Bihar-Election बिहार विधानसभा चुनाव इसे टालने में ही समझदारी है : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

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Bihar-Election बिहार विधानसभा चुनाव इसे टालने में ही समझदारी है : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

बिहार विधानसभा ( Bihar Vidhansabha) का वर्तमान कार्यकाल समाप्ति की ओर है और नवंबर महीने तक नई विधानसभा के लिए चुनाव हो जाना चाहिए। चुनाव की वहां सरगर्मी भी शुरू है। लेकिन इसी सरगर्मी के बीच वहां कोरोना के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। यदि दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से उनकी तुलना करें, तो वहां अभी भी कोरोना के मामले कम दिख रहे हैं। जाहिर है, कोरोना मामले अभी पीक की और बढ़ ही रहे हैं। प्रतिदिन कोरोना संक्रमण के मामले में 19 जुलाई को तो इसने दिल्ली को भी पीछे छोड़ दिया है। पटना में राजनिवास, मुख्यमंत्री निवास, सचिवालय, भाजपा कार्यालय जैसी जगहों में भी कोरोना पोजिटिव पाए गए हैं।

जाहिर है, वहां चुनाव के लिए सही माहौल नहीं है। अभी तो वहां कोविड का प्रकोप कम है। समय के साथ यह बढ़ता जा रहा है। स्वास्थ्य का वहां ढांचा बहुत कमजोर है। वह इतना कमजोर है कि हम उसे लगभग अनुपस्थित मान सकते हैं। इसके कारण जो बीमार हैं, उनका सही इलाज नहीं हो पा रहा है। एक मामला तो ऐसा आया कि जो डॉक्टर कोरोना का इलाज कर रहा था और इलाज करते हुए जब खुद संक्रमित हो गया, तो उसको किसी अस्पताल में भर्ती होने के लिए बेड ही नहीं मिल रहा था। चर्चा है कि कोविड अस्पतालों में राजनीतिज्ञ और उनके रिश्तेदार भरे हुए हैं और खुद बीमार डॉक्टरों के लिए बेड का अभाव हो गया है। यह भी खबर आई है कि अनेक अस्पताल ही वहां बंद कर दिए गए हैं, क्योंकि अस्पताल में जरूरी स्टाफ नहीं हैं।

ऐसी हालत में वहां कोरोना का महाविस्फोट होने की संभावना अधिकतम हैं। अभी महाराष्ट्र प्रति दिन 9000 कोरोना संक्रमण से आगे निकल गया है, जबकि वहां स्वास्थ्य सुविधाएं बिहार से कई गुना बेहतर है और लोगों की जांच भी बहुत ज्यादा हो रही है। लेकिन बिहार में तो जांच ही बहुत कम हो रही है और ऐसे हजारों लोग हैं, जो कोविड पीड़ित हैं, पर उन्हें खुद उसके बारे में पता नहीं। फिर तो वे दूसरों को भी भारी पैमाने पर कोरोना दे रहे हैं। जाहिर है, जितने कोरोना पीड़ितों के आंकड़े राज्य सरकार के पास है, उससे कई गुना ज्यादा लोग इस बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं। वहां छोटे छोटे कस्बों में यह बीमारी पहुचं गई है और गांवों तक इसका प्रसार हो रहा है।

बढ़तं मामलों को देखते हुए बिहार के बहुत बड़े हिस्से में सरकार ने लॉकडाउन घोषित कर रखा है। खुद राजधानी पटना में लॉकडाउन है। वहां 100 के करीब हॉटस्पॉट भी हैं। यह तब है, जब सही संख्या में टेस्टिंग नहीं हो पा रही है। यदि सही संख्या में टेस्टिंग हो तो पता नहीं कितने सौ हॉटस्पॉट अकेले पटना शहर में ही दिखाई देंगे। लॉकडाउन तो वहां किया गया है, लेकिन हमारा अनुभव कहता है कि लाॅकडाउन कोरोना को प्रसार को रोक नहीं पाता है। दुनिया का सबसे ज्यादा सख्त लॉकडाउन का सामना भारत ने ही किया है, लेकिन आज यह दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित देश है। अमेरिका और ब्राजील हमसे आगे रह गया है प्रति दिन संक्रमण की बात करें, तो यह ब्राजील को भी पीछे छोड़ चुका है। 19 जुलाई को ब्राजील में कुल 25 हजार नये लोग संक्रमित पाए गए, जबकि भारत में ऐसे लोगों की संख्या 40 हजार से भी ज्यादा थी। यानी भारत अब ब्राजील को भी पीछे छोड़कर दूसरा स्थान हथियाने की ओर बढ़ रहा है।

