राजेश कुमार
महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी गठबंधन को बहुमत मिले हुए दूसरा सप्ताह पूरे होने को है लेकिन अभी तक सरकार का गठन नहीं हो सका है। बीजेपी ने साफ कर दिया है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस हीं होंगे वहीं शिवसेना ने भी साफ कर दिया है कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ जो बातचीत हुई थी वहीं लागू होगा 50-50 यानी ढाई साल मुख्यमंत्री बीजेपी का और ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री। इसे सुलझाने के लिये मुख्यमंत्री फडणवीस 5 अक्टूबर को पार्टी नेता अमित शाह और वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी से मिले दिल्ली में। लेकिन कोई रास्ता निकलता नहीं दिख रहा है। वहीं सत्ता पक्ष के आपसी संघंर्ष को देखते हुए दोनो महत्वपूर्ण विपक्ष पार्टियां इस पर नजर बनाये हुए है। इसी कड़ी में एनसीपी नेता शरद पवार ने आज कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की।
एनसीपी लीडर पवार ने कहा कि उनके पास सरकार बनाने के आंकड़े नहीं है। शिवसेना की ओर कोई न कोई प्रपोजल आया है और न ही शिवसेना लीडर उद्धव ठाकरे से कोई बातचीत हुई है। इस बीच शिवसेना लीडर संजय राउत और रामदास कदम ने मुंबई में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की। एक तरह से देश का सबसे विकसित राज्य महाराष्ट्र राजनीति का अखाड़ा बन चुका है। उत्तर प्रदेश के बाद दूसरा सबसे बड़ा राजनीतिक प्रदेश है महाराष्ट्र। एक नजर प्रमुख राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं की स्थितियों पर :बीजेपी : यह सत्य है कि बीजेपी आज की तारीख में सबसे शक्तिशाली और बड़ी पार्टी है लेकिन इस समय महाराष्ट्र बीजेपी को एक साथ दो मोर्चों का सामना का करना पड़ रहा है। एक सहयोगी दल शिवसेना के साथ और दूसरा पार्टी के अंदर ही अंदरूनी विवादों पर। बीजेपी ने साफ कर दिया है कि उनकी ओर से मुख्यमंत्री पद के लिये पार्टी का उम्मीदवार देवेंद्र फडणवीस हीं होंगे। इसलिये उन्हें विधायक दल का नेता चुन लिया गया है और सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी गई है। इसमें कोई दो राय नहीं देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले लें लेकिन सवाल उठता है कि जबतक शिवसेना साथ नहीं आयेगी तो बहुमत कैसे मिलेगा? इस बीच मीडिया में यह भी खबर तैरती रही कि मुख्यमंत्री पद और गृहमंत्री पद छोड़ कर बाकी के मंत्रालय बीजेपी शिवसेना को देने को तैयार हैं। यहां तक कि वित्त मंत्रालय और राजस्व मंत्रालय भी।
एक तो शिवसेना मुख्यमंत्री पद से कम पर बात मानेगी या नहीं यह अभी तक साफ नहीं हुआ है वहीं राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि यदि बीजेपी कोटे के वित्त मंत्रालय और राजस्व मंत्रालय शिवसेना को दिया जाता है तो बीजेपी में तीव्र विवाद उत्पन्न जायेगा। क्योंकि बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुधीर मुनगंटीवार वित्त मंत्री हैं वहीं चंद्रकांत पाटिल राजस्व मंत्री होने के साथ साथ प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष भी हैं। ये दोनो ही कदावर नेता हैं। बीजेपी के बडे प्रदेश दिग्गज एकनाथ खडसे, विनोद तावडे और पंकजा मुंडे इस समय मुख्यधारा से बाहर हैं। बताया जाता है कि वे नाराज भी हैं। इस बीच खबर है कि चंद्रकांत पाटिल ने गृहमंत्रालय की इच्छा जता दी है। और देवेंद्र फडणवीस कभी भी गृहमंत्रालय नहीं छोड़ना चाहेंगे क्योंकि इससे उनकी पकड़ी ही ढीली पड जायेगी। इस बीच मुख्यमंत्री फडणवीस और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बीच हुई मुलाकात का कोई ठोस परिणाम निकलता नहीं दिख रहा है।
