झारखंड में चल रहा भाषा विवाद बद से बदतर रूप लेता दिखाई पड़ रहा है। वहां के आदिवासी और दक्षिणी झारखंड में रहने वाले कुछ गैर आदिवासी भी एक ऐसी समस्या पैदा कर रहे हैं, जो निहायत ही हास्यास्पद है। यह हास्यास्पद तो है, लेकिन इस समस्या ने यदि विकराल रूप धारण किया, तो यह एक बड़ी समस्या बन जाएगी और यह सिर्फ झारखंड तक सीमित नहीं रहेगी। भाषा विवाद भोजपुरी, मगधी, अंगिका औ उर्दू को लेकर है। उर्दू तो बिहार के जमाने से ही दूसरी राजकीय भाषा बनी हुई है। झारखंड ने इसे दूसरी भाषा के रूप में विरासत में पाया है। लेकिन पिछले साल मगही भोजपुरी और अंगिका को स्थानीय भाषाओं में शामिल करके उन्हें सरकारी नौकरियों से जोड़ दिया गया।
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