कोराना संकट के लिए कौन जिम्मेदार? विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समय रहते दी थी चेतावनी : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

कोराना संकट के लिए कौन जिम्मेदार? विश्व स्वास्थ्य संगठन ने समय रहते दी थी चेतावनी : वरिष्ठ पत्रकार उपेन्द्र प्रसाद

कोरोना संकट से पूरी दुनिया कराह रही है। 195 से ज्यादा देशों में यह महामारी फैल चुकी है और इसका बहुत निकट भविष्य में कोई निदान भी नहीं दिखाई दे रहा है। इन पंक्तियों को लिखे जाने तक इस बीमारी से दुनिया भर में 24 लाख से ज्यादा लोग इसकी जद में आ चुके हैं और उनमें से 1 लाख 65 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं। चिंता की बात यह भी है कि इसकी रफ्तार कम होने की बजाय लगातार तेज होती जा रही है।

और इसका असर सिर्फ लोगों को संक्रमित करने या उनकी जान लेने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके कारण सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी संक्रमित हो चुकी हैं। लोगों को एक दूसरे से अलग रखकर इसके फैलाव को रोकने के लिए जो तरीके अपनाए जा रहे हैं, उनके कारण दुनिया की आधा से ज्यादा आर्थिक गतिविधियां ठप हो चुकी हैं। जाहिर है, इसके घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। यदि ये गतिविधियां ज्यादा समय तक ठप रहीं, तो यकीन मानिए कि सबकुछ तहस नहस हो जाएगा। उसके बाद जो स्थिति पैदा होगी, वह कोरोना वायरस से भी ज्यादा भयंकर होगी और अब तक के ज्ञात इतिहास में मानव सभ्यता के सामने की सबसे बड़ी चुनौती होगी।

सच तो यह है कि अर्थव्यवस्थाओं के घ्वस्त होने के क्या क्या नतीजे होंगे, इसका हम अनुमान तक नहीं लगा सकते। सवाल उठता है कि क्या इस भयानक अभूतपूर्व त्रासदी क्या अपरिहार्य थी या इसे रोका जा सकता था? इसका जवाब यही है कि इसे रोका जा सकता था। पिछले साल दिसंबर के अंतिम महीने में चीन में इस वायरस का प्रकोप दिखाई पड़ा। शुरू शुरू में तो कुछ ज्यादा समझ नहीं आ रहा था, लेकिन एक पखबारे के बाद इसके खतरे साफ दिखाई पड़ने लगे। 30 जनवरी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य आपात काल घोषित कर दिया।

मेडिकल इमरजेंसी की 30 जनवरी को हुई घोषणा को गंभीरता से नहीं लिया गया। एक तरह से हम कह सकते हैं कि देशों की सरकारों ने एक तरह से विश्व स्वास्थ्य संगठन की उस चेतावनी को अनदेखा ही कर दिया। उन्हें लगा कि यह चीन की समस्या और यदि उनके देश में यह बीमारी आ भी गई, तो इस पर नियंत्रण कर लेंगे। यदि फरवरी महीने से ही इसके प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने शुरू होते, तो स्थिति नियंत्रण में आ सकती थी, लेकिन सबकुछ पहले की तरह ही चलता रहा और यह बीमारी कितनी खतरनाक हो सकती है, उसके बारे में सही तरीके से देशों की सरकारों ने सोचा तक नहीं।

आज इस बीमारी से सबसे ज्यादा ग्रसित वे देश हैं, जिन्हें हम विकसित देश कहते हैं। वहां की स्वास्थ्य व्यवस्था दुनिया में सबसे बेहतर है, लेकिन संक्रमित होने की संख्या और मृतकों को लेकर ये देश सबसे आगे हैं। सबसे ज्यादा ग्रसित यूरोप हैं, जहां मृतकों की संख्या सवा लाख तक पहुंचने वाली है और उसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका है, जहां संक्रमितों की संख्या करीब 8 लाख पहुंचने वाली है। यदि अमेरिका और यूरोप को मिला दिया जाए, तो संक्रमित होने और मरने वाले लोगों में यहां के देशों का योगदान 90 फीसदी है।

