पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस एक्शन हुए, तो 2024 का चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

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पंजाब में आम आदमी पार्टी की जीत भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस एक्शन हुए, तो 2024 का चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद।

पांच राज्यों की विधानसभा के चुनावों के नतीजे आ चुके हैं, लेकिन देश के भविष्य की राजनीति को प्रभावित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण नतीजा पंजाब से आया है। यहां केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार बन रही है और भगवंत सिंह मान प्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे हैं। इस जीत के साथ आम आदमी पार्टी पहली बार किसी प्रदेश में सरकार बना रही है। वैसे उसकी सरकार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी है और इसे भी प्रदेश की कहा जाता है, लेकिन यह पूर्ण प्रदेश नहीं है। यह एक केन्द्र शासित प्रदेश है, जिसमें प्रदेश सरकार के अधिकार बहुत ही सीमित हैं। पुलिस उसके हाथ में नहीं है। केजरीवाल सरकार के गठन के पहले भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ( एंटी क्राइम ब्रांच- एसीबी) प्रदेश सरकार के पास हुआ करती थी, लेकिन मोदी सरकार ने उसे अपने हाथ में ले लिया। यहां के अधिकारियों की नकेल भी केन्द्र सरकार के पास ही होती है। इसलिए भ्रष्टाचार मिटाने के लिए पर्याप्त अधिकार दिल्ली की केन्द्र शासित प्रदेश के पास है ही नहीं।

आम आदमी पार्टी का गठन एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन ने किया था। आंदोलन का नेतृत्व तो अन्ना हजारे कर रहे थे, लेकिन आंदोलन की दूसरी पंक्ति के नेताओं में अरविंद केजरीवाल थे। आंदोलन के नेताओं को ताना दिया जाता था कि वे आंदोलन क्यों कर रहे हैं, पार्टी बनाकर चुनाव लड़ें और अपनी सरकार बनाएं और फिर भ्रष्टाचारियों को सजा दें। केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी बनाई। वे चुनाव भी लड़े और जीतकर सरकार भी बनाई, लेकिन भ्रष्टाचार के जिन मामलों के खिलाफ वे आवाज उठा रहे थे, उनमें वे कुछ नहीं कर सके, क्योकि उनके पास कुछ करने का अधिकार ही नहीं था। एसीबी के रूप में जो अधिकार था, उसे भी केन्द्र सरकार ने छीन लिया। रही सही कसर उपराज्यपाल ने पूरी कर दी। दिल्ली में भ्रष्टाचार के मामले घट रहे थे, भ्रष्टाचारी डर रहे थे, लेकिन उपराज्यपाल ने जब अड़ंगेबाजी शुरू कर दी और यह स्पष्ट हो गया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए केजरीवाल सरकार की क्षमता बहुत सीमित है, तो फिर भ्रष्टाचार का बोलबाला हो गया। वैसे यह भी सच है कि जहां तक केजरीवाल सरकार का अपना प्रशासन का सवाल है, तो वहां भ्रष्टाचार काफी घट गया है। पर न तो दिल्ली पुलिस केजरीवाल सरकार के अंदर है और न ही डीडीए और न ही दिल्ली महानगर निगम। भूमि का मामला भी केजरीवाल सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं है और जहां अधिकार है, वहां भी उपराज्यपाल से इजाजत लेनी होती है। कहने की जरूरत नहीं कि उपराज्यपाल केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में काम करते हैं, क्योंकि वे केन्द्र के प्रति ही जिम्मेदार है, दिल्ली के जनता के प्रति नहीं।

भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई करने में दिल्ली सरकार के अक्षमता के बाद आम आदमी पार्टी के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह किसी पूर्ण प्रदेश में सत्ता में आए और आंदोलन के समय जो उनकी इच्छा थी वह पूरी करे। अब पंजाब में उसकी सरकार आ गई है। यह प्रदेश भी देश के अधिकांश प्रदेशों की तरह भ्रष्टाचार के लिए बहुत कुख्यात है। राजनैतिक भ्रष्टाचार के बड़े बड़े आरोप प्रदेश के बड़े बड़े कांग्रेसी और अकाली नेताओं पर लगते रहे हैं। प्रकाश सिंह बादल जब मुख्यमंत्री थे, तो कांग्रेस ने उनके ऊपर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाए। कांग्रेस की अमरींदर सिंह सरकार आई, तो उन्होंने बादल और उनके परिवार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और पांच साल बीत गए। इस बीच अमरींदर सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और उसके बाद बादल की सरकार आई, लेकिन बादल ने उसी तरह अमरींदर सिंह के खिलाफ कोई प्रभावी एक्शन नहीं लिया, जिस तरह से अमरींदर सिंह ने नहीं लिया था। बादल की नई सरकार में फिर उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और संयोग से उनके बाद फिर एक बार अमरींदर सिंह की सरकार बन गई, लेकिन एक बार फिर अमरींदर सिंह ने बादल के खिलाफ कुछ खास नहीं किया। पूरे पंजाब में इस बात की चर्चा थी कि दोनों में अंदरूनी दोस्ती है और इसलिए दोनों एक दूसरे को बचाते हैं।

