पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। सबसे बड़ा राज्य होने के कारण सबसे ज्यादा ध्यान उत्तर प्रदेश पर केन्द्रित है, जहां भाजपा की योगी सरकार को अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी की तरफ से जबर्दस्त चुनौती मिल रही है। भारतीय जनता पार्टी ने वहां जाति समीकरण का अभेद्य दुर्ग बना रखा है, जिस पर उन्होंने हिन्दू सांप्रदायिकता का पलस्तर भी चढ़ा रखा है। क्या उस दुर्ग को अखिलेश यादव ध्वस्त कर पाएंगे? इस पर देश की नजर टिकी हुई है।
लेकिन पंजाब चुनाव का महत्व भी कम नहीं है। इसका कारण यह है कि इस बार आम आदमी पार्टी वहां सत्ता हथियाने की होड़ में बहुत मजबूती से आगे बढ़ रही है। यदि आम आदमी पार्टी वहां सत्ता में आने में सफल होती है, तो दिल्ली के बाद वह दूसरा प्रदेश होगा, जहां आप की सरकार होगी। दिल्ली तो केन्द्र शासित प्रदेश है और इसके पास ताकत बहुत कम है। सही मायने में पंजाब पहला ऐसा पूर्ण स्वशासित प्रदेश होगा, जहां आम आदमी पार्टी सत्ता मे होगी।
दिल्ली के बाद पंजाब ही देश में ऐसा अन्य प्रदेश है, जहां आम आदमी पार्टी की उपस्थिति मजबूत है। 2015 के लोकसभा चुनाव में उसे वहां से चार सीटें मिली थीं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में वह मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी थी। हालांकि चुनाव पूर्व होने वाले सर्वेक्षणों में उसे सबसे आगे बताया जा रहा था। वे सर्वेक्षण प्रायः भ्रामक होते हैं, इसलिए उन पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन फिर भी कहा जाता है कि दो कारणों से आम आदमी पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी।
पहला कारण तो यह है कि आम आदमी पार्टी ने अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की थी। वहां के मतदाताओं को यह पता ही नहीं था कि यदि आम आदमी पार्टी की सरकार बनी, तो कौन मुख्यमंत्री होगा। उससे भी बुरी बात यह थी कि वहां चर्चा इस बात की होने लगी कि आप की सरकार आई, तो केजरीवाल ही मुख्यमंत्री होंगे। इस चर्चा ने आम आदमी पार्टी का काफी नुकसान किया। केजरीवाल पंजाब के नहीं हैं। उनके पूर्वज हरियाणा में हुआ करते थे। केजरीवाल बिहार में भी रह चुके हैं। जब वे दिल्ली के मुख्यमंत्री पहली बार बने थे, तो उस समय वे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के कौशंबी में रह रहे थे, हालांकि दिल्ली की मतदाता सूची में उनका नाम था।
आमतौर पर उम्मीद की जाती है कि प्रदेश का व्यक्ति ही किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बने, लेकिन ऐसी कोई संवैधानिक विवशता नहीं है। कोई व्यक्ति किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री बन सकता है, शर्त यह है कि उस प्रदेश की विधानसभा या विधान परिषद में उसे 6 महीने के अंदर निर्वाचित होना होगा। भारत का कोई व्यक्ति किसी भी प्रदेश में जाकर रह सकता है और वह वहां की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कर चुनाव लड़ सकता है। इसलिए केजरीवाल के पंजाब के मुख्यमंत्री बनने की चर्चा खोखली चर्चा नहीं थी। जाहिर है, किसी का नाम घोषित नहीं करने का नुकसान आम आदमी पार्टी को वहां हुआ।
हार का दूसरा कारण कांग्रेस, अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का इस बात पर एक मत होना था कि कोई जीते कोई हारे, पर आम आदमी पार्टी की जीत नहीं होनी चाहिए। इसका कारण भ्रष्टाचार था। इन तीनों दलों के अनेक नेता इस बात से डरे हुए थे कि यदि आम आदमी पार्टी की सरकार बनी, तो भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारी स्तर पर अभियान चलेगा और वे भी उनकी चपेट में आ सकते हैं। इसलिए, कहा जाता है, अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के वोट भी अनेक विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को ट्रांसफर हुए, जिसके कारण कांग्रेस की ऐसी जीत हुई, जिसकी कल्पना नहीं की जा रही थी।
एक तीसरा कारण आम आदमी पार्टी के नेता लोग गिनाते हैं। उनका कहना है कि वोटिंग मशीनों की छेड़छाड़ से उनको हराया गया। उस समय वीवीपीएटी का व्यापक इस्तेमाल नहीं हो रहा था। वीवीपीएटी के कारण ईवीएम से छेड़छाड़ कर नतीजों को प्रभावित करना लगभग असंभव हो गया है, लेकिन उसके पहले यह संभव हो सकता था, खासकर चुनावी टीम वैसा करने मे किसी पार्टी की मदद करे।
बहरहाल, इस बार आम आदमी पार्टी ने किसी को मुख्यमंत्री घोषित नहीं करने की अपनी पुरानी गलती को नहीं दुहराया है। उसने इस बार संगरूर के सांसद भगवंत मान को अपना मुख्यमंत्री चेहरा घोषित कर दिया है। मान को 2017 के चुनाव में भी मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए जाने की संभावना थी, लेकिन उस समय वैसा नहीं किया गया था। इस बार उनकी संभावना पहले से प्रबल थी, क्योंकि 2014 में पंजाब से लोकसभा से जीते गए आम उम्मीदवारों में वे एक मात्र ऐसे उम्मीदवार थे, जो 2019 में भी जीतने में सफल हुए।
लेकिन केजरीवाल ने अपनी तरफ से उनका नाम घोषित नहीं किया है। उसके पहले लोगों से राय मांगी गई कि आम आदमी पार्टी किसे अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाए। पंजाब के लाखों लोगों ने उस सर्वे में हिस्सा लिया और ज्यादा लोगों ने भगवंत मान को ही मुख्यमंत्री के रूप में पसंद किया। यानी मान को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने का केजरीवाल का अंदाज भी काबिल-ए-तारीफ है, जिससे प्रदेश के मतदातओं में सकारात्मक संदेश गया है कि मनमाने तरीके से मान का नाम नहीं घोषित किया गया है, बल्कि यह जनता की आवाज पर घोषित किया है।
वहां चुनाव की तिथि 14 फरवरी से आगे बढ़ाकर 20 फरवरी कर दी गई है, क्योंकि 14 फरवरी के आसपास ही रविदास जयंती है और उनकी जयंती का सबसे बड़ा कार्यक्रम बनारस में होता है, जहां के निवासी रविदास थे। पंजाब में रविदास के समर्थकों की भारी संख्या है और भारी संख्या में वहां से लोग उनकी जयंती मनाने के लिए बनारस जाते हैं। जाहिर है, वे 14 फरवरी को पंजाब में अपने घरों में नहीं भी रह सकते है।मतदान जब भी हो, नतीजा तो 10 मार्च को ही आना है। नतीजे क्या कहते हैं, यह देखना काफी दिलचस्प होगा, क्योंकि यदि आम आदमी पार्टी जीती, तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भ्रष्टाचार एक बार फिर बड़ा मुद्दा होगा।
नोट - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, वरिष्ठ पत्रकार, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। वॉइस ऑफ ओबीसी के संपादक, लेखक के निजी विचार हैं।)