीसी व दलित विधायक नीतीश कुमार से नाराज हैं। उनके सवाल है कि सामाजिक तानाबाना में चुनाव लड़ने के बाद महागठबंधन को तोड़ बीजेपी से हाथ क्यों मिलाये? लेकिन वे अभी जेडीयू से नहीं टूटेंगे। हां एक बात तय है कि यदि विधान सभा का अंतिम चनावी साल होता तो जदयू टूट चुका होता। चुनाव में अभी काफी वक्त है वे लोग भी समय के इंतजार में है। लेकिन जदयू से मोहभंग हो चुका है। आज लोग यही कह रहे हैं कि एक समय नीतीश कुमार का नाम यूपीए में प्रधानमंत्री पद के लिये सुर्खियों में था आज वे बस महज एक अधिकारी भर है एनडीए में।  (संपादक, ग्लोबल ख़बर)।