राजेश कुमार चंद्रवंशी, टाइम्स खबर timesskhabar.com
11 नवंबर (2022) झारखंड के सुनहरे पन्नों में दर्ज हो गया। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के दो साहसिक और ऐतिहासिक फैसले विधान सभा से पारित हो गये - पहला, ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढाकर 27 प्रतिशत कर दिया गया और दूसरा, वर्ष 1932 के आधार पर स्थानीय नीति और आरक्षण संशोधन विधेयक पर विधायिका की मुहर लग गई। मुख्यमंत्री सोरेन ने इसे ऐतिहासिक बताया। विधान सभा हेमंत सोरेन जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा । सबसे पहले विधान सभा से पारित उपरोक्त दोनों विधेयक के बारे में जानते हैं :
झारखंड में कुल 77 प्रतिशत आरक्षण ओबीसी को 14 की जगह 27 प्रतिशत :
सरकारी नौकरी और शिक्षा में 77 प्रतिशत सीटें आरक्षित होंगे - इनमें 28 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति (ST),12 प्रतिशत अनुसूचित जाति (SC), 10 प्रतिशत सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े और 27 प्रतिशत ओबीसी। झारखंड में पहले ओबीसी को सिर्फ 14 प्रतिशत हीं आरक्षण मिलता था। ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण में पिछड़े वर्ग को 12 प्रतिशत और अत्यंत पिछड़े वर्ग को 15 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा।
1932 का खतियान मूल निवासी के लिये जरूरी ?
आजादी से पूर्व साल-1932 तक जिनके पास झारखंड क्षेत्र में रहने के प्रमाण हैं उन्हें मूलवासी माना जायेगा। पहले मूलवास किसे माना जाये इसको लेकर विवाद होते रहे हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस विषय को विधान सभा के सामने रखा जिसे चर्चा के बाद ध्वनि मद से पारित कर दिया गया। बड़ी संसख्या में ऐसे लोग हैं जिनका खतियान नष्ट हो गया या खो गया, उन्हें मूल निवासी के लिये सत्यापन लेना होगा ग्राम सभा से। स्थानीय व्यक्ति की पहचान ग्राम सभा की ओर से संस्कृति, स्थानीय रीति-रिवाज, परंपरा के आधार पर की जाएगी।
स्थानीय नीति में संसोधन प्रस्ताव को मुख्यमंत्री ने नकारा :
स्थानीय नीति अर्थात मूल निवासी के लिये साल 1932 खतियान को आधार बनाया गया है। इसको लेकर विरोध भी है। विधायक रामचंद्र चंद्रवंशी, अमित यादव और विनोद सिंह ने तीन संशोधन प्रस्ताव पेश किये जिसे स्वीकार नहीं किया गया। प्रवर समिति के पास भेजने का प्रस्ताव था। जानकारों का कहना है कि साल 2002 में भी तत्कालीन राज्य सरकार ने 1932 के खतियान को आधार बनाकर स्थानीयता को परिभाषित किया था। जिसे 5 जजों की संविधान पीठ ने इसे खारिज कर दिया था। अब मौजूदा सरकार ने फिर से इसे उठाया है। तत्कालीन रघुवर सरकार द्वारा साल 1985 को स्थानीय नीति परिभाषित किया। झामुमो सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरू शिबू सोरेन ने कहा कि वह उचित नहीं था।
विधान सभा का एक दिवसीय विशेष सत्र :
1932 का खतियान और आरक्षण के मामले में विशेष सत्र बुलाये गये थे एक दिन के लिये। बीते 70 दिनों में सरकार द्धारा दो बार विशेष सत्र बुलाये गये। इससे पहले विशेष सत्र बुलाकर विश्वास मत का प्रस्ताव पारित किया गया था। इसके लिये राज्यपाल की अनुमति लेने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि दोनों विशेष सत्र तकनीकी तौर पर मानसून सत्र की विस्तारित बैठक के रूप में बुलाए गए।
विशेष दिन है 11 नवंबर -
11 नवंबर को सदन शुरू होते हीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जिंदाबाद और जो खतियान की बात करेगा, वही राज करेगा के नारों से गुंज उठा। 11 नवंबर विशेष दिन है। इसी दिन साल 1908 को सीएनटी एक्ट अस्तित्व में आया था, 11 नवंबर को विधानसभा से सरना अलग धर्म के विधेयक को पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया और 11 नवंबर 2022 को 1932 खतियान आधारित स्थानीयता व नियुक्ति तथा सेवाओं में आरक्षण वृद्धि का विधेयक विधानसभा से पारित किया गया
कुछ महत्वपूर्ण व रोचक तथ्य :
- सदन की कार्यवाही के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम के मेज पर 1932 लिखा रुमाल रखा था।
- सदन में नारे लगते रहे - जो खतियान की बात करेगा, वही राज करेगा और हेमंत सोरेन जिंदाबाद।
- खतियान 1932 और आरक्षण से संबंधित विधेयक ध्वनि मद से पारित।
- आरक्षण का दायरा सिर्फ सरकारी रोजगार तक सीमित नहीं रहेगा।
- दोनों विधेयक पारित होने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने महागठबंधन में शामिल सीनियर नेताओं वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव, स्टीफन मरांडी और मथुरा महतो के पावं छूकर आशीर्वाद लिये ।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन :
- मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जहां एक ओर विधान सभा से मूल निवासी और आरक्षण से संबंधित विधेयक पारित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की और ऐतिहासिक बताया वहीं उन्होंने केंद्र सरकार को भी निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि वे ईडी-सीबीआई से डरने वाले नहीं है, हम जेल में रहकर भी सूपड़ा-साफ कर देंगे। उन्होंने कहा कि बीजेपी नेताओं के यहां करोड़ों मिलते हैं लेकिन उन्हें छोड़ दिया जाता है। वहीं गरीब आदिवासी के यहां एक दाना नहीं मिलता तो उसे फंसा दिया जाता है।