पूर्व जस्टिस अरूण मिश्रा बने मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष।

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पूर्व जस्टिस अरूण मिश्रा बने मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष।

टाइम्स खबर timeskhabar.com

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश अरूण मिश्रा को मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। मानवाधिकार अध्यक्ष की नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति के सिफारिश पर राष्ट्रपति करते हैं। इसके सदस्य होते हैं प्रधानमंत्री के अलावा केंद्रीय गृहमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा उपाध्यक्ष और लोकसभा-राज्यसभा में विपक्ष के नेता। अरूण मिश्रा के नियुक्ति पर विरोध के स्वर उठ रहे हैं आखिर क्यों?

क्या है मुख्य कारण विरोध के - 

मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हीं होते आये हैं। 2 जून (2021) को रिटार्यड जस्टिस अरूण कुमार मिश्रा को नियुक्त करने से पहले भी पूर्व मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू आयोग के अध्यक्ष थे। इनका कार्यकाल बीते साल 2 दिसंबर(2020) को हीं समाप्त हो गया। लगभग 6 महीने तक यह पद खाली रहा। सरकार ने किसी का चयन नहीं किया। विरोध का इससे भी बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि जस्टिस मिश्रा ने अपने पद पर रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुणगान किये। कहा जा रहा है कि यदि एक न्यायाधीश सरेआम प्रधानमंत्री का गुणगान करे तो न्यायपालिका के फैसले पर लोग संदेह करने लगते हैं। और अभी मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किये जाने पर लोग यहीं कह रहे हैं कि गुणगाण का उन्हें फल मिला है। 

जस्टिस मिश्रा ने क्या गुणगान किये थे - 

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रहते हुए अरूण कुमार मिश्रा ने 22 फ़रवरी (2020) को दिल्ली में आयोजित इंटरनेशनल ज्यूडिशियल कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जमकर तारीफ की थी। उन्हें वैश्विक स्तर पर स्वीकृत दार्शनिक बताते हुए कहे कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। जीनियस हैं। इस कार्यक्रम में 20 देशों के जज शामिल हुए थे। उन दिनों भी उनके बयान की आलोचना की गई थी। 

क्या जस्टिस मिश्रा की नियुक्ति नियम के खिलाफ है?

यह बात सहीं है कि बीते 27 सालों से मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ही रहे हैं लेकिन नियम में बदलवा होने की वजह से पहली बार सुप्रीम कोर्ट के किसी जस्टिस को मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। जो नियमानुसार गलत नहीं है लेकिन बतौर न्यायाधीश प्रधानमंत्री की तारीफ करने पर वे निशाने पर हैं। 1993 में अस्तित्व में आये प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स एक्ट (PHRA) के तहत यह नियम बनाया गया कि सुप्रीम कोर्ट के किसी पूर्व मुख्य न्यायाधीश को हीं मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया जायेगा। और ऐसा हीं होता रहा। लेकिन 8 जुलाई 2019 को इसमें बदलाव किया गया। प्रोटेक्शन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स (अमेंडमेंट) बिल - 2019 पेश किया गया जिसके तहत यह नियम बनाया गया कि सुप्रीम कोर्ट के किसी भी जस्टिस को आयोग का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसमें यह भी सुधार किया गया कि कार्यकाल पांच साल की वजाय तीन का ही होगा। अधिकतम आयु 70 साल की होगी। यह विधेयक 19 जुलाई 2019 को लोकसभा से और 22 जुलाई 2019 को राज्य सभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति के साइन होते हीं कानून का रूप ले लिया। और इसी कानून के तहत जस्टिस मिश्रा की नियुक्ति की गई है। 

बहरहाल जसिट्स मिश्रा की नियुक्ति को लेकर सोशल मीडिया में लगातार सवाल खड़े किये जा रहे हैं। जब उनके नाम पर चयन समिति के सामने रखे गये तो विपक्ष के नेता व कांग्रेस लीडर मल्लिकार्जुन खडेगे ने सवाल उठाये थे।