ख्याल रखें अनमोल आंखों का।

ख्याल रखें अनमोल आंखों का।

आंखो की रोशनी का कम होना एक आम समस्या है। उम्र के साथ साथ आंखो की रोशनी में कमी आती है लेकिन आप देखेंगे कि कई लोगों को कम उम्र में ही चश्में लग जाते हैं। यदि इसका इलाज सही समय पर हो तो इस समस्या को बढने से रोका जा सकता है। लेकिन इस बारे में सही जानकारी और सही समय पर डॉक्टर से संपंर्क करना जरूरी है।

आमतौर पर लोग नजर कम होने साथ समय पर डॉक्टर से सलाह नहीं लेते या चश्मे की जरूरत होने के बावजूद चश्मा नहीं लगवाते हैं। इससे छोटी समस्याएं भी बढने लगती है। मेक्यूला रेटिना सुस्त होने लगता है।

आंखो की रोशनी से जुडी दोष कितने प्रकार के होते हैं और उनका इलाज क्या है? यह जानने से पहले यह समझ लेना जरूरी होगा कि मेक्यूला क्या है?

मेक्यूला – यह आंखों के पर्दे पर पाया जाता है। और रेटिना का ही एक हिस्सा है। यदि सही समय पर चश्मा नहीं लगाते हैं तो आंखों के पर्दे पर पाया जाने वाला मेक्यूला सुस्त हो जाता है। इसे एम्बलायोपिया यानी सुस्त आंख की बीमारी भी कहते हैं। इस पर लगातार लाइट पडते रहने से यह एक्टिव रहता है। लेकिन आंख की रोशनी में कोई समस्या है, तो लाइट मेक्यूला के आगे या पीछे पड़ती है। इससे मेक्यूला सुस्त हो जाता है। आंखो पर भार पड़ने लगता है। ऐसा होने पर तुंरत आंखो के डॉक्टर से संपंर्क कर उपचार करना चाहिये।

डॉक्टर के सलाह से यदि आप इलाज करते हैं और समय पर चश्मा या कांटे्ट लेंस पहनना शुरू कर देते हैं तो ऐसे में आखों को काफी लाभ होता है। लाइट सीधे लगातार मेक्यूला पर पड़ती है। ऐसे में एम्बलायोपिया (मेक्यूला के सुस्त होने) से बचा जा सकेगा।

तीन प्रकार के होते हैं दृष्टि दोष –
आंखो की समस्याएं कई प्रकार की होती हैं। खासकर नजर को लेकर निम्नलिखित प्रकार के दोष हैं - 1. निकट दृष्टि दोष, 2. दूर दृष्टि दोष और 3. निकट और दूर दृष्टि दोष –

1. निकट दृष्टि दोष – इसे मेडिकल की भाषा में मायोपिया कहते हैं। इसमें किसी भी चीज का प्रतिबिंब आंख के पर्दे के आगे बन जाता है। ऐसे में होता यह है कि जो चीजें दूर है वह सही तरीके से दिखती नहीं है। इसके लिये माइनस नंबर (कॉनकेव) का लेंस दिया जाता है।
2. दूर दृष्टि दोष – इसे मेडिकल की भाषा मं हाइपरमेट्रोपिया कहते हैं। इसमें नजदीक की चीजें ठीक से दिखती नहीं है। वास्तव में होता यह है कि चीजों का प्रतिबिंब आंख के पर्दे के पीछे बनता है। इसे नजदीक से देखना मुश्किल होता है। इसके लिये प्लस नंबर(कॉन्वेक्स) वाले लेंस दिये जाते हैं।।
3. निकट-दूर दृष्टि दोष – इसे मेडिकल की भाषा में एस्टिग्मेटिज्म कहते हैं। इस स्थिति में लाइट की किरणें एक जगह पर फोकस न होकर अलग-अलग फोकस होती है। ऐसी स्थिति में दोनो या निकट और दूर की जगहें साफ साफ नहीं दिखती है। और इसके लिये सिलिंड्रिकल लेंस इस्तेमाल किया जाता है।
4. प्रेस्बायोपिया - उपरोक्त तीनों दृष्टि दोष के अलावा एक और दृष्टि दोष होता है जिसे प्रेस्बायोपिया कहते हैं। लेकिन इसे दृष्टि दोष नहीं कहा जा सकता। प्रेस्बायोपिया में भी पास की चीजें देखने में मुश्किल होती है। इसके लिये भी प्लस नंबर के लेंस दिये जाते हैं। आम तौर पर यह स्थिति 40 साल या इससे अधिक उम्र होने पर होती है। इसके लिये हमेशा चश्मा पहनने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन जब पास के चीज देखने हों यानी मोबाइल नंबर देखना हो या कंप्यूटर पर काम करना हो तो चश्मा पहनना होता है।

