ओबीसी के क्रीमी लेयर को लेकर सरकार एक बड़ी घोषणा करने जा रही है। क्रीमी लेयर की आर्थिक सीमा प्रति वर्ष 8 लाख रुपये सालाना आय से बढ़ाकर 12 लाख रुपये होने जा रही है। इस तरह की वृद्धि समय समय पर होती रही है। जब ओबीसी के आरक्षण को केन्द्र सरकार ने लागू किया था, तो यह सीमा एक लाख रुपये थी। यह 1993 की बात है। उसके 27 साल हो चुके हैं और इस बीच रुपये का भारी अवमूल्यन हुआ है। इसलिए 12 लाख की सालाना आय यदि सरकार कर देती है, तो उसमें कुछ भी गलत नहीं होगा। लेकिन इसके साथ साथ एक और बदलाव करने की सरकार की योजना है और उसके कारण विवाद हो सकता है। सच तो यह है कि यह विवाद शुरू भी हो गया है।
1993 में ओबीसी के क्रीमी लेयर की जो अवधारणा तैयार की गई थी, वह दोषपूर्ण थी। उसके तहत क्रीमी लेयर तय करने के लिए आर्थिक आधार तय कर दिया गया था। जिस इन्दिरा साहनी बनाम केन्द्र सरकार के मुकदमे के फैसले के तहत क्रीमी लेयर लागू करने का फरमान था, उसी फैसले में कोर्ट ने आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण को अवैध घोषित कर दिया था। तब कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि किसी जाति के पिछड़ेपन का आधार सामाजिक और शैक्षिक ही हो सकता है और आर्थिक आधार पर आरक्षण को कोई प्रावधान संविधान में नहीं है। लेकिन क्रीमी लेयर तय करते समय इसे निर्धारण करने वाली प्रसाद समिति ने एक आर्थिक आधार भी तय कर दिया। यह सुप्रीम कोर्ट के ही आर्थिक आधार पर आरक्षण को निरस्त करने के फैसले से मेल नहीं खा रहा था।
क्रीमी लेयर का निर्धारण पूरी तरह से आर्थिक आधार पर किया भी नहीं गया था, यह समाज के उन लोगों पर लागू होता था, जिसके माता-पिता किसी संवैधानिक पद पर नहीं हों, सरकार में 40 साल के पहले प्रथम श्रेणी के अधिकारी नहीं रहे हों और माता- पिता दोनों एक साथ द्वितीय श्रेणी के अधिकारी नहीं रहे हों। लेकिन इसमें समस्या यह आई कि अनेक सरकारी अधिकारी और कर्मचारी, जो क्रीमी लेयर में नहीं आते थे, उनकी वार्षिक आय एक लाख रुपये से ज्यादा थी। अतः उनपर भी आर्थिक आधार लागू होने से वे नॉन-क्रीमी लेयर से बाहर हो जाते थे, जबकि क्रीमी लेयर के प्रावधान में उन्हे क्रीमी लेयर से बाहर ही माना गया था। इसलिए सरकार ने बताया कि उनकी सालाना आय तय करते समय उन्हें सरकार से मिलने वाली आय की गिनती नहीं होगी। यानी यदि कोई द्वितीय श्रेणी का सरकारी अधिकारी 5 लाख रुपये सालाना पा रहा हो, तो वह क्रीमी लेयर में नहीं गिना जाएगा और उसके बच्चों को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिलेग। दूसरी तरफ यदि कोई निजी किसी निजी संस्थान में नौकरी करता है या चाय की दुकान भी चलाता है और उसकी वार्षिक आय 1 लाख रुपये हो तो उसे क्रीमी लेयर मानकर आरक्षण की सुविधा से वंचित कर दिया जाएगा।