शिवसेना : शिवसेना की स्थापना 19 जून 1966 को हुई थी और इसके संस्थापक अध्यक्ष थे (दिवंगत) बाला साहेब ठाकरे। अब इस पार्टी का कमान पूरी तरह से इनके पुत्र उद्धव ठाकरे के हाथ में है और स्थापना के लगभग 52 साल बाद इस परिवार से कोई चुनावी मैदान में उतरा और जीत हासिल की, वे हैं उद्धव ठाकरे के पुत्र और युवसेना के अध्यक्ष आदित्य ठाकरे। आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की मांग तेजी से उठी और पोस्टर भी लगाये गये। लेकिन शिवसेना ने यह सारे कयास को दरकिनार करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे को विधायक दल का नेता चुन लिया। अब शिवसेना पर परिवारावद के जो आरोप लगाये जा रहे थे वे नहीं लगा पायेंगे। इस उद्धव का मास्टर स्ट्रोक कहा जा रहा है। शिवसेना लीडर संजय राउत ने कहा कि शिवसेना बीजेपी से भी पुरानी पार्टी है। बीजेपी की स्थापना 1980 में हुई। बहरहाल शिवसेना 50-50 की मांग पर अड़ी हुई है। पार्टी नेता का कहना है कि लोकसभा चुनाव से पूर्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से साफ साफ बातचीत हुई थी कि महाराष्ट्र में सत्ता का बंटवारा होगा और मुख्यमंत्री पद ढाई-ढाई साल के लिये होगा। लेकिन बीजेपी लीडर व मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई थी लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने इस बात को इंकार नहीं किया है। शिवसेना लीडर राउत ने राज्यपाल से मुलाक़ात के दौरान कहा कि राज्य की राजनीतिक पर चर्चा हुई। सरकार नहीं बन पा रही है, इसके लिए हम ज़िम्मेदार नहीं हैं। किसी भी सरकार के बनने में शिवसेना रोड़ा नहीं डाल रही है। शिवसेना और बीजेपी नीति गत तौर पर सबसे करीब हैं। दोनो ही पार्टियां साल 1986 से मिलकर चुनाव लड़ते आ रहे हैं।
कांग्रेस व एनसीपी : दोनो ही पार्टियो ने देखो और इंतजार करो की नीति पर कायम है। इस बीच एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और कांग्रेस कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से बातचीत हुई। बातचीत के बाद एनसीपी नेता पवार ने कहा कि शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे से न कोई बातचीत हुई है और न ही कोई प्रपोजल आया है। मुख्यमंत्री बनने के सवाल को दरकिनार करते हुए उन्होंने कहा कि उनके पास आंकड़े ही नहीं है तो इस बार में सोचने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। साल 2019 के विधान सभा चुनाव में एनसीपी को 54 और कांग्रेस पार्टी को 44 सीटें मिली हैं। कुल मिलाकर 98 सीटें हैं जो कि बहुमत के जादुई आंकड़े से बहुत दूर लेकिन यदि शिवसेना इस ओर आ जाती है या शिवसेना एनसीपी-कांग्रेस से सरकार बनाने के लिये समर्थन मांगती है तो इस गठजोड की सरकार बन जायेगी। यदि एनसीपी-कांग्रेस के साथ शिवसेना के 56 सीटों को जोड दिया जाये तो कुल सीटें 152 तक पहुंच जायेगी। अन्य पार्टियों और निर्दलियों के अलग। यानी जादुई आंकडे़ 145 से अधिक है।
क्या ऐसा संभव है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि अधिक संभावना है कि बीजेपी और शिवसेना ही मिलकर सरकार बनायेगी। इसलिये कांग्रेस और एनसीपी खुलकर सामने नहीं आ रही है। साथ चर्चा है कि कांग्रेस-एनसीपी नीतिगत के तहत बीजेपी को समर्थन नहीं दे सकती लेकिन शिवसेना को दे सकती है। इसके पूर्व के इतिहास भी हैं। क्योंकि कहा जाता है कि महाराष्ट्र में वामपंथ के को कमजरो करने के लिये कांग्रेस ने शिवेसना का साथ दिया था और वहीं शिवसेना भी राष्ट्रपति चुनाव में गठबंधन लाइन से हटकर कांग्रेस उम्मीद प्रणव मुखर्जी और प्रतिभा पाटिल को समर्थन दे चुकी है।
साल 2019 के महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में बीजेपी 105 सीटें जीतने में सफल रही वहीं शिवसेना के खाते में 56 सीटें हैं। 288 सीटों वाली विधान सभा में बहुमत के लिये 145 विधायकों की जरूरत है जो कि बीजेपी और शिवसेना आसानी से जादुई आंकड़े को पार कर जाती है। दोनो की सीटों को मिला दें तो यह आंकड़ा 161 तक पहुंच जाता है। इसके अलावा अन्य निर्दलियों के समर्थन अलग हैं। लेकिन मुख्यमंत्री पद को लेकर मामला अटक गया है। महाराष्ट्र विधान सभा का वर्तमान कार्यकाल 8 नवंबर को पूरा हो जायेगा। इससे पहले सरकार के गठन का होना जरूरी है।
लेखक - राजेश कुमार ( Rajesh Kumar), संपादक ग्लोबल ख़बर globalkhabar.com