अमेरिका-ईरान : ट्रंप के बयान के बाद चेतावनी के साथ शांति की संभावनाएं बढी। तीसरे विश्व युद्ध के हालात सिर्फ बने थे 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान

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अमेरिका-ईरान : ट्रंप के बयान के बाद चेतावनी के साथ शांति की संभावनाएं बढी। तीसरे विश्व युद्ध के हालात सिर्फ बने थे 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान

ईरानी सेना के जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या और जवाब में इराक स्थित अमेरिकी ठिकानों पर ईरानी मिसाइल हमले के बाद यह कहा जाने लगा था कि क्या विश्व तीसरे युद्ध की ओर बढ रहा है? लेकिन इसकी आशंका बहुत कम थी। और ऐसा ही हुआ। ईरान और अमेरिका दोनो ही ओर से अपने सम्मान की रक्षा करते हुए शांति का पक्ष लिया। इससे युद्ध संकट के बादल छट गये हैं। लेकिन इससे पहले दोनो ही ओर से कड़े बयान जारी किये गये। 

सुलेमानी की हत्या के ईरान ने कहा कि वह इसका बदला लेगा। फिर अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि यदि ईरान ने हमला किया तो गंभीर परिणाम होंगे। हमारे पास किसी भी चीज की कमी नहीं है चाहे हथियार हो या तेल। अमेरिका के पास दुनिया की सबसे शानदार सेना है। वही ईरान ने इसकी परवाह किये बगैर इराक स्थित अमेरिकी ठिकानों पर हमला किया और दावा किया कि 80 लोग मारे गये। 

ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा कि जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का बदला लेने के लिए ईरान का मिसाइल हमला यह दर्शाता है कि हम अमेरिका से डरते नहीं हैं। ईरान ने कहा कि वे युद्ध नहीं चाहते लेकिन यह कदम हमने यूएन चार्टर के तहत अपनी आत्म रक्षा में उठाया। और यह हमरा अधिकार है। यदि अमेरिका ने हमला किया तो फिर इसका खामियाजा इजरायल और सऊदी अरब को भी चुकाना होगा। इजरायल और सऊदी अरब अमेरिकी समर्थन देश हैं। 

ईरानी हमले के बाद अमेरिका के रूख का इंतजार था। अमेरिकी राष्ट्रपति प्रेस कांफ्रेंस में आये और युद्ध करने के वजाय धमकी के साथ शांति का संदेश दे गये। उन्होंने कहा कि 

- ईरानी हमले में अमेरिका और इराके के लोंगो का कोई नुकसान नहीं हुआ है। किसी भी सैनिका का नुकसान नहीं हुआ। हम पहले से तैयार थे।

- ईरानी जनरल सुलेमानी आतंकी था। वह समर्थन करता था आतंकियों को। कई वारदात को अंजाम दिया। आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह को उसने ट्रेनिंग दी। उन्हें बहुत पहले मार दिया जाना चाहिये था। 

- वह अमेरिक अड्डो पर हमले की योजना में लगा था। मिडिल-ईस्ट में आतंकवाद को बढावा दिया। 

- ईरान को कभी भी परमाणु ताकत नहीं बनने देंगे। 

- हम शांति के पक्ष में हैं। ईरान के नेताओं और वहां के लोगों से कहना चाहता हूं कि आपका भविष्य शानदार हो जिसके आप हकदार हैं। 

- अमेरिकी गैस और तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। हम ईरान पर निर्भर नहीं हैं। 

- हमने ईरान को एक मौका दिया था परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये लेकिन वे शुक्रिया कहने की वजाय हमारी मौत के ही नारे लगाते रहे। 

अमेरिका ईरानी जनरल सुलेमानी को आतंकी मानता है लेकिन सुलेमानी ईरान के लिये हीरो था। उसकी मौत की खबर के बाद पूरे ईरान के लोग गम में सड़कों पर उतर आये। ईरान के लोगों और विशेषज्ञों का कहना है कि सुलेमानी आतंकी समर्थक नहीं था। उसने तो आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन को जड़ से उखाने में अहभ भूमिका अदा की। 

तीसरे विश्व युद्ध के हालात सिर्फ बने थे 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान : 

बहरहाल तीसरे युद्ध की संभवानाएं सिर्फ चर्चा में थी। तीसरा युद्ध तभी संभव होता जब ईरान के शुभ चिंतक रूस और चीन सामरिक तौर पर खड़े होते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आगे की संभावनाओं के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। इसलिये अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फ्रांस, ब्रिटेन के साथ रूस और चीन से भी आग्रह किया कि वे उनके साथ आये। 

प्रथम विश्व युद्ध (28 जुलाई 1914-11 नवंबर 1918) और दूसरे विश्व युद्ध (1 सितंबर 1939-2 सितंबर 1945) के बाद तीसरे विश्व युद्ध की संभवानाएं सिर्फ बनी थी साल 1971 में, जब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध ( 3 दिसंबर 1971-16 दिसंबर 1971) हुआ। इस दौरान अमेरिका-ब्रिटेन समेत पूरा नाटो देश पाकिस्तान के समर्थन उतर आया था सामरिक स्तर पर। पाकिस्तान को आधुनिक हथियार देने के बाद खुद अमेरिका-ब्रिटेन समेत नाटो देश पाकिस्तान के पक्ष में और भारत पर हमला करने के लिये अपने सैनिक, ताकतवर फाइटर प्लेन और सातवां बेडे़ जैसे आधुनिक समुद्री जहाज रवान कर दिये। इसके बाद रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने ऐलान किया कि भारत पर हमले का अर्थ रूस पर हमला है। और कहा कि  भारत के समर्थन व अमेरिकी लड़ाकू जहाजों का सामना करने के लिये रूस की जहाज और सैनिक तैयार हैं और रवाना हो चुके हैं। इसके बाद अमेरिका ने अपने कदम पीछे कर लिये और भारत की शानदार जीत हुई। यदि अमेरिका पीछे नहीं हटता तो तीसरा विश्व युद्ध तय था।