अभी तक यही हो रहा है। आय क्रीमी लेयर की आर्थिक सीमा 8 लाख रुपये है और यदि कोई टैक्सी चलाने वाला व्यक्ति 8 लाख से ज्यादा की सालाना आय प्राप्त करता हो, तो वह ओबीसी के क्रीमी लेयर का हिस्सा बन जाएगा, जबकि उसी का भाई, जो सरकारमें 40 साल की उम्र के बाद प्रथम श्रेणी का अधिकारी बन गया हो और 20 लाख रुपये सालाना वेतन पा रहा हो, तो वह क्रीमी लेयर में नहीं है। उसकी पत्नी यदि सरकार में तृतीय श्रेणी की कर्मचारी हो और उसे भी 15 लाख रुपये सालाना आया हो रही हो, तो पति पत्नी को मिलाकर 35 लाख रुपये सालाना आय के बावजूद वह क्रीमी लेयर में नहीं आएगा, जबकि टैक्सी चलाकर 8 लाख रुपये प्रति साल कमाने वाला उसका भाई क्रीमी लेयर माना जाएगा।
1993 में जब इसे लागू किया गया था, तो इसे कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए थी, क्योंकि यह क्रीमी लेयर में आर्थिक आधार को डालने वाला था और आर्थिक आधार डालने के बावजूद सरकारी सेवा में लगे लोगों और सरकारी सेवा में नहीं लगे लोगों के बीच भेद करता था। लेकिन कोई कोर्ट नहीं गया, क्योंकि पिछड़े तो आखिर पिछड़े ही होते हैं और कोर्ट जाने के लिए भी एक प्रकार का अगड़ापन चाहिए। बहरहाल वह गलत फॉर्मूला अभी भी चल रहा है, जिसमें सरकारी सेवक 35 लाख की सालाना आय के बावजूद क्रीमी लेयर नहीं माने जाते और निजी क्षेत्र में काम करने वाले या स्वरोजगार करने वाले 8 लाख सालाना कमाने के बावजूद क्रीमी लेयर कहे जाते हैं।
अब सरकार इस फॉर्मूले को दुरुस्त करना चाहती है, लेकिन उसने जो नया फाॅर्मूला पेश किया है, क्या वह उचित है? वह अब सरकारी सेवकों की सालाना आय को भी क्रीमी लेयर तय करते समय गणना करने के पक्ष में हैं। इससे होगा यह कि यदि कोई चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी भी अपनी सेवा के अंतिम वर्ष में हो और उसकी आया 12 लाख रुपये सालाना हो, तो वह क्रीमी लेयर में आ जाएगा और उसकी संतान ओबीसी आरक्षण पाने से वंचित रह जाएगी। क्या कोई चपरासी किसी समाज के क्रीमी लेयर का हिस्सा हो सकता है? दरअसल फाॅर्मूला ठीक करने के लिए सरकार गलत तरीके से सोंच रही है। उसे पहले यह निर्णय करना चाहिए कि क्रीमी लेयर होता क्या है। किसी समाज के क्रीम से क्या मतलब होता है और उस क्रीम को ही उससे अलग करना चाहिए। सरकारी सेवकों से संबंधित वे प्रावधान गलत नहीं हैं। गलत है तो क्रीमी लेयर का निर्धारण करने के लिए आर्थिक आधार का प्रावधान। और अगर आर्थिक आधार है भी तो उस आधार को रखते समय इसका ख्याल रखा जाय कि द्वितीय श्रेणी का कर्मचारी अपनी सेवा के अंतिम साल में सालाना आय पाता हो, कम से कम उतना तो क्रीमी लेयर की आर्थिक सीमा होनी ही चाहिए। यदि यह आय 25 लाख रुपये सालाना है, तो क्रीमी लेयर की आर्थिक सीमा गैर सरकारी लोगों के लिए भी आय 25 लाख होना चाहिए अथवा क्रीमी लेयर के अन्य गैर आर्थिक मानदंड तय करना चाहिए। अन्यथा सरकार इसे तय करने के लिए पता लगाए कि ओबीसी के लोग खुद क्या चाहते हैं।
नोट - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचार हैं)।