इसी माहौल में अब आम आदमी पार्टी की सरकार बन रही है और भगवंत सिंह मान मुख्यमंत्री बन रहे हैं। अब यदि उनकी सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक के बाद एक कार्रवाई की और उस कार्रवाई के ठोस नतीजे देश के सामने आने लगे, तो अन्ना के आंदोलन के समय लोगों में पैदा हुई इच्छा एक बार फिर जग जाएगी। सच तो यह है कि भ्रष्टाचार के उस आंदोलन ने न केवल केजरीवाल की सरकार बनवाई थी, बल्कि नरेन्द्र मोदी की सरकार भी उसी भ्रष्टाचार के विरूद्ध हुए आंदोलन की देन थे। लेकिन मोदी सरकार ने न तो भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई मुहिम छेड़ी और न ही भ्रष्टाचार के पुराने मामलों में कार्रवाई को उनकी तार्किक परिणति तक पहुंचाने में कोई दिलचस्पी दिखाई। राॅबर्ट वाड्रा के भ्रष्टाचार की भाजपा नेता बहुत चर्चा करते थे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। नेशनल हेराल्ड मामला किस स्तर पर है, यह किसी को नहीं पता। इस मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी जमानत पर हैं। 2 जी घोटाले के अभियुक्त बरी हो गए। उन्हें बरी करते हुए अदालत ने मोदी सरकार की एजंेसी सीबीआई पर आरोप लगाए कि उसके बड़े अधिकारी अदालत में नहीं आते हैं और जो आते भी हैं, तो वे ऐसे बयान दे जाते हैं, जो मौजूद दस्तावेजों से मेल नहीं खाते। जाहिर है, राजा भी छूट गए और अनिल अंबानी भी और उसके बाद यह बात सामने आई कि अनिल अंबानी राफेल युद्धक विमान में बतौर बिचैलिया बना लिए गए थे।

यानी भ्रष्टाचार को लेकर नरेन्द्र मोदी बिल्कुल ही गंभीर नहीं थे। न तो मायावती और उनके भाई के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई और न ही मुलायम और उनके परिवार के खिलाफ यूपीए के शासन काल के अनेक भ्रष्ट नेता भाजपा में आ गए। कहा जाने लगा कि अगर किसी को भ्रष्टाचार की कालिख से मुक्ति पानी हो तो वह भारतीय जनता पार्टी में आ जाए। एक लालू प्रसाद को सजा हुई, लेकिन उन्हें पहली सजा तो 2013 में ही उस समय मिली थी, जब केन्द्र में यूपीए की ही सरकार थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अन्य मामलों में तेज कार्रवाई हो रही थी इसलिए बाद में उसी तरह के 4 और मुकदमों में लालू को सजा हुई। मोदी सरकार उसका श्रेय ने तो लेती है और न ले सकती हैं।

भ्रष्टाचार अभी भी देश के सामने एक ज्वलंत समस्या है, लेकिन अन्ना आंदोलन के बाद भी और सरकार बदले जाने के बाद भी इस मसले पर कुछ हुआ नहीं, इसलिए लोगों में निराशा इस कदर व्याप्त है कि उन्हें लगता है कि एक भ्रष्ट व्यवस्था में जीना ही उनकी नियति है। अब पंजाब की सरकार सत्ता में आने के बाद उस निराशा को दूर कर सकती है। यदि उसने पंजाब में पिछले 15 सालों में हुए भ्रष्टाचार की फाइलों को खोलकर एक्शन लिया और भ्रष्टाचारी कानून के सीखंचों के पीछे पहुंच गए, तो लोगों में आशा का संचार हो सकता है कि भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना अभी भी एक संभावना है और इसके बाद आम आदमी पार्टी का कद बहुत ऊंचा होगा।

वैसे ही इस चुनाव के बाद आम एक राष्ट्रीय पार्टी तकनीकी रूप से बन जाएगी, लेकिन यदि यदि पुराने भ्रष्टाचार के मामले पर ठोस एक्शन लिए गए और पंजाब की प्रशासन व्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त कर दिया गया, तो 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी बनाम केजरीवाल हो सकता है।

नोट  - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। वॉइस ऑफ ओबीसी के संपादक, लेखक के निजी विचार