प्रशांत भूषण को माफी नहीं मांगनी चाहिए लोकतंत्र सर्वोपरि है : उपेन्द्र प्रसाद

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प्रशांत भूषण को माफी नहीं मांगनी चाहिए लोकतंत्र सर्वोपरि है : उपेन्द्र प्रसाद

प्रशांत भूषण के खिलाफ चल रहे अदालती अवमानने की कार्रवाई ने अब दिलचस्प मोड़ ले लिया है। उन्हें इस मामले में दोषी तो पहले ही करार दिया गया है और सजा 20 अगस्त को सुनाई जानी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सजा के कुछ समय के लिए टाल दिया है। उम्मीद की जा रही थी 20 अगस्त को सजा का एलान हो जाएगा और दिलचस्पी इस बात को लेकर थी कि उन्हें कितने दिनों के लिए सजा होगी। लेकिन सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने अदालत से यह कहकर सबको अचंभित कर दिया कि भूषण को सजा नहीं दी जाय। प्रशांत भूषण अपने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से सरकारी प्रतिष्ठान को भी सांसत में डालते रहते हैं। मोदी सरकार के खिलाफ भी उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान छेड़ रखा है। इसलिए यह आश्चर्यजनक था कि मोदी सरकार ने भी उन्हें सजा न देने की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट से की।

हालांकि जो राजनीति की गहरी समझ रखते हैं, वे केन्द्र सरकार के इस रवैये को आसानी से समझ गए होंगे। केन्द्र सरकार को भी जनता के बीच होने वाली प्रतिक्रिया की चिंता है। जैसा कि डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने कहा है कि लोकराज लोकलाज से चलता है और हो रहे तमाम किस्म के हमलों के बावजूद भारत में लोकराज अभी भी मौजूद है। चुनाव अभी भी होते हैं और केन्द्र की सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी को भी चुनाव लड़ना है। आज यदि प्रशांत भूषण को जेल होती है, तो इसका खामियाजा भारतीय जनता पार्टी को भी चुनावों में भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि आज जनमत प्रशांत भूषण के साथ है। 10 हजार वकील प्रशांत के साथ हैं। अनेक सेवानिवृत सुप्रीम कोर्ट के जजों ने भी प्रशांत भूषण का साथ दिया है। सोशल मीडिया में भी उनको जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है। भारतीय जनता पार्टी का आईटी सेल भूषण के खिलाफ लगा हुआ है, लेकिन लगता है कि भाजपा मीडिया सेल को इधर कोरोना का घुन लग गया है। उसके साइबर योद्धाओं की संख्या घट गई है। कुछ योद्धा तो पाला बदल चुके हैं।

लिहाजा, भारतीय जनता पार्टी को जनभावना का ख्याल रखना पड़ रहा है और उसकी सरकार भी अब नहीं चाहती कि प्रशांत भूषण को कोई सजा दी जाय। मोदी सरकार के वकील ने अदालत में कहा कि भूषण को माफ कर दिया जाय। सुप्रीम कोर्ट भी माफी के मूड में आ गई और उसने भूषण को कहा कि वे माफी मांग लें। लेकिन भूषण ने साफ कह दिया कि वे न तो माफी मांगेंगे और न ही ये कहेंगे कि सजा देते समय उनके प्रति उदारता दिखाई जाय। उन्होंने कहा कि भले ही सुप्रीम कोर्ट उनकी टिप्पणी का अलग अर्थ लगाते हुए उन्हें दोषी मान चुका हो, लेकिन वे मानते हैं कि उन्होंने लोकतंत्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाया और पूरी तरह सोच विचार कर ही वह टिप्पणी की, जो उन्हें बहुत जरूरी लगा। इसलिए वे न तो माफी मांगेंगे और न ही अपनी टिप्पणी में कोई संशोधन करेंगे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय देने के बात करने के बाद उन्होंने कहा कि वे दोस्त वकील से इस पर राय करेंगे, लेकिन अपनी टिप्प्णी में कोई बड़ा संशोधन करेंगे, इसकी कोई संभावना नहीं है।