आरामदायक चश्मा – कुछ लोगो एहतियात को तौर पर चश्मा पहनते हैं, जैसे सूर्य की तेज रोशनी से बचने के लिये, बाइक चलाते समय धूल से बचने के लिये और कुछ लोग सौखिया पहनते हैं। ऐसे लोगो को चश्मा खरीदने से पहले निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखना चाहिये।

1. चश्मे का प्रेम हल्का और आरामदायक होना चाहिये। इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि चश्मा का साइज बहुत छोटा न हो, न ज्यादा ढीला हो और न टाइट हो। चश्मा का साइज इतना जरूर हो कि आपकी आंखों को पूरी तरह कवर कर सके।
2. इस बात का ध्यान जरूर रखें कि बच्चों का चश्मा उनकी आंखो से थोड़ी बड़ी हो। यह भी जरूरी है कि चश्मे को पहनते और उतराते समय विशेष ख्याल रखे कि चश्मे के फ्रेम का आकार बदल न गया हो। इस चश्मे से देखने में थोड़ा अंतर आ सकता है।
3. चश्मे का फ्रेम कई प्रकार का होता है – इसमें मेटल और प्लास्टिक दोनो का उपयोग होता है। लेकिन ध्यान रहे कि चश्मे का फ्रेम ऐसा हो जो पहनने पर आपको आराम दे। कान और नाक पर भार न पड़े।

चश्मे का लेंस – समय के साथ साथ सुविधाएं भी बढती जा रही है। लेंस कई प्रकार को होते हैं। कुछ आंखों को तेज धूम से बचाता है तो कुछ अल्ट्रावॉयलट किरणों से बचाता है। आइये एक नजर डालते हैं चश्मे के लेंस के विभिन्ना रूपों पर –

