आम आदमी के लिये लड़ रहा हूं : शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे

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आम आदमी के लिये लड़ रहा हूं : शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे

बीजेपी और शिवसेना के बीच दुरियां लगातार बढती जा रही है। राजनीति में कब क्या हो जाये कहा नहीं जा सकता लेकिन आज की तिथि में दोनो ही पार्टियों के नेताओं ने जो रूख अख्तियार किया है उससे साफ है कि अगला चुनाव दोनो ही दलें अलग अलग लडेगी। इस बार में सामना के कार्यकारी संपादक संजय राऊत ने शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे का इंटरव्यू किया है। इस इंटरव्यू को तीन किश्तों में प्रकाशित किया जायेगा। सामना ने पहले किश्त का जो इंटरव्यू प्रकाशित किया वो अक्षरश: निम्नलिखित है। 

श्रीकृष्ण ने गीता कहा लेकिन उसे अमल में शिवाजी महाराज ने लाया। उस शिवराय के प्रतिमा की ऊंचाई महाराष्ट्र में कम करते हो?’ ऐसा सवाल शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के शासकों से किया। उद्धव ठाकरे ने एक  जबरदस्त राजनीतिक बयान दिया।‘शिकार तो मैं ही करूंगा, उसके लिए दूसरे की बंदूक का इस्तेमाल नहीं करूंगा लेकिन बंदूक की जरूरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने आम जनता को भरोसा दिलाते हुए कहा कि मोदी के सपनों के लिए नहीं, आम आदमी के सपनों लिए लड़ रहा हूं। शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सामना के लिए एक बुलंद साक्षात्कार दिया। विचारों की भव्यता वाला यह संवाद महाराष्ट्र तथा देश की राजनीति को दिशा देने वाला साबित होगा।

शिवसेना प्रमुख का साक्षात्कार जब जारी था, उसी समय महाराष्ट्र में दूध का आंदोलन चल रहा था। संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर तूफानी चर्चा जारी थी। कई सवालों के तूफान जब उमड़ रहे थे तब उद्धव ठाकरे शांत और ‘रिलेक्स’ मूड में थे। शिवसेना प्रमुख का साक्षात्कार ‘सामना’ में तीन हिस्सों में प्रकाशित होगा। चाणक्य नीति से ठाकरे नीति तक विभिन्न विषयों के राजनीतिक सवालों पर उन्होंने बड़ी ही ‘प्रखरता’ से जवाब दिए। साक्षात्कार की शुरुआत राष्ट्रीय राजनीति से हुई। 

 

प्रश्न - उद्धवजी, बाहर राजनीतिक तूफान उमड़ रहा है और आप इतने ‘रिलेक्स’ कैसे? 

उत्तर - साक्षात्कार शुरू करने से पहले आपने मेरी काफी प्रशंसा की इसके लिए धन्यवाद! क्योंकि आजकल प्रशंसा के शब्द कान में बहुत कम पड़ते हैं। आप तूफान की बात कर रहे हैं। तूफान मतलब गड़गड़ाहट, बिजलियों की चमक भी उसमें आती है। लोकसभा में इन दिनों यही चल रहा है। अविश्वास प्रस्ताव को लेकर जो कुछ चल रहा है, उसके बारे में ‘सामना’ के अग्रलेख में अत्यंत प्रभावी तरीके से  शिवसेना की भूमिका रखी है। मैं शांत कैसे रहता हूं, यह आपका सवाल है…बाहर हंगामा चल रहा है… लेकिन आप शांत…।  इसकी  वजह है कि मेरे मन में कभी पाप नहीं होता। मैं जो कुछ बोलता हूं बड़ी आस्था से बोलता हूं। किसी का भी अच्छा हो इसीलिए बोलता हूं। किसी का बुरा हो इसके लिए मैं कभी नहीं बोलता… बोलूंगा भी नहीं… और किसी का बुरा हो, ऐसी कभी कोशिश भी नहीं की… संभवत: करूंगा भी नहीं…। ऐसी सीख या ऐसा संस्कार मुझे नहीं मिला है। जिस समय सरकार के खिलाफ शिवसेना कोई भूमिका लेती है लोगों को ऐसा लगता है… मैं अविश्वास प्रस्ताव के बारे में यही कह रहा हूं कि उधर लोकसभा में जब रणक्रंदन जारी है, मैं शांति से आपसे बातचीत कर रहा हूं। इसकी वजह यह है कि मुझे संतुष्टि है कि शिवसेना पिछले चार वर्षों में विभिन्न विषयों पर जो भूमिका रखती आई वही भूमिका अब अन्य लोगों को अपनानी पड़ रही है।