यदि भारत इसी गति के साथ कोरोना संक्रमित होता रहा और संक्रमण की रफ्तार भी बढ़ती रही, तो यह दुनिया का सबसे ज्यादा संक्रमित देश बन जाएगा और अमेरिका भी इससे पीछे छूट जाएगा। वैसे मानने वाले यह मानते हैं कि भारत इसी समय दुनिया का सबसे ज्यादा संक्रमित देश है, क्योंकि यहां अमेरिका के हिसाब से बहुत कम टेस्ट हुए हैं। यदि टेस्ट में यह अमेरिका की बराबरी करे, तो कुल संक्रमण के मामले में वह उससे अभी ही आगे निकल जाएगा।

बहरहाल हम बात बिहार की कर रहे हैं। वहां चुनाव नवंबर में होने वाले हैं और नवंबर में वहां कोरोना पीड़ितों की संख्या करोड़ो में पहुंच सकती है। ऐसी स्थिति आ सकती है कि प्रत्येक 10 व्यक्ति में एक व्यक्ति कोरोना पोजिटिव रह चुका है। तो वैसी स्थिति में सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत सबसे ज्यादा पड़ेगी, लेकिन क्या सोशल डिस्टेंसिंग के द्वारा चुनाव लड़ा जा सकता है। चुनावी गतिविघियों में सोशल डिस्टेंसिंग की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। आज यदि बिहार में राजनैतिक लोगों की संख्या सबसे ज्यादा कोरोना पीड़ित है, तो उसका कारण यही है कि चुनाव के मद्देनजर वहां के राजनैतिक लोगों की गतिविधियां सबसे ज्यादा तेज है। इसके कारण वे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर पा रहे हैं और उनमें कोरोना का संक्रमण बढता जा रहा है।

अब यदि समय पर चुनाव आयोजित किए जाते हैं, तो चुनाव लड़ने और लड़ाने वाले घरों से निकलेंगे ही। सबसे पहले तो टिकट पाने के लिए वे लामबंदी करेंगे। नामांकन के समय उनकी सक्रियता बढ़ेगी और वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करेंगे। उन सबमें वे एक दूसरे के साथ सोशल डिस्टेंसिंग के नियम को भूल जाएंगे। जाहिर है, कोरोना का प्रकोप और तेज हो जाएगा। इतनी संख्या बढ़ेगी, जिसका हम इस समय अनुमान भी नहीं लगा सकते।

इसलिए समझदारी यह है कि वहां चुनाव तबतक के लिए टाल दिए जायं, जबतक कि लोगों का टीकाकरण न हो जाए। दुनिया के वैज्ञानिक बहुत तेज गति से टीका बनाने की ओर बढ़ रहे हैं। रूस ने तो बना ही लिया है और अगस्त महीने में वहां के लोगों को टीका दिया जाना शुरू हो जाएगा। भारत में भी दो टीके बन रहे हैं और उम्मीद है कि सितंबर-अक्टूबर महीने तक फाइनल टेस्ट के बाद वे सुरक्षित भी घोषित कर दिए जाएंगे। उसके बाद उनका उत्पादन होगा और फिर लोगों का टीकाकरण। यदि अपेक्षा के अनुरूप सबकुछ हुआ, तो अगले साल मार्च तक बिहार के लोगों का टीकाकरण किया जा सकता है और उसके बाद सुरक्षित माहौल में चुनाव भी करवाए जा सकते हैं। इसलिए केन्द्र सरकार और निर्वाचन आयोग का यह दायित्व बनता है कि बिहार के चुनाव को वे 6 महीने के लिए स्थगित कर दें। संवैधानिक रूप से ऐसा किया जाना संभव है।

- नोट  - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचार हैं)।