1. क्राउन ग्लास - साधारणतय: चश्मे के लिये क्राउन ग्लास का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन इन दिनों इसका इसका इस्तेमाल उतना नहीं होता है।
2. प्लास्टिक लेंस – यह लेंस की खासियत यह है कि यह हल्का होता है और आसानी से टूटते नहीं है। लेकिन प्लास्टिक लेंस में खरोंच आसानी से पड़ जाने का खतरा होता है।
3. ट्रिप्लेक्स लेंस – इसकी खासियत है कि ये लेंस हल्के होते हैं। और आसानी से टूटते नहीं।
4. रेजिन लेंस – इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस पर खरोंच साधारतय: नहीं पड़ता है। ये लेंस भी हल्के होते हैं और आसानी से टूटते नहीं हैं।
5. कोटिंग लेंस - लेंस में कई प्रकार के कोटिंग कराये जाते हैं। उनमें एंटी स्क्रेच, फोटो क्रोमैटिक और एंटी ग्लेर आदि। एंटी स्क्रेच सीधा सा अर्थ है कि लेंस को स्क्रेच से बचायेगा। उसी प्रकार फोटो-क्रोमैटिक कोटिंग अल्ट्रावॉयल्ट रे से और एंटी-ग्लेर कोटिंग आंखों को तेज रोशनी में आंखो को चका चौंध से बचाता है।
6. मोनोफोकल लेंस – इस लेंस में एक हीं प्रकार का पावर होता है। इसका इस्तेमाल किसी एक दृष्टि दोष के लिये हीं किया जा सकेगा।
7. बायफोकल लेंस – इस लेंस में दूर और नजदीक दो प्रकार के नंबर होते हैं। उपर की ओर दूर देखने के लिये और नीच की ओर नजदीक देखने के लिये।
8. ट्राइफोकल लेंस – इसमें तीन प्रकार के लेंस होते हैं। उपर की ओर दूर देखने के लिये और नीचे की ओर नजदीक देखने के लिये। इस लेंस में बीच का वह हिस्सा होता है जो औसतन एरिया देखने के लिये होता है। इस प्रकार का लेंस कंप्यूटर के लिये फायदेमंद माना जाता है।
9. मल्टिफोकल लेंस – मल्टीफोकल लेंस को प्रोग्रेसिव लेंस भी कहते हैं। इस लेंस में बहुत सारी फोकल लेंथ होती हैं। जिसका नंबर अलग अलग होता है। लेकिन इस प्रकार की लेंस को एडजस्ट करने में थोड़ा समय लगता है
10. कॉन्टैक्ट लेंस – कांटेक्ट लेंस आमतौर पर तीन प्रकार के होते हैं। हार्ड कॉन्टैक्स लेंस, सॉफ्ट कांटेक्ट लेंस और सेमी सॉफ्ट कांटेक्ट लेंस।
- हार्ड कॉन्टैक्ट लेंस हल्के और पॉलिमिथाइल मिथाइल एक्रिलेट मटीरियल के बने होते है। ये लंबे समय तक इस्तेमाल किए जा सकते है। बताया जाता है कि इस लेंस से ऑक्सिजन आरपार नहीं हो पाता है। इसका नूकसान यह होता है कि कॉर्निया तक ऑक्सिजन नहीं पहुंच पाती। ध्यान रखने वाली बात यह है कि रात में इसे उतार दें नहीं तो कॉर्निया में आक्सिजन की कमी हो सकती है। इस कारण आपको धूंधला दिखने लगेगा। इतना हीं हार्ड होने की वजह से इसे उतारने वक्त कॉर्निया में खरोंच लगने और कॉर्नियल अल्सर होने का डर रहता है। आजकल हार्ड कॉन्टैक्ट लेंस का इस्तेमाल काफी कम हो गया है।

- सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस की खासियत यह है कि ये लेंस सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से आंखों का बचाव करते हैं। यह लेंस जिस मटीरियल से बना होता है, उसमें पानी भी मिला होता है, जो ऑक्सिजन को लेंस के कॉर्निया तक पहुंचाने में मददगार होता है। सॉफ्ट होने के कारण पहली बार लेंस यूज कर रहे लोगों को इन्हें इस्तेमाल करना आसान होता है। हालांकि इसका दूसरा पहलू भी है इसके लिये थोड़ी सावधानी की जरूरत है। इसके इस्तेमाल से थोड़े समय में ही आंखों के अंदर का प्रोटीन जमा होने लगता है, जिससे ये धुंधले पड़ जाते हैं और इन्हें बदलना पड़ता है। सॉफ्ट होने के कारण इनमें क्रैक जल्दी पड़ने लगते हैं। बताया जाता है कि सॉफ्ट कॉन्टैक्स लेंस में डिस्पोजेबल लेंस पहनना बेहतर होता

