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जमीन से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है। अदालत ने 8 अगस्त को व्यवस्था दी है कि अगर कोई व्यक्ति (कब्जाधारी व्यक्ति/ एडवर्स पजेसर) 12 साल या उससे अधिक समय तक जमीन पर कब्जा रखता है या उसकी देखभाल करता है और मालिक को इसके बारे में पता है लेकिन वह उसे कभी इसे हटाने के लिए नहीं कहता है, तो ऐसा व्यक्ति उस जमीन का मालिक हो जाएगा। सुप्रीम अदालत अदालत ने यह भी कहा है कि इतना ही नहीं अगर ऐसे व्यक्ति को इस जमीन से बेदखल किया जा रहा है तो वह व्यक्ति बतौर मूल स्वामी की तरह जमीन की रक्षा कर सकता है।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस अब्दूल नजीर और जस्टीस एमआर शाह की पीठ ने यह व्यवस्था देते हुए पूर्व में इस संबंध में शीर्ष अदालत की तीन सदस्यीय पीठ के फैसले को सही कानून नहीं माना और उसे निरस्त कर दिया। लेकिन उन्होंने इस बारे में विभिन्न उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत की पीठ के अलग-अलग दिए गए फैसलों को देखते हुए इस मुद्दे को अंतिम रूप से निर्णित करने के लिए बड़ी बेंच (संविधान पीठ) को रेफर कर दिया।
इससे पूर्व 2014 में उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने फैसला दिया था कि एडवर्स कब्जाधारी व्यक्ति जमीन का अधिकार नहीं ले सकता है। साथ ही कहा था कि अगर मालिक जमीन मांग रहा है तो उसे यह वापस करनी होगी। इसके साथ ही कोर्ट ने इस फैसले में यह भी कहा था कि सरकार एडवर्स पजेशन के कानून की समीक्षा करे और इसे समाप्त करने पर विचार करे।
जस्टिस मिश्रा की पीठ ने हालांकि कहा कि लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 65 में यह कहीं नहीं कहा गया है कि एडवर्स कब्जाधारी व्यक्ति अपनी भूमि को बचाने के लिए मुकदमा दायर नहीं कर सकता है। ऐसा व्यक्ति कब्जा बचाने के लिए मुकदमा दायर कर सकता है और एडवर्स कब्जे की भूमि का अधिकार घोषित करने का दावा भी कर सकता है।
कोर्ट ने कहा कि गुरुद्वारा साहिब बनाम ग्राम पंचायत श्रीथला(2014), उत्तराखंड बनाम मंदिर श्रीलक्षमी सिद्ध महाराज (2017)और धर्मपाल बनाम पंजाब वक्फ बोर्ड (2018) में दिए गए फैसलों को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि ये फैसले सही कानून का प्रतिपादन नहीं करते।