और सच यह भी है कि अमेरिका और यूरोप के ये देश विश्व अर्थव्यवस्था के चालक हैं। वहां की छोटी छोटी घटना भी दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। हमने देखा है कि 2008 में कैसे अमेरिका के हाउसिंग स्कैम ने कैसे दुनिया का संकट मे डाल दिया था और इस बार तो अमेरिका का संकट पहले से बहुत गुना ज्यादा है। यूरोप की हालत तो उससे भी खराब है। और सबसे खराब बात यह है कि इन देशों में कोरोना पीड़ितों की बढ़ती संख्या की रफ्तार पर रोक नहीं लग पा रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की चेतावनी के बाद सबसे पहले तो विदेश यात्राओं पर रोक लगाई जानी चाहिए थी। खासकर उन देशों को आइजोलेशन में डाला जाना चाहिए था, जहां चीन से निकलकर कोरोना दूसरे देशों में जा रहा था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उसके बाद सभी देश की सरकारों को अपने अपने देशों में सभी प्रकार के जमावड़ों को प्रतिबंधित या नियंत्रित किया जाना चाहिए था। अब बात सामने आ रही है। कि यूरोप और अमेरिकी देशों में रविवार को चर्चों में लगने वाले जमावड़े जारी रहे।  

इधर मुस्लिम देशों का भी यही हाल था। वहां भी शुक्रवार को होने वाले सामूहिक नमाज पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया। यदि प्रतिबंध लगाने की कोशिश हुई, तो उसका धार्मिक नेताओं द्वारा विरोध हुआ। यदि किसी समझदार धार्मिक नेता ने सामूहिक नमाज को रोकन की कोशिश की, तो उस की जान पर बन आई। तबलीगी जमात नाम के एक संगठन बहुत से देशों में इस बीमारी को फैलाया। मलेशिया में फरवरी महीने में ही उन लोगों ने एक जलसा किया और जलसे से निकलकर तबलिगियों ने अन्य अनेक देशों में इसे फैलाया। पाकिस्तान में भी उनके कारण यह तेजी से फैला, क्योंकि कोरोनाग्रस्त अनेक विदेशी वहां जमात के जलसे में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे थे। जलसा करने की इजाजत तो उन्हें नहीं मिली, लेकिन जो संक्रमित तबलीगी दूसरे देशों से वहां आए थे, उन्होंने पाकिस्तान के लोगों को संक्रमित कर डाला।

वही भारत में भी तबलीगियों ने किया। यहां तो उन्होंने जलसा भी कर लिया। भारत की सरकार ने विदेशियों को यदि आने से रोक दिया होता, तो तबलीगी भारत का संक्रमित नहीं कर पाते। तबलीगियों के अलावा हिन्दू मंदिरों ने भी इसमें योगदान किया, क्योकि समय रहते उन्हें बंद नहीं किया गया था। महाराष्ट्र इसका दर्द भोग रहा है। पंजाब में एक रागी विदेश जाकर अपने साथ कोरोना ले आए। खुद भी मरे और अन्य लोगों को भी संक्रमित किया। यदि सरकार ने भारतीयों की विदेश यात्रा और विदेशियों की भारत यात्रा पर फरवरी महीने में रोक लगा दी होती, तो यहां यह संकट इतना नहीं गहराता। लेकिन अन्य देशों की सरकारों की तरह भारत की सरकार ने भी संकट को छोटा समझा और उसका दंड हम भुगत रहे हैं।

नोट - (लेखक उपेन्द्र प्रसाद, नवभारत टाइम्स के पूर्व रेजिडेंट संपादक, राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक विशेषज्ञ। लेखक के निजी विचार हैं)।