- सेमी-सॉफ्ट कॉन्टैक्ट लेंस - इसे सबसे अच्छा कॉन्टैक्ट लेंस माना जाता है। क्योंकि यह कॉर्निया तक आक्सिजन पहुंचाने में मददगार साबित होता है।
यह लेंस सिलिकॉन पॉलिमर्स के बने होते हैं। इनमें हार्ड और सॉफ्ट, दोनों तरह की क्वॉलिटी पाई जाती है। बताया जाता है कि जिन लोगों का सिलिंड्रिकल नंबर (पास और दूर, दोनों हो सकते हैं) होता है, उनके लिए ये लेंस सबसे अच्छे होते हैं। सिलिंड्रिकल नंबर से फोकस रेटिना के ऊपर और एक ही जगह पर होने लगता है। इन लेंस की देखभाल करना आसान है और ये टिकाऊ भी खूब होते हैं।
बहरहाल आमतौर पर यह देखा गया है कि लोग कॉनटेक्ट लेंस का इस्तेमाल दृष्टि दोष के अलावा काला मोतिया, कॉर्नियल और फैशन के तौर पर भी करते आये हैं। इस बात का विशेष ख्याल रखे कि लेंस को साल में एक बार जरूर बदल दें इससे इन्फेक्शन का खतरा कम होता है। ऐसे सॉफ्ट लेंस का प्रचलन अधिक है। इस लिये सॉफ्ट लेंस के विभिन्न प्रकार के बारे में जानना लाभकारी होगा।।
स्पोजेबल कॉन्टैक्ट लेंस – इस लेंस को एक बार इस्तेमाल करने बाद फेक दिया जाता है। यह लेंस उनके लिये बहुत लाभकारी होता है जिन्हें एलर्जी की शिकायत हो। या आंखों में किसी प्रकार का इन्फेक्शन हो। इसके अलावा कलर्ड कॉन्टैक्ट लेंस भी होता है। इसका इस्तेमाल आमतौर पर फिल्म और टीवी दुनिया के लोग करते हैं। इसे अपनी आंखो को आकर्षित बनाने के लिये करते आये हैं। इसके अलावा कॉन्टेक्ट लेंस में बायफोकल और ग्रेडिड कॉन्टेक्ट लेंस भी आते हैं। इसका इस्तेमाल दूर और पास के नजरों के लिये किया जाता है।

कॉन्टैक्ट लैंस का नुकसान – कॉन्टेक्ट लेंस के कई फायदे हैं तो कई नुकसान भी। यदि आप सावधानी पूर्वक इस्तेमाल नहीं करते हैं तो आपको कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। पहली समस्या तो यही हो सकती है कि आंख में खुजली होने लगती है। यदि ऐसा हो तो कॉन्टेक्ट लेंस न पहने और डाक्टर की तुरंत सलाह लें। यह ध्यान रखें कि कॉन्टेक्ट लेंस को इसके लिये बने सल्यूशन से साफ करें। पानी से बिल्कुल नहीं अन्यथा पानी में मौजूद बैक्ट्रिया से आंख में इन्फेक्शन का खतरा हो सकता है। यह भी ध्यान रखे कि जिस सल्यूशन का इस्तेमाल कर चुके हैं उसका दोबारा न करें। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लेंस को पहनते वक्त सावधानी बरतें अन्यता पुतली पर खरोंच लग सकता है यदि ऐसा होता है तो आंख की रोशनी भी जा सकती है।

कॉन्टेक्ट लेंस का इस्तेमाल कब न करें – यदि आंखो में इन्फेक्शन हो, रुसी हो, आंख ड्राई हो और आंख की पूतली में दिक्कत हो तो लेंस का इस्तेमाल नहीं करना चाहिये। सलाह यह भी है कि यदि किसी का दिमाग पूरी तरह काम नहीं कर पाता है तो ऐसे लोग भी लेंस का इस्तेमाल न करें।

बहरहाल चश्मा या लेंस खरीदते वक्त इस बात का ध्यान रखे कि लेंस क्वालिटी का हो। क्योंकि आपकी आंखे अनमोल है। इसी से आप दुनियां देख रहे हैं। लेकिन आप किसी भी लेंस या दवा का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना न भूलें।