- राजेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का शुरू से मानना है रहा है कि उनके पार्टी अध्यक्ष और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव (Lalu Yadav) को एक साजिश के तहत पहले बदनाम किया गया और षडयंत्र कर जेल भिजवाया गया। क्योंकि उन्होंने सामाजिक न्याय की ऐसी इमारत और विरासत खड़ी की है कि बीजेपी जैसी पार्टियों को भी बिहार में वंचितों को प्रतिनिधित्व देना पड़ा। सामाजिक न्याय से जुड़े कोई भी लीडर हों बिहार में वे लालू जी के संघंर्ष की वजह से अपने अस्तिव को बना पाये। उन्हें जेल में एक तरह से राजनैतिक कैदी बना कर रखा गया है।
इस बीच भारत समेत पूरी दुनिया कोरोना के चपेट में है। संक्रमण के खतरे बढते जा रहे हैं। इसे देखते हुए आरजेडी अध्यक्ष को जेल पेरौल पर छोड़ने की मांग तेज हो गई है। सोशल मीडिया पर कई प्रकार के संदेश दिये जा रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लालू यादव को रिहा करने का जोरदार समर्थन किया है। इसी प्रकार लालू यादव को रिहा करने की मांग को लेकर बड़ी संख्या में उनके समर्थक ट्वीट कर रिहाई की मांग कर रहे हैं।
रेलवे को ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचाने और घाटे से उबार कर हजारों करोड़ के लाभ तक पहुंचाने वाले 71 वर्षीय लालू यादव जेल में बंद हैं। पिछड़े-दलित-आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदाय की बहुत बड़ी आबादी लालू यादव चारा प्रकरण में कभी दोषी नहीं माना। उनका मानना है कि उन्होंने हीं वर्षों से जारी चारा प्रकरण को सामने लाया और उन्हें हीं दोषी करार देकर जेल पहुंचा दिया गया। आरजेडी समर्थकों का कहना है कि उन्हें राजनीतिक रूप से भी खत्म करने की कोशिश की गई लेकिन वह संभव नहीं हो सका। इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल का मानना है कि बिहार में दलितों और पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों का एक बड़ा हिस्सा जब तक लालू प्रसाद के साथ हैं, तब तक लालू प्रसाद की राजनीति खत्म कैसे हो सकती है? इसलिए लालू यादव बने हुए हैं।
तमाम बीमारियों और जेल में रहने के बावजूद उनके विरोधी दलों में हमेशा राजनीतिक डर बना रहता है। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने ट्वीट किया कि लालू यादव के सत्ता में आने से वंचित जातियों में पहली बार ये एहसास आया कि उनके बीच का या उनके प्रति हमदर्दी रखने वाला कोई ऊपर बैठा है। लालू प्रसाद यादव को जेल में रखना एक साजिश है। उन्हें परेशान करके बीजेपी बाकी दलों के नेताओं को संदेश दे रही है कि विरोधियों का हम ये हाल कर सकते हैं. इस तरह बीजेपी ने कई विपक्षी नेताओं का मुंह बंद कर रखा है।
भारत का नेल्सन मंडेला हैं लालू यादव :
दरअसल दक्षिण अफ्रीका में जारी रंगभेद नीति के खिलाफ नेल्सन मंडेला ने आवाज बुलंद की। उन्हें कैद कर लिया गया। ठीक उसी प्रकार कमजोर वर्गो की लड़ाई लालू यादव ने लड़ी और नतीजा वे जेल में हैं। उन्हें कैद करने के लिये कोई न कोई बहाना चाहिये था इसलिये उनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये और दोषी करार देकर जेल भेज दिया गया। आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव ने कभी भी व्यक्तिगत तौर न्यायलय का जो भी फैसला हो उसपर टिप्पणी नहीं की। अदालत ने जो भी तिथि दिया मौजूद रहने के लिये, वे मौजूद रहे। अब कोरोना के दौर में उनकी रिहाई मांग जोर पकड़ने लगी है। यह भी कहा जा रहा है कि यदि उन्हें कुछ हो गया तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव गरीबों के मसीहा के रूप में जाने जाते हैं। आइये जानते हैं कि आखिर आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव को भारत का नेल्सन मंडेला क्यों कहते हैं ? दरअसल तत्कालीन जनता दल लीडर लालू यादव जब मुख्यमंत्री बने उस समय उन्हें ऐसा लगा कि जबतक वंचित समाज मानसिक रूप से आजाद नहीं होगा तबतक वे सबसे नीचले पायदान पर ही रहेंगे। और उनका शोषण जारी रहेगा। उनकी मानसिक गुलामी तोड़नी जरूरी है। इसके लिये उन्होंने जो कदम उठाये वे ऐतिहासिक हैं। ये और किसी अन्य लीडर के बस की बात भी नहीं।