 

सुप्रीम कोर्ट में 20 अगस्त को जो कुछ हुआ, वह चंपारण की एक अदालत की कार्यवाही की याद दिला देता है। गांधीजी के खिलाफ अदालत में सुनवाई हो रही थी। गांधीजी का वह भारत में पहला बड़ा जन आंदोलन था, जिसमें लाखों लोगों ने शिरकत की थी। उन पर देशद्रोह का चार्ज लगाया गया था। लोगों के मूड को भांपते हुए जज उन्हें सजा नहीं देना चाहता था। जज ने गांधीजी से अनुरोध किया कि वे माफी मांग लें और बात यहीं खत्म कर देते हैं। गांधीजी ने साफ कह दिया कि वे माफी नहीं मांगेंगे और अदालत जो भी सजा देगी उसे मानेंगे, लेकिन उसके साथ यह भी मानते रहेंगे कि उन्होंने एक नागरिक की हैसियत से कुछ भी गलत नहीं किया था। जज गांधीजी को गिरफ्तार कर जेल नहीं भेजना चाहता था, क्योंकि तब लाखों लोग जेल जाने को तैयार हो जाते और एक साथ लाखों को जेल में रखा ही नहीं जा सकता था। तब अदालत ने कहा कि आप जमानत लेकर यहां से चले जाइए। गांधी ने कहा कि वे जमानत के पैसे भी नहीं भरेंगे। अंत में जज को उन्हें बिना शर्त रिहा करना पड़ा। वह लोकराज का जमाना नहीं था, लेकिन फिर भी जज को लोकलाज या लोकभय के सामने सिर झुकाना पड़ा। गांधीजी पर आरोप ही गलत थे, क्योंकि उन्होंने सिर्फ किसानों की मांग ही रखी थी।

प्रशांत भूषण के मामले में भी बहुत बातें मिलती जुलती थीं। इसलिए भूषण ने गांधी का चंपारण की अदालत को दिए बयान को ज्यों का त्यों दुहरा दिया और कहा कि आप हमें सजा दे दीजिए, लेकिन हम माफी नहीं मांगेंगं, बल्कि जो भी सजा देंगे, उसे भोगने के लिए वे तैयार हैं।

बहरहाल, अभी सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आया है और प्रशांत भूषण ने भी माफी नहीं मांगी है। उनकी टिप्पणी में जो अतिरेक था, उसे वे पहले ही स्वीकार कर चुके हैं। 50 लाख की एक मोटर बाइक, जो भाजपा के एक नेता के नाम पंजीकृत थी, उसकी तस्वीर डालते हुए प्रशांत भूषण ने लाॅकडाउन के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा लाखों मजदूरों की दशा की अनदेखी करते हुए उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा नहीं करने का आरोप लगाया था और कहा था कि बिना हेलमेट पहने वे उस बाइक पर बैठे हैं और बाइक भाजपा नेता की है। बाद में उन्होंने सुधार करते हुए कह दिया कि हेलमेट पहनना जरूरी नहीं था, क्योंकि वह बाईक खड़ी थी। चीफ जस्टिस ने कहा कि उनको पता नहीं था कि वह बाईक बीजेपी नेता की थी। लेकिन प्रशांत भूषण को ही कहां पता था कि उस बाईक के मालिक के बारे में चीफ जस्टिस को पता था या नहीं।

फिर सुनवाई होगी। कोर्ट पूछेगा कि भूषण ने क्या फैसला किया है- वे माफी मांग रहे हैं या नहीं। भूषण को माफी हरगिज नहीं मांगनी चाहिए। कोर्ट जो भी सजा दे, उसे भुगतने के लिए उसी तरह तैयार रहना चाहिए, जैसे महात्मा गांधी चंपारण सत्याग्रह के दौरान थे।

नोट  - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचा