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झारखंड राज्य के गिरिडीह स्थित सम्मेद शिखर जी स्थान को पर्यटन स्थल बनाने का विरोध जारी है। राजधानी दिल्ली व मुंबई से लेकर देशभर में जैन समाज द्धारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। जैन समाज का कहना है पारसनाथ की पहाड़ी स्थित सम्मेद शिखर जी का क्षेत्र आस्था का केंद्र है इसे पर्यटन स्थल नहीं बनाया जाना चाहिये। पर्यटन स्थल बनाये जाने पर इस इलाके में आस्था का केंद्र समाप्त हो जायेगा। लोग मांसाहारी भोजन भी करेंगे, जबकि जैन धर्म में मांसाहरी भोजन बिल्कुल हीं मनाहीं है। दिन प्रतिदिन विरोध बढता हीं जा रहा है। जैन मुनियों ने भी आमरण अनशन शुरू कर दी है। बताया जाता है इसी कड़ी में और इसी सिलसिले में मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने अपने प्राण भी त्याग दिये।
मामले को समझने के लिये शिखरजी के महत्व को समझना जरूरी है।
- झारखंड के पारसनाथ की पहाड़ी स्थित सम्मेद शिखर जैन समाज के लिये पवित्र व तीर्थस्थान है।
- सम्मेद शिखर जी को पार्श्वनाथ पर्वत भी कहा जाता है।
- मंदिरें लगभग 27 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
- यहां जैन समाज के 24 तीर्थंकरों में 20 तीर्थंकरों व भिक्षुओं ने मोक्ष प्राप्त किया है।
- यहां आने वाले श्रद्धालुगण पहले पूजा पाठ करते हैं तभी कुछ पानी व भोजन ग्रहण करते हैं।
- पहाड़ी पर कुछ मंदिर 2000 साल पहले यानी प्राचीन काल के हैं।
आखिर विवाद है क्या ?
- साल 2019 में झारखंड की सरकार ने बैजनाथ धाम(देवघर) और बासुकीनाथ धाम(दुमका) समेत इस स्थल को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया था।
- साल 2019 में हीं केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पारसनाथ पहाड़ी को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया और कहा कि इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने की जबरदस्त क्षमता है।
झारखंड के हीं विकास रवानी ने जैन समाज का समर्थन करते हुए कहा कि सम्मेद शिखरजी पर्यटन क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र बनाने से यहां की शांति भंग होगी। जैन मुनियों के तपस्या में दिक्कतें आयेंगी। मांस-मंदिरा का सेवन का बढ जायेगा जबकि जैन समाज के जीवन में मांस-मदीरा कोसो दूर है। सरकार ने जो निर्णय लिया है उसे वापस लिया जाना चाहिये।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि उन्हें अभी इस बारे में विस्तृत जानकारी नहीं है। उन्हें सिर्फ इतना हीं पता है कि केंद्र सरकार ने पारसनाथ पर्वत को इको सेंसेटिव जोन घोषित किया है, जिसे लेकर विवाद खड़ा हुआ है। केंद्र सरकार की तरफ से यह फैसला क्यों और किस संदर्भ में लिया गया है, उसकी जानकारी लेने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। वह देखेंगे कि इस मामले में क्या हल निकल सकता है। बहरहाल, इस मामले को लेकर जैन समाज का एक प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिलकर आग्रह किया है कि आदेश को रद्द किया जाये।