(वरिष्ठ पत्रकार, प्रवीण कुमार) । देश में राष्ट्रवादी बयार के बीच जो जनभावनाएं मौजूद हैं उनमें से ही लोग दबी जुबान में यह बात अब करने लगे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अप्रतिम लोकप्रियता और सरकार की ताकत को कोई टक्कर दे सकता है तो वह है भारतीय बाजार, भारतीय अर्थव्यवस्था। मीडिया, चुनाव आयोग, केंद्रीय जांच एजेंसियां समेत तमाम संवैधानिक व अन्य संस्थाएं, यहां तक कि पड़ोसी या कहें तो दुश्मन देश पाकिस्तान से भी यह सरकार निपटने में पूरी तरह सक्षम है लेकिन बाजार की जो राजनीतिक ताकत है उसे राष्ट्रवादी औजार से काबू नहीं किया जा सकता। उसका एक बना-बनाया सिद्धांत है जिससे छेड़छाड़ करने का मतलब है वह बेपटरी हो जाता है। सरकार अर्थव्यवस्था के ऐसे दोराहे पर आकर फंस गई है कि उसे यह समझ में नहीं आ रहा कि आगे बढ़ा जाए या पीछे। हालत यह हो गई है कि आगे कुआं दिख रहा और पीछे खाई।
Read more ...