सुशांत राजपूत की मौत, क्या प्रतिभाओं की कब्रगाह बनी हुई है बॉलीवुड? - वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

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सुशांत राजपूत की मौत,  क्या प्रतिभाओं की कब्रगाह बनी हुई है बॉलीवुड? - वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से देश उद्वेलित है। 34 वर्ष के सुशांत को एक सफल कलाकार माना जा रहा है, जिन्होंने 10 साल के संघर्ष से अपना मुकाम हासिल कर लिया था। धोनी की भूमिका करके उन्होंने बहुत सराहना पाई थी और छिछोरे फिल्म में भी अपने अभिनय की धाक जमाई थी। उनके पास पैसा था, शोहरत थी और भी बहुत चीजें थीं, जो एक सफल व्यक्ति के पास होता है। इन सबके बावजूद उन्होंने आत्महत्या कर ली। यह आत्महत्या भी उन्होंन एकाएक आवेश में आकर नहीं की, बल्कि 6 महीने के मानसिक अवसाद के बाद यह किया। उनके मानसिक अवसाद का इलाज भी चल रहा था, लेकिन उनके नजदीकी लोगों का कहना है कि उन्होंने आत्महत्या के कुछ दिन पहले से ही दवाइयां लेनी बंद कर दी थी। बॉलिवुड के कुछ लोग कह रहे हैं कि वे मानसिक रूप से कमजोर थे? लेकिन क्या वास्तव में मानसिक रूप से कमजोर थे वे? यदि उनकी अतीत खंगाला जाय, तो वे बचपन से ही एक मेधावी छात्र थे और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए प्रवेश परीक्षा में वे टॉप 10 में शामिल थे और भारत के दर्जन भर सबसे बेहतर इंजीनियरिंग शिक्षा संस्थान दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, जिसे अब दिल्ली टेक्नालॉजी यूनिवर्सिटी कहा जाता है, में नामांकन कराया था।

जो मानसिक रूप से कमजोर होता है, वह अभिनय और बॉलिवुड की प्रतिस्पर्धा में शुरू में ही बाहर हो जाता है। वहां रहकर संघर्ष करना और संघर्ष करके अपने बूते अपनी जगह बना लेना किसी कमजोर दिमाग के व्यक्ति का वश नहीं है। उन्हें पवित्र रिश्ता नाम सीरियल में काम करने का अवसर मिला था और उस सीरियल में वे मुख्य भूमिका में थे। वह निम्न मध्यवर्ग के एक परिवार पर केन्द्रित एक धारावाहिक था, जो उस समय चकाचैंध करने वाले पारिवारिक धारावाहिकों से अलग था। फिर भी पवित्र रिश्ता एक सफल पारिवारिक धारावाहिक साबित हुआ और उसकी सफलता में सुशांत सिंह राजपूत की भी बड़ी भूमिका थी। राजपूत और पवित्र रिश्ता साथ साथ हिट हुए और उसी बीच उन्हें फिल्म में काम करने का ऑफर भी मिला। उन्होंने फिल्मों में काम किया और अपनी प्रतिभा से अपने लिए एक बड़ा मुकाम हासिल कर लिया। यह काम मानसिक रूप से कमजोर कोई व्यक्ति नहीं कर सकता। जाहिर है, वे मानसिक रूप से कमजोर नहीं थे।

इसके बावजूद यह तो तथ्य है कि उन्होंने आत्महत्या की और यह भी तथ्य है कि वे मानसिक अवसाद से पीड़ित थे। आखिर ऐसी स्थिति आई क्यों? वह भी सफलता के ऊंचे पायदान पर चढ़ने के बाद। तो इसका कारण यह है कि सफलता की ऊंची सीढ़ी चढ़ने के बाद वहां बने रहना भी एक बड़ी चुनौती होती है। लोग सफल होने के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे लोग होते हैं कि सफल होने के बाद भी उनका संघर्ष समाप्त नहीं होता, बल्कि जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, उस मुकाम पर बने रहने के लिए भी उन्हें भारी संघर्ष करना पड़ता है। सभी क्षेत्रों में ऐसा नहीं होता होगा, लेकिन बॉलीवुड ऐसा क्षेत्र है, जहां सफलता संघर्ष की समाप्ति की गारंटी नहीं और यदि आप वहां के किसी जमे जमाए परिवार से नहीं हैं और आपका कोई गॉडफादर नहीं है, तो अपनी जगह पर टिक पाना आसान नहीं है। कोई फिल्म को सफल कर आप मशहूर हो सकते हैं, लेकिन वही ख्याति आपके पतन का कारण बनने लगती है, क्योंकि आपकी टांग खींचने के लिए दर्जनों लोग आ जाते हैं।

