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न्यायपालिका में आरक्षण और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव के साथ न्याय करने की मांग जोर पकड़ने लगी है। इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि लालू यादव के खिलाफ जिस प्रकार से केस बनाये गये और सजा दी गई है, यह पुनर्विचार का विषय है। इसी तरह के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा को बरी किया गया। खुद जगन्नाथ मिश्रा कह चुके हैं कि लालू यादव को राजनीति कारणों से सजा दी गई है।
इसी कड़ी में लोग यह कहने लगे हैं कि अपवाद छोड़ दें तो न्यायपालिका में पिछड़े-दलित-आदिवासी समुदाय से जुड़े लोगों को जज क्यों नहीं बनाया जाता? जिस प्रकार से सिविल सेवा के लिये परीक्षाएं होती है उसी प्रकार न्यायाधीशों के लिये परीक्षाएं क्यों नहीं होती?
सोशल मीडिया में वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने इसको लेकर सवाल उठाये हैं। उनके द्धारा उठाये गये सवाल लगातार ट्रैंड हो रहे हैं। इसका अर्थ है कि उनकी बातों से लोग सहमती जता रहे हैं। एक नजर उनके कुछ ट्वीट पर -
- जब लालू यादव की सजा पूरी हो चुकी थी, और हाई कोर्ट से रिहाई का आदेश हो गया, तब मोदी के निर्देश पर CBI सुप्रीम कोर्ट गई. जज अरुण मिश्रा ने फैसला दिया कि हर जिले से निकासी अलग केस है. जबकि संविधान 20(2) कहता है कि एक अपराध के लिए दो बार सजा नहीं हो सकती.
- न्यायपालिका क्रीमी लेयर के नाम पर SC-ST आरक्षण और संविधान पर हथौड़ा चलाने की तैयारी में है. जब SC-ST के सारे पद भरे ही नहीं हैं तो क्रीम लेयर लगाने का मतलब है ढेर सारी पदों को खाली रखकर उन्हें सवर्णों से भर देना.
- जो जज SC, ST,OBC के जज नहीं बनने दे रहे हैं. वे SC, ST, OBC के संवैधानिक हक के पक्ष में फैसला कैसे दे पाएंगे?
ये मुद्दे #Reservation_in_Judiciary के साथ चलाये जा रहे हैं जो टॉप लेवल पर ट्रैंड कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय उच्च न्यायपालिका में न सिर्फ SC, ST, OBC,बल्कि महिलाओं के प्रति भी पक्षपात पूर्ण हैं। महिला जजों की हिस्सेदारी भी न के बराबर है। वहीं ट्विटर पर लगातार लिखने वाले रोशन लाल मीणा ने ट्वीट किया है कि " समय की मांग है। उच्च न्यायपालिका में विविधता के लिए IAS की तरह जजों के लिए भी एक्जाम हो और उसमें आरक्षण चाहे नहीं हो बशर्ते निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से चयन प्रक्रिया कार्य करे।"