परिवार की गिरफ्त से बाहर नहीं निकला, तो कांग्रेस का अंत सुनिश्चित है : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

1
परिवार की गिरफ्त से बाहर नहीं निकला, तो कांग्रेस का अंत सुनिश्चित है : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं द्वारा लिखी गई चिट्ठी के बाद संगठन के अंदर जो प्रतिक्रिया हो रही है, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए यह बहुत बड़ा अपशकुन है। जिन नेताओं ने पार्टी को मजबूत बनाने के ध्येय से पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष को पत्र लिखा, उन्हें ही पार्टी विरोधी करार दिया जा रहा है और यह काम वे लोग कर रहे हैं जो खुद मानसिक दासता से ग्रस्त होकर सोनिया, राहुल और प्रियंका के अलावा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर किसी और को नहीं देखना चाहते।

खुद सोनिया और उनके बेटे-बेटी का रवैया पत्र प्रकरण पर सकारात्मक नहीं रहा। सोनिया गांधी ने वैसे खिलाफ में जाहिरा तौर पर कुछ नहीं बोला, लेकिन चिट्ठी लिखने वालों की सराहना करके पार्टी में वैसा माहौल बनने से वह रोक तो सकती ही थीं, जैसा आज बन गया है। राहुल गांधी ने तो चिट्ठी लिखने वालों की आलोचना भी कर दी। पहले यह खबर आई थी कि उन्होंने पत्र लिखने वालों के बीजेपी से सांठगांठ करने वाला तक कह दिया, लेकिन बाद में उन्होंने इसका खंडन किया। लेकिन उन्होंने पत्र लिखे जाने के समय पर सवाल उठाकर अपनी नाराजगी तो जाहिर कर ही दी। वे कह रहे हैं कि पत्र उस समय लिखा गया, जब सोनिया अस्पताल में थीं और पार्टी नेतृत्व राजस्थान संकट का सामना करने में लगा हुआ था। पर पत्र लिखने वाले कह रहे हैं कि सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के एक साल पूरा होने की तिथि को ध्यान में रखते हुए उन्होंने वैसा किया।

इस प्रकरण में एक बात और सामने आई और वह यह कि राहुल गांधी द्वारा पिछले साल अध्यक्ष का पद छोड़ना एक छलावा था। यदि उन्होंने पार्टी का पद छोड़ ही दिया था, तो इस पत्र पर उनकी छटपटाहट का राज क्या है? इसमें ऐसा कुछ भी नहीं लिखा गया था, तो संगठन के खिलाफ हो। सोनिया गांधी अस्वस्थ रहती हैं और वे पार्टी को ज्यादा समय नहीं दे पातीं और उनसे उम्मीद भी नहीं की जाती। राहुल गांधी अध्यक्ष नहीं बनने के लिए कथित रूप से अड़े हुए हैं, तो फिर कांग्रेस कोई अपना अध्यक्ष परिवार से बाहर क्यों नहीं चुन सकता? राहुल की प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि उन्होंने अध्यक्ष का पद भले छोड़ दिया हो, लेकिन अध्यक्ष पद की सत्ता उन्होने नहीं छोड़ी है। निर्णय प्रक्रिया पर वे हावी हैं, लेकिन सभी प्रकार की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर। वे किसी पार्टी नेता के फोन कॉल का जवाब देना जरूरी नहीं समझते। वे किसी से मिलना भी जरूरी नहीं समझते। बहाना यह कि वे किसी पद पर नहीं हैं और कोई समस्या को सुलझाने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन पार्टी का रिमोट संचालन वही कर रहे हैं।