बॉलीवुड दुनिया में रिकॉर्ड फिल्में बनाने के लिए मशहूर है। हिन्दी फिल्मों ने न केवल भारत के हिन्दी भाषी राज्यों में, बल्कि दुनिया भर में अपना डंका पीट रखा है, लेकिन बॉलीवुड की दुनिया में प्रतिभा की कदर नहीं। यहां माफिया राज चलता है। परिवारो का राज चलता है। यदि आप ऐसे लोग हैं, जो गर्व से कहते हैं कि मैं तो पांचवीं पीढ़ी का कलाकार हूं। मेरे दादा के दादा भी इसमें काम कर चुके हैं और ऐसे तो आपको दर्जनों मिल जाएंगे, जिन्हें बालिवुड में प्रवेश करने के लिए कोई संघर्ष ही नहीं करना पड़ा अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण फ्लॉप पर फ्लॉप फिल्मों के बावजूद उन्हें फिल्में मिलती रहीं और ऐसे लोग भी हैं, जो सफल होकर गुमनामी की दुनिया में खो गये। सुशांत सिंह राजपूत के साथ भी इसी तरह का खतरा मौजूद था।

वे फिल्मी दुनिया मे बिल्कुल अपनी प्रतिभा के बूते घुसे थे और सफल भी हुए थे, लेकिन उनकी सफलता पहले से कुछ सफल लोगो को रास नहीं आ रही थी। आज करीब दर्जन भर ऐसे सफल कलाकार हैं, जो 50 की उम्र पार कर चुके हैं और जिन्हें नये अभिनेताओं से खतरा महसूस होता है। वे अपनी जगह बचाए रखने के लिए भी नये कलाकारों से असहज हो जाते हैं और नये कलाकार का कोई मां बाप न हो, तो फिर गिरोहबंदी करके उसे बाजार से निकालने की कोशिशों में लग जाते हैं। सुशांत के साथ भी ऐसा होने लगा था। उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा था। उन्हें अपमानिक किया जाने लगा था। अपनी सफलता के कारण वे बॉलीवुड में अछूत बनने लगे थे। उन्हें बनाया जा रहा था और उद्योग के माफिया तत्व उनके खिलाफ साजिशें करने लगे थे। कहा जा रहा है कि उन्हें फिल्मों से बाहर निकाला जा रहा था। जिन निर्माताओं ने उन्हें फिल्में दी थीं, वे भी उनसे फिल्में छीनने लगे थे, क्योंकि उद्योग में रहना है तो माफिया से पंगा नहीं लिया जा सकता। पानी में रहकर मगर से कोई बैर कैसे ले सकता है। जाहिर है, सफल होने के बाद माफिया तत्वों के कारण गुमनामी को प्राप्त करने का डर सुशांत सिंह के सिर पर मंडरा रहा था और उनके मानसिक अवसाद का कारण भी यही था।

सुशांत सिंह अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जिन्हें बॉलिवुड माफिया का शिकार होना पड़ा। उनके जैसे असंख्य लोग हैं, जो पहले भी गुमनाम थे और बाद में भी गुमनाम रहे। पर सुशांत सिंह ने नाम कमा लिया था और गुमनामी के खतरे ने उनकी जान ले ली, इसलिए हम उन्हें जानते हैं। बॉलिवुड सुशांत जैसे प्रतिभावान अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की कब्रगाह बनी हुई है।

नोट - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचार हैं)।