- बतौर मुख्यमंत्री वे सरकारी कामकाज करने के साथ साथ आये दिन पिछड़ो व आदिवासी-दलित समुदाय के बस्तियों में जाकर उनके साथ समय बिताते और उनके हाल समाचार लेते। इसके तीन फायदे हुए पहला, सदियों से लाचार पीड़ित लोगों में जागरुकता आने लगी। वे अन्याय व शोषण के खिलाफ अपने को तैयार करने लगे। दूसरा, जो सामंत प्रवृति के लोग गांव वालों का शोषण करते थे वे सहम गये। और तीसरा लालू यादव के जनाधार में तेजी से बढोतरी होने लगी।
- डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को स्पष्ट और कड़ा संदेश दिया गया कि गरीबों की रक्षा करें सामंतो से। उन्होंने गांव गांव जाकर कहा कि सभी पिछड़े-दलित-आदिवासी के बेटे भी दरोगा बनेगें। कोई माई का लाल गरीबों के बेटे को दरोगा बनने से रोक नहीं सकता। लालू यादव का यह संदेश सीधे घरों में गूंज उठा। और लालू यादव ने यह कर दिखाया। पनवरिया, कहार, भार, कोईरी और अहीर व अन्य गरीब के बेटे भी दरोगा बनने लगे। उन्हें जैसे ही मौका दिया गया वे हर परीक्षा में सफल होते गये। पहले अपवाद छोड़कर यह सबकुछ उनके लिये सपना था।
- सांप्रदायिक दंगे और गांवों में गरीबों के नरंसहार पर रोक लग गई। नरसंहार करने वाले सहम गये क्योंकि डीएम, कलेक्टर व दरोगा पिछड़े-दलित-आदिवासी वर्ग से भी होने लगे। वे तुरंत केस दर्ज करते और कार्रवाई करते। कई स्थानों पर गरीबों ने भी जवाब देना शुरू कर दिया था।
- गरीबों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी थे जिन्होंने आजादी के बाद कभी भी वोट नहीं दिया था। उनके नाम होते थे वोटर लिस्ट में लेकिन वे कभी वोट नहीं डाल पाये। उनके वोट ताकतवर लोग ही डालते थे। लेकिन लालू यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद स्थितियां बदल गई। अब वे लोग बिना डरे बूथ पर जाते और वोट करने लगे। और लालू यादव चुनाव जीतते गये। लालू विरोधी आरोप लगाने लगे लालू यादव बूथ लूट के दम पर चुनाव जीत रहे हैं। लेकिन यह भ्रम भी जल्द हीं टूट गया। साल 1995 के चुनाव में मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने ऐतिहासिक चुनाव कराये। चुनाव की अधिसूचना जारी हुई 8 दिसंबर 1994 को। चार चरण में चुनाव कराये गये। अंतिम चरण का चुनाव पूरा हुआ 28 मार्च 1995 को। लगभग चार महीने चले इस चुनाव को कराने में अर्धसैनिक बलों के 650 कंपनियां लगाई गई। बड़ी संख्या में लालू समर्थक हिरासत में लिये गये, मामूली शिकायत पर भी चुनावों को स्थगित कर दिया जाता था। मीडिया में कहा जाने लगा कि जनता दल अब हार जायेगी। लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तब उनकी पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली पूर्ण बहुमत के साथ। 324 विधान सभा सीटों में से जनता दल को 164 सीटें मिली। सहयोगी पार्टियों को अलग। दरअसल चुनाव आयोग ने जितनी कड़ाई की उतना ही लाभ मिला लालू यादव को। दरअसल चुनाव आयोग ने डर का माहौल खत्म कर सभी से वोट करने की अपील की। बड़ी संख्या में वंचित तबका वोट देने निकले। और लालू यादव की जीत हो गई। ये सब समाज में हो रहे बदलाव के लोकतांत्रिक संकेत थे।
आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव हीं वे लीडर हैं जिन्होंने मंडल आयोग को लागू करवाने में बेहद अहम भूमिका निभाई। जब प्रधानमंत्री वी पी सिंह और उपप्रधानमंत्री देवीलाल के बीच पत्रकारों ने विवाद पैदा किया तो केंद्र में जनता दल की सरकार के गिरने के खतरे बढ गये। वी पी सिंह कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे। चौधरी देवी लाल उस समय जाट और पिछड़ों के सबसे बड़े नेता थे। देवीलाल से छेडछाड़ का अर्थ था जनता दल से जाट और पिछड़ों का अलग हो जाना। ऐसे में तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव पूरी कोशिश की कि दोनो नेताओं के बीच कोई विवाद न हो। और अचानक दिल्ली पहुंचे और प्रधानमंत्री वी पी सिंह से मिलकर मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने की सिफारिश की। फिर जाकर मंडल आयोग लागू करने की योजना बनी।
बहरहाल, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव के खराब सेहत और कोरोना की वजह से रिहा करने की मांग की है।
Rajesh kumar, globalkhabar.com