जाहिर है कि सोनिया गांधी राहुल की रिमोट है और पत्र लिखने वाले उनके रिमोट छीनने की बात कर रहे थे। इसलिए उनका छटपटाना स्वाभाविक था। पिछले साल जब उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ दिया था, तो उनसे कहा गया था कि वे किसी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दें, लेकिन इसके लिए भी तैयार नहीं हुए। शायद उन्हें नरसिंह राव का हश्र याद था, जिन्होंने सीताराम केसरी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। फिर सीताराम केसरी ने नरसिंह राव की ही ऐसी तैसी कर दी थी। अध्यक्ष पद से हटने के पहले नये अध्यक्ष का चुनाव करवाना भी उन्हीं की जिम्मेदारी थी, लेकिन उन्होंने वह भी नहीं किया। उलटे जिस कांग्रेस कायसमिति का उन्होंने गठन किया था, वह कार्यसमिति बनी रही। कायदे से वह भी भंग घोषित किया जाना चाहिए था, लेकिन शातिराना तरीके से राहुल ने न तो कार्यसमिति भंग की और न ही नियुक्त पदाधिकारियों को उनके पद से मुक्त हो जाने की घोषणा की। जब उनके द्वारा नियुक्त कार्यसमिति और पदाधिकारी तो वहीं करते, जो राहुल चाहते। लिहाजा अध्यक्ष चुना ही नहीं गया और ढाई महीने के ड्रामें के बाद सोनिया गांधी अस्वस्थ होने के बावजूद अंतरिम अध्यक्ष बन गईं। अंतरिम अध्यक्ष का पहला काम एक नियमित अध्यक्ष का चुनाव कराना होना चाहिए था, लेकिन चुनाव करवाने में उन्होंने दिलचस्पी कभी नहीं दिखाई। एक साल बीतने के बाद कांग्रेस नेताओं ने चुनाव कराने की उनकी जिम्मेदारी की ही तो याद दिलाई थी, जिस पर राहुल गांधी बिफर गए।

प्रियंका गांधी की भूमिका भी कुछ वैसी ही थी। वे अभी कांग्रेस की महासचिव है और पार्टी को उत्तर प्रदेश में फिर से जिंदा करने की जिम्मेदारी निभा रही है। परिवार भक्त समय समय पर उनको भी पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग करते रहते हैं, लेकिन राहुल गांधी को यह मंजूर नहीं। इसीलिए पिछले साल पार्टी अघ्यक्ष छोड़ने के बाद उन्होंने घोषणा की कि उनके परिवार का अन्य व्यक्ति अध्यक्ष नहीं बनेगा। ऐसी घोषणा उन्होंने प्रियंका को पार्टी अध्यक्ष बनने से रोकने के लिए ही की थी, क्योंकि जब उनकी मां पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनीं, तो उन्होंने उस पर आपत्ति नहीं की, बल्कि उस निर्णय को स्वीकार भी कर लिया।

ताजा प्रकरण में प्रियंका गांधी पूरी तरह से राहुल के साथ हैं और वह भी पत्र लिखे जाने पर अपनी छटपटाहट दिखा रही हैं। वह खुद अध्यक्ष बनने के लिए आगे नहीं आ सकतीं, क्योकि खुद पर भरोसा नहीं है और भाई राहुल से भी टकराव नहीं लेना चाहती हैं। इसलिए वह यथास्थिति बने देखना चाहती हैं, ताकि वे भी अपनी मां के अध्यक्ष होने से सशक्त महसूस करती रहें।

परिवार के नेतृत्व का अपरिहार्य बताते हुए दास प्रवृति के कांग्रेसी कहते हैं कि यदि बाहर का कोई अध्यक्ष बना, तो पार्टी बिखर जाएगी। इसे एक परिवार ही रख सकता है। लेकिन वह यह नहीं देख रहे कि परिवार के नेतृत्व में पार्टी ही समाप्त हो रही है। पार्टी बिखरेगी या नहीं, यह तो भविष्य की बात है, लेकिन पार्टी समाप्त हो रही है, यह तो साफ देख रहा है। पार्टी आज कुछ हद तक प्रादेशिक नेताओं के कारण जहां तहां अस्तित्व में है, लेकिन सोनिया परिवार का कोई व्यक्ति कांग्रेस के लिए वोटों का जुगाड़ नहीं कर सकता। उनमें से कोई मास लीडर नहीं हैं। यदि उनसे कांग्रेस ने छुटकारा नहीं पाया, तो उसका अंत निश्चित है।

नोट  - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचार हैं)।