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सुप्रीम कोर्ट के नये मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने कहा कि हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है। उन्होंने यह बात सुप्रीम कोर्ट के बार एसोसिएशन (SCBA)के स्वागत समारोह मे कही। उन्होंने बार एसोसिएशन और न्यायाधीशों के मामले में कहा कि मैं एक वकील की चुनौतियों को जानता हूं। बतौर बार-सदस्य 22 साल और जज के रूप मे कार्य करते हुये 19 साल हो गये। उन्होंने कहा कि
- बेंच बार से अपनी शक्ति प्राप्त करती है। महान फैसले महान दलीलों से निकलते हैं।
- बार बेंच की मां हैं। हम एक अविभाजित परिवार हैं। एक के लिए कुछ भी हानिकारक दूसरे को कमजोर करता है। मुझे गर्व है कि मैं इस संयुक्त परिवार में हूं।
- ऐसे अनेक मौके आए जब न्यायपालिका को ऐसे मसले सुलझाने पड़े जिसमें कोई हाथ नहीं डालना चाहता। बार और बेंच का तालमेल और सौहार्द से काम करना ही इस संस्थान का गौरव और आभा है।
- वकीलों की फीस के बारे में, मैंने पहले भी कहा है कि जजों का इससे कुछ लेना- देना नहीं। ये संस्थान राष्ट्र से संबंधित है।
- त्वरित और लागत प्रभावी तरीके से न्याय प्रदान करने के लिए आईटी और प्रौद्योगिकी का प्रयोग करने की जरूरत है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की जरूरत है।
- विश्वविद्यालयों को क्रॉस-परीक्षा की कला को पुनर्जीवित करना चाहिए।
- हर कोई भागदौड़ वाली जीवन शैली जीता है। इससे स्वास्थ्य पर भारी असर पड़ता है। ये समय मानसिक वेलफेयर पर ध्यान केंद्रित करने का है।
17 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के रिटायर होने के बाद जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ने 18 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के 47वें मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ली। जस्टिस बोबडे का कार्यकाल 17 महीनों का है। वे 23 अप्रैल 2021 में रिटायर होंगे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें शपथ दिलाई। बतौर मुख्य न्यायाधीश शपथ लेने के बाद उन्होंने अपनी माताजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
- जस्टिस बोबडे का जन्म 24 अप्रैल 1956 में महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था।
- उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी से ही कानून की डिग्री ली। वे 2000 में बॉम्बे हाइकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त हुए थे।
- साल 2012 में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला। अप्रैल 2013 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति दी गई।
बहरहाल बताया जाता है कि जस्टिस बोबडे खाली समय में किताब पढना पंसद करते हैं। उन्हें सादगी पसंद है। जस्टिस बोबडे पूर्व सीजेआई गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए बनी समिति में शामिल थे। अयोध्या प्रकरण के लिये बने पांच जजों की संवैधानिक पीठ में वे भी थे।