झारखंड में रघुबर और हेमंत के बीच चुनावी घमासान। दिसंबर में चुनाव।

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झारखंड में रघुबर और हेमंत के बीच चुनावी घमासान। दिसंबर में चुनाव।

- राजेश कुमार, टाइम्स ख़बर timeskhabar.com

झारखंड विधान सभा का चुनाव का ऐलान भले ही न हुआ हो लेकिन यहां की राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गई है। दिसंबर में चुनाव होने हैं। 81 सीटों वाली विधान सभा में मुख्य मुकाबला बीजेपी गठबंधन और झामुमो गठबंधन के बीच है। यदि बीजेपी की जीत होती है तो मुख्यमंत्री रघुबर दास का एक बार फिर मुख्यमंत्री बनना तय है। लेकिन यदि झामुमो गठबंधन की जीत होती है तो पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन हीं होंगे।     

यदि बीते चुनावी रिकॉर्ड को देखें तो इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी का पलड़ा भारी है। रघुबर दास और हेमंत सोरेन दोनो के हीं  रैलियों में बड़ी संख्य में लोग जुट रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांटे की टक्कर हो सकती है। दोनो ही नेताओं के अपने अपने दावे हैं। दोनो हीं जमीन से जुड़े लीडर हैं।    

साल 2014 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी।  बीजेपी जहां  37 सीटें जीतने में सफल रही वहीं बीजेपी की सहयोगी पार्टी आजसू को 5 सीटें मिली। इनके अलावा विपक्ष में झामुमो 19, कांग्रेस 6, झाविमो 8, सीपीआईएमएल 1, बीएसपी 1, जय भारत समानता पार्टी 1, नवजवान संघर्ष मोर्चा 1, झारखंड पार्टी 1 और एमसीसी 1 सीट मिली। इससे पहले साल 2014 के

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 14 लोकसभा सीटों में से 12 ( गोड्डा, चतरा, कोडरमा, गिरिडीह, धनबाद, रांची, जमशेदपुर, हजारीबाग, सिंहभूम(एसटी), खूंटी(एसटी), लोहरदगा(एसटी), पलामू(एससी) सीटों पर जीत हासिल की थी। और दो सीटों (दुमका (एसटी) और राजमहल (एसटी)) पर झामुमो ने जीत हासिल की थी। उसी प्रकार साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी गठबंधन 14 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की। 11 में बीजेपी और 1 सीट ( गिरिडीह) पर सहयोगी पार्टी आजसू। अन्य दो सीटों में से एक पर झामुमो(राजमहल) और एक पर कांग्रेस पार्टी (सिंहभूम) ने जीत हासिल की है। यदि साल 2014 के लोकसभा और विधान सभा चुनाव तथा साल 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम को देखे तो बीजेपी का पलड़ा बहुत भारी लगता है लेकिन राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि जितना आसान दिखता है उतना आसान है नहीं बीