राजेश चंद्रवंशी timeskhabar.com
भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत ‘आईएनएस विक्रांत’(INS-विक्रांत) का जलावतरण। भारत उन चुनिंदा देशों की फेहरिस्त में शामिल जिनके पास ऐसे बड़े युद्धपोतों निर्माण की क्षमताएं हैं। INS-विक्रांत भारतीय वायुसेना का हिस्सा बन चुका है। यह पूरी तरह स्वदेश निर्मित है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 सितंबर को केरल के कोच्ची में भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत ‘आईएनएस विक्रांत’( INS विक्रांत) का जलावतरण किया। इसके साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की फेहरिस्त में शामिल हो गया है, जिनके पास ऐसे बड़े युद्धपोतों के निर्माण की घरेलू क्षमताएं हैं। यह हर भारतीय और भारतीय विज्ञान के लिये गौरव का क्षण है। इसे बनाने में देश के तमाम उद्योगपतियों ने भी मदद की। आइये जानते हैं इसकी खासियत के बारे में।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi)देश में ही निर्मित विमानवाहक युद्धपोत विक्रांत को नौसेना के सुपुर्द किया।
- भारत में ही निर्मित विमानवाहक युद्धपोत विक्रांत को 2 सितंबर को नौसेना में शामिल किया गया। इस पोत का वजन 45 हजार टन है।
- पूर्ववर्ती पोत विक्रांत ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके नाम पर इस नए पोत का नाम रखा गया है।
- 28 नॉट की स्पीड से समुद्र पर दौड़ेगा नया विक्रांत।
- इस पोत का डिजाइन नौसेना के वारशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है और इसका निर्माण सार्वजनिक क्षेत्र की शिपयार्ड कोचिन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है।
- पोत 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है तथा इसकी अधिकतम गति 28 नॉट है।
- विक्रांत में करीब 2200 कंपार्टमेंट हैं, जो इसके चालक दल के करीब 1,600 सदस्यों के लिए हैं, जिनमें महिला अधिकारी और नाविक भी शामिल हैं।
- विक्रांत ने पिछले साल (2021) 21 अगस्त से अब तक समुद्र में परीक्षण के कई चरणों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।
- स्वदेशी विमानवाहक पोत के एयरोस्पेस मेडिसीन विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट कमांडर वंजारिया हर्ष ने बताया कि इस पर तीन महीने के लिए दवाइयां और सर्जरी में उपयोग आने वाले उपकरण सदा उपलब्ध होंगे।
- पोत पर तीन रसोई होंगी जो इसके चालक दल के 1600 सदस्यों के भोजन की जरूरतों को पूरा करेंगी।
- आईएनएस विक्रांत को बनाने की लागत करीब बीस हजार करोड़ रुपये है।
- INS विक्रांत का डिजाइन नेवी के वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया और सार्वजनिक क्षेत्र की कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने इसे बनाया है।
- इस युद्धपोत के भारतीय नौसेना में शामिल होने के साथ ही भारत अब रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, फ्रांस जैसे देशों की लिस्ट में शामिल हो गया है। ये देश एयरक्राफ्ट कैरियर को डिजाइन और इसका निर्माण कर सकते हैं।
- साल 2009 में जहाज के निर्माण कार्य शुरू किया गया। साल 2011 से युद्धपोत ड्राई डॉक से बाहर आया और करीब दो साल की कड़ी मेहनत के बाद इसका ढांचा बनकर तैयार हुआ।
- साल 2013 में इसे लॉन्च किया गया। 2020 में बेसिन ट्रायल पूरे किए गए।
- साल 2021 के अगस्त महीने में पहली बार आईएनएस विक्रांत को समुद्र में उतारा गया ।
- जुलाई 2022 तक इसके समुद्री ट्रायल्स पूरे किए गए।
- INS विक्रांत युद्धपोत पर एक समय में मिग-29 K फाइटर जेट और हेलीकॉप्टर जैसे 30 एयरक्राफ्ट का संचालन किया जा सकता है।
- आईएनएस विक्रांत (INSविक्रांत) 262 मीटर लंबा और 62 मीटर चौड़ा है। इसका वजन लरीब 45 हजार टन है और इसमें 88 मेगावाट बिजली की चार गैस टर्बाइन लगी हैं।
- इसमें 14 डेक हैं जो किसी दस मंजिला इमारत की तरह दिखाई देता है।
- मॉडर्न किचन है, जहां एक घंटे में करीब 1600 लोगों के लिए भोजन बन सकता है। इस युद्धपोत की अधिक रफ्तार 28 (नॉट) समुद्री मील है।
- आईएनएस विक्रांत के नौसेना में शामिल होने और इसके पुनर्जन्म पर नेवी ने कहा कि ये 1971 के युद्ध में बहादुर सैनिकों के बलिदानों को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि है।
समुंद्र का बादशाह स्वदेश निर्मित आईएनएस विक्रांत को दो सितंबर को भारतीय नौसेना में कमीशन किया गया। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद आईएनएस विक्रांत नेवी के सुपुर्द किये। पिछले साल 21 अगस्त से पहले इस विमानवाहक पोत के कई सफल ट्रायल समुंद्र में किए जा चुके हैं। नौसेना द्वारा कमान संभालने के एविएशन ट्रायल किया जाएगा। वर्तमान में भारतीय नौसेना के पास सिर्फ एक ही एयरक्राफ्ट आईएनएस विक्रमादित्य है, जो रशियन प्लेटफॉर्म पर बनाया गया। लेकिन INS विक्रांत भारत में निर्मित सबसे बड़ा युद्धपोत हैं। इसका नाम पहले वाले युद्धपोत INS विक्रांत के नाम पर रखा गया है जिसने बांग्लादेश की आजादी के लिए साल 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में अहम भूमिका निभाई।
दरअसल साल 1999 में पाकिस्तान से कारगिल युद्ध के बाद भारत को एक विशाल युद्धपोत को जरूरत महसूस हुई। साल 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली कैबिनेट में युद्धपोत के निर्माण को मंजूरी दी। सात साल बाद 2009 में जहाज के निर्माण की कील रखी गई।