 

प्रश्न - यह प्रस्ताव आपके मित्रदल के खिलाफ है।

उत्तर - होगा, शिवसेना किसी की दोस्त है क्या? निश्चित है। शिवसेना भारतीय जनता की मित्र है। किसी एक पार्टी की मित्र नहीं… कभी नहीं…इसीलिए समय-समय पर कोई बात मुझे पसंद न आए या योग्य न लगे तो उस समय मैं बोलता हूं और वैसा बोलता हूं और  बोलूंगा ही… उसी सबका नतीजा देखिए। पिछले चार वर्षों में शिवसेना ने जो भूमिकाएं रखीं वही अब लागू पड़ रही हैं। इसे देखकर हर  कोई उसे रख रहा है। और कौन सा दल उनके बारे में रखेगा। यह सबकुछ मैं शुरू में ही रख चुका हूं। हमने सरकार की किसी भूमिका  या नीति का विरोध किया तो वह देश के, जनता के हित के लिए ही किया।

प्रश्न - सरकार में रहकर आपको ऐसा क्यों लगता है कि हमेशा विरोध किया जाए? जो काम विरोधी दल को करना चाहिए वो आप क्यों  कर रहे हो?

उत्तर - विरोधी दल क्या कर रहा है इसे लोगों ने देखा है। शिवसेना केंद्र और राज्य की सत्ता में शामिल है… हां, निश्चित ही है। हमने  कभी भी छिपकर कभी कोई बात नहीं की। जो कुछ भी किया वह खुलेआम किया। साथ दिया, वह भी खुलेआम दिया और विरोध किया  तो वो भी खुलेआम ही।

 

प्रश्न - लेकिन यह सचमुच है क्या?

उत्तर - क्यों न हो? सरकार पर अंकुश रखने का काम कर रही है शिवसेना। हमारे पास मंत्री पद है, इसकी वजह यह  है कि पिछले  लोकसभा चुनाव में शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी की युति थी। देश में इन दिनों जो कुछ कामकाज चल रहा था। (हालांकि आज भी कुछ अलग ऐसा मुझे नहीं लगता…) उस समय कोई तो एक उसमें परिवर्तन करेगा, ऐसा देश की जनता की तरह हमें भी आशा  थी। कुछ अच्छी बातें इस सरकार के कार्यकाल में हुई होंगी तो उसकी प्रशंसा करना भी हमारा स्वभाव है। अच्छी बातें बिल्कुल हुई ही नहीं, ऐसा नहीं है। कुछ बातें गरीब जनता के हित की नहीं, वहां सत्ता में होने के बावजूद हम विरोध करेंगे ही। इसकी वजह मैंने आपको बताई है कि हम मित्र हैं तो अपने देश की जनता के। 

 

प्रश्न - सरकार पर अविश्वास प्रस्ताव आया… आपने निर्णय लिया कि उस चर्चा में या उस संपूर्ण प्रक्रिया में नहीं शामिल होना है। सत्ता  में रहकर भी सरकार को मतदान नहीं करना है। यह थोड़ा अटपटा नहीं लगता क्या?

उत्तर - बिल्कुल नहीं। सरकार को मतदान करना होता तो इतने दिनों तक हम सरकार के निर्णय पर हमला क्यों बोलते? आज जो सब लोग मिलकर बोल रहे हैं, वह भूमिका शिवसेना ने पहले ही रखी थी। फिर चाहे वह नोटबंदी की हो, जीएसटी की हो, भूसंपादन कानून  की हो, कोई भी विषय ले लो, आज सभी लोग एक होकर बोल रहे हैं। लेकिन उस समय इसके खिलाफ बोलने का साहस सिर्फ शिवसेना  ने ही दिखाया। इसीलिए मैं कहता हूं कि सत्ता में हम हैं, लेकिन विश्वास दर्शक-अविश्वास दर्शक यह जो कुछ भी मामला है… निश्चित  कौन, किस पर विश्वास और अविश्वास दिखाए? हम विरोधी दल में जाकर सरकार के खिलाफ मतदान करें क्या? विरोधी दल ने भी तो ऐसा क्या किया है। जब शिवसेना जनता के मुद्दों पर आवाज उठा रही थी, उस समय ये दल कहां थे? गरीबों को चौपट करनेवाली नोटबंदी की गई। मुझे पता है कि दूसरे या तीसरे दिन ही अकेले शिवसेना ने देशभर में आवाज उठाई थी। .... जारी 

 (नोट - उपरोक्त इंटरव्यू शिवसेना के प्रमुख अखबार सामना से ली गई है।)