राजेश कुमार. टाइम्स खबर timeskhabar.com
आर्थिक मंदी की मार तेज होने लगी है। 3 मई को विश्व साइकल दिवस मनाया जाता है और इसी दिन उत्तर प्रदेश के साहिबाबाद स्थित साइकल बनाने वाली देश की प्रतिष्ठित कंपनी एटलस ने अपनी फैक्ट्री अनिश्चित काल के लिये बंद कर दी। एक हजार से अधिक लोग एक झटके में बेरोजगार हो गये। इसपर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलश यादव और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा कि आर्थिक मंदी की वजह से उप्र की प्रसिद्ध एटलस साइकिल कंपनी में ‘उत्पादन बंदी’ की ख़बर बेहद चिंताजनक है। इससे हजारों मज़दूरों के सामने जीविका का संकट खड़ा हो गया है। बेरोज़गारी के इस दौर में ये गरीब अब कहाँ जाएंगे? भाजपा की गलत नीतियों की वजह से अब एक और ‘बंदी’ शुरू। कांग्रेस लीडर प्रियंका गांधी ने भी सरकार को घेरा और कहा कि, “कल विश्व साइकिल दिवस के मौके पर साइकिल कंपनी एटलस की गाजियाबाद फैक्ट्री बंद हो गई। एक हजार से ज्यादा लोग एक झटके में बेरोजगार हो गए। सरकार के प्रचार में तो सुन लिया कि इतने का पैकेज, इतने MoU, इतने रोजगार. लेकिन असल में तो रोजगार खत्म हो रहे हैं, फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं।’लोगों की नौकरियाँ बचाने के लिए सरकार को अपनी नीतियाँ और योजना स्पष्ट करनी पड़ेगी। "
फैक्ट्री बंद होने का नोटिस :
नवभारत टाइम्स के अनुसार, 3 मई को जब श्रमिक काम करने के लिये साइकल फैक्ट्री पहुंचे तो बाहर नोटिस में लिखा था कि कंपनी का कामकाज चलाने के लिये रूपये नहीं हैं। न ही कोई निवेशक है। कंपनी दो साल से घाटे में हैं। दैनिक खर्च भी नहीं निकल पा रहा। इसलिये कर्मचारियों को ले-ऑफ पर भेजा रहा है। वे फैक्ट्री के बाहर इलेक्टॉनिक हाजिरी लगाएंगे प्रतिदिन। खबर के पढते हीं बड़ी संख्या में श्रमिकों की हालत खराब हो गई। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि क्या करें और क्या न करें? परिवार कैसे चलेगा? श्रमिकों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से मार्च और अप्रैल में आधा वेतन दिया गया था। मई में वेतन ही नहीं मिला। अब श्रमिकों की सारी उम्मीदें टूट गई हैं। जीविका का सवाल उत्पन्न हो गया है।
एटलस की स्थापना हुई थी 1951 में :
देश की प्रतिष्ठित कंपनी बन चुकी एटलस की स्थापना 1951 में हुई थी। इसकी स्थापना जानकी दास कपूर ने की थी वे 1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान के कराची शहर से यहां आये थे। एटल की कई प्लांट थे जो पहले ही बंद हो चुकी थी। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार साहिबाबाद स्थित साइकल प्लांट अंतिम था। यह कितनी बड़ी फैक्ट्री थी इसी से समझा जा सकता है कि यहां हर साल लगभग 40 लाख साइकल बन कर तैयार होता था।
सवाल उठता है कि जब 2 जून तक सबकुछ ठीकठाक चल रहा था तब साइकल फैक्ट्री में रातोरात ऐसा अचानक क्या हो गया कि फैक्ट्री को बंद करने का निर्णय लेना पड़ा। यह सही है कि कंपनी चलाने के लिये कंपनी मालिक पैसा लगाता है और बैंकों से ऋण लेता है लेकिन कंपनी बिना श्रम के तो चल नहीं सकता। इसलिये श्रमिकों को विश्वास में लेना चाहिये था। एक हजार से अधिक श्रमिक यहां काम करते थे अब इनके परिवार का क्या होगा?