श्रमिकों के मसीहा बने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन। लॉकडाउन में फंसे श्रमिकों के लिये हवाई जहाज की व्यवस्था की और फूलो से स्वागत किया : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार

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श्रमिकों के मसीहा बने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन। लॉकडाउन में फंसे श्रमिकों के लिये हवाई जहाज की व्यवस्था की और फूलो से स्वागत किया : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार

- राजेश कुमार

कोरोना वायरस ( Corona Virus) महामारी का प्रकोप जारी है। इससे बचने और इस बीच ठप पड़े व्यापारिक गतिविधियों को शुरू करने की कोशिश शुरू हो हई हैं। लेकिन इस प्रकरण में झारखंड  के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ( Jharkhand CM Hemant Soren) ने इतिहास रच दिया। उन्होंने वो कर दिखाया जो देश के किसी भी अन्य मुख्यमंत्री ने नहीं किया। उन्हें श्रमिकों का मसीहा कहा जाने लगा है। आखिर क्यों न कहा जाये। उन्होंने जीवन काल के सबसे अधिक संकट में फंसे मजदूरों को सुरक्षित किया। एक लीडर होने के साथ साथ उनमें मानवीय पहलू भी दिखी। ये मानवीय पहलू सिर्फ दिखावे की नहीं थी बल्कि कार्यशैली और उसके परिणामों से साफ साफ दिख रहा था। इसलिये फेम इंडिया मैगजीन और एशिया पोस्ट ने एक सर्वेक्षण के आधार पर उनका नाम देश के 50 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया  और इन 50 में से उन्हें 12 वां स्थान प्राप्त है। यानी वे देश के 12 वें प्रभावशाली व्यक्ति बन चुके हैं। 

दूसरे राज्यों में कार्य कर रहे झारखंड के श्रमिकों को वापस अपने राज्य में बुलाने के लिये उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिसा और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों के पास जहां कोई साफ योजना नहीं थी वहीं झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जो कार्य किया वह ऐतिहासिक है। राज्य से हजारों किलोमीटर दूर अन्य प्रदेशों में फंसे और मायूस श्रमिकों को लाने के लिये मुख्यमंत्री सोरेन ने अथक प्रयास जारी रखा और इसी का परिणाम है कि वे अपने श्रमिकों को सिर्फ रेल हीं नहीं बल्कि हवाई जहाज से भी राज्य में लेकर आये। वे देश के पहले मुख्यमंत्री बने चुके हैं जिन्होंने अपने श्रमिकों को लाने के लिये हवाई जहाज तक के इस्तेमाल किये। खुद राज्य सरकार ने खर्च वहन किये।  

अंडमान में फंसे श्रमिको को एयर मदद :

झारखंड की राजधानी रांची से 1521 किलोमीटर दूर अंडमान में फंसे श्रमिकों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस लॉकडाउन संकट से कैसे निजात पाया जाये। एक तो लगभग डेढ हजार किलोमीटर दूर, उपर से बीच में समुद्री रास्ते। कैसे पहुंचे अपने घर। क्या करें और क्या न करें के बीच जीवन को दांव पर लगाने वाले श्रमिकों के लिये एक तरह से झारखंड के मुख्यमंत्री सोरेन ईश्वर के प्रतिनिधि बनकर सामने आये। उन्होंने अपने श्रमिकों को हवाई जहाज से लाने का निर्णय लिया और अंडमान-निकोबार द्धीप में फंसे 180 श्रमिको 30 मई को हवाई जहाज से रांची पहुंच गये। रांची स्थित बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पहुंचने पर उनका फूल देकर स्वागत किया गया। मुख्यमंत्री सोरेन ने कहा कि सभी श्रमिक भाइयों की घर वापसी से मन को सुकून मिला। 

लेह लद्दाख में फंसे श्रमिकों को एयरलिफ्ट कर लाया गया :

अंडमान-निकोबाह द्धीप फंसे श्रमिकों को झारखंड वापस लाने से एक दिन पहले यानी 29 मई को हिमालय में बसे लेह-लद्दाख में फंसे 60 श्रमिकों को एयर लिफ्ट कर रांची लाया गया। बिरसा मुंडा हवाई अड्डे पर खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनका स्वागत किया। ये श्रमिक बटालिक-करगिल सेक्टर में बीआरओ प्रोजेक्ट में काम करते थे। रांची से लेह-लद्दाख लगभग 1415 किलोमीटर दूर है। उपर से हिमालय पर्वत की कई ऊंचाईयां हैं। वहां से वापस अपने राज्य आ पायेंगे या नहीं श्रमिकों के बीच सवाल था लेकिन श्रमिको ने ट्वीटर पर अपने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से संपंर्क किया। और संपंर्क करते हीं मुख्यमंत्री सोरेन ने उन्हें लाने के लिये कोशिश शुरू कर दी और सभी महत्वपूर्ण संस्थाओं से संपंर्क कर अपने श्रमिकों को हवाई जहाज से रांची लाने में सफल रहे। इसी के साथ झारखंड देश का पहला राज्य बन गया जो अपने श्रमिकों को हवाई जहाज से लेकर आये। श्रमिकों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की जमकर तारीफ की। सिर्फ श्रमिक हीं नहीं बल्कि जिन लोगों को इस बात की जानकारी हो रही है वे मुख्यमंत्री सोरेन की तारीफ कर रहे हैं। 

मुख्यमंत्री सोरेन अपने श्रमिको के राज्य वापसी को लेकर ट्वीट किया कि जोहार झारखण्ड! यह खुशी का पल है। लेह जैसे दूरस्थ क्षेत्र से मेरे झारखण्डी भाई आज तालाबंदी के बाद हवाई मार्ग से अपने राज्य वापस आये हैं। सभी को मेरा जोहार एवं धन्यवाद। यहाँ से भोजन सामग्री के साथ उन्हें गंतव्य तक भेजा जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि  झारखंड आ रहे लोगों की स्किल मैपिंग की जा रही है। उनके कौशल के अनुरूप रोजगार हेतु योजना बनाने का निदेश दिया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए योजनाएं प्रारंभ हुई है, इससे 5 लाख लोग जुड़ चुके हैं। 10 लाख लोगों को इस योजना से जोड़ने का लक्ष्य है। 

ट्रेन की व्यवस्था :

कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन का निर्णय लिया गया और लॉकडाउन में झारखंड के लाखों श्रमिक दूसरे राज्यों में फंस गये। उनके लिये घर आना मुश्किल हो रहा था। खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी। स्थानीय राज्य सरकार जो व्यवस्थाएं कर रही थी उससे जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थी। जो थोड़े बहुत रूपये थे वह भी खत्म हो चुका था। ऐसे में झारखंड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने राज्यों के श्रमिकों को लाने के लिये केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और रेलवे से बातचीत कर उनके लिये ट्रेन की व्यवस्था कराई। खर्चा झारखंड सरकार ने की। और श्रमिको को लेकर तेलंगाना से पहली ट्रेन झारखंडी राजधानी रांची पहुंचा। यहां मुख्यमंत्री सोरेने ने सभी का स्वागत किया फूलों से। उन्हें पानी बोटल और खाने के पैकेट दिये। रेलवे स्टेशन से उनके गांव तक ले जाने के लिये बस की व्यवस्था थी। इसबीच सभी श्रमिकों की मेडिकल जांच भी कराई गई उनके अच्छे स्वास्थ्य के लिये। 

श्रमिको को आर्थिक मदद : 

लॉकडाउन में काफी दिनों तक श्रमिक फंसे रहे। उनके पा जो भी जमा पूंजी थी वह खत्म हो रहा था। बच्चे-पत्नी समेत भूखे रहने की नौबत आई। बड़ी संख्या में लोग पैदल हीं झारखंड-बिहार, उत्तर प्रदेश के लिये निकल पड़े, ये दूरियां 1200 किलोमीटर से ऊपर की थी। आसान नहीं था। रास्ते में कई श्रमिक व उनके परिवार के लोग दम तोड़ रहे थे। अन्य राज्य के मुख्यमंत्री योजना ही बना रहे थे तबतक झारखंड के मुख्यमंत्री ने विधिवत ऐप बनाकर एक सिस्टम बनवाया और लॉकडाउन में फंसे श्रमिकों को सीधे आर्थिक मदद की। इससे श्रमिकों को थोड़ी राहत मिली। 

राज्य में कोई भूखा न रहे इसके लिये अभियान चला : 

लॉकडाउन की वजह से पूरे देश के साथ साथ झारखंड में भी सभी कुछ बंद हो गया। कल-कारखाने बंद हो गये। खदानों में ताला लग गया। स्कूल-कॉलेज व मॉल बंद हो गये। बाजार और कार्यालय यानी सबकुछ बंद हो गया। यहां तक कि ट्रांसपोर्ट भी। ऐसे में गरीबों के लिये जीवन-मरण का सवाल बना। मुख्यमंत्री सोरेन ने अपने सक्षम प्रशासनिक और पुलिस बल की मदद से न सिर्फ शहरों में बल्कि दूरदराज के गांवो तक योजनाबद्ध तरीके से गरीबों को भोजन कराये। जहां भी संभव हुआ सेनेटाइज की व्यवस्था की गई। जागरूता का आलम यह था कि दूर-दराज के गांवों में भी लोग सभी प्रकार के नियमों का पालन कर रहे थे। 

 श्रमिकों के वापसी के साथ नई चुनौती : 

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नई चुनौतियों का सामना करने के लिये पहले से हीं तैयारी में जुट गये थे। लेकिन राज्य की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद वे रोजगार और स्वास्थ्य के क्षेत्र में तेजी से कार्य में जुटी हुई है।  राज्य में जो श्रमिक बाहर से आ रहे हैं इससे संक्रमण की संख्या में वृद्धि होना लाजमी है। अबतक झारखंड में 5 लोगों की मौत हो चुकी है। 563 लोग संक्रमित हैं और 256 लोग स्वस्थ हुए। राज्य सरकार-प्रशासन की सक्रियता की वजह से कोरोना वायरस झारखंड को अभी गिरफ्त में नहीं ले सका है। लेकिन धीरे धीरे इसके फैलने का अंदेशा अभी भी बना हुआ है। जहां तक रोजगार का सवाल है इसके लिये मनरेगा के तहत श्रमिकों को काम मिलने लगा है। ग्रामिण इलाके में कार्य शुरू हो गये हैं। शहरों के लिए योजना बनाई जा रही है। 

बहरहाल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस कोरोना संकट काल में जबरदस्त कार्य किया। यह ऐतिहासिक है। 

जिस तत्परता और कार्यक्षमता के साथ कार्य कर रही है झारखंड में हेमंत की सरकार, यह चर्चा का विषय बना हुआ है। सभी लोग उनकी तारीफ कर रहे हैं। श्रमिकों के आंखों में आंसू थे। जब वे राज्य से बाहर संकट में फंसे थे तब उनके आंखों में अपने और अपने परिवार के भविष्य और जीवन को लेकर आंसू थे और जब वे हवाई-रेल व अन्य मार्ग से झारखंड पहुंचे तो उनके आखों में खुशी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति श्रद्धा के आंसू थे। 

नोट -  Rajesh Kumar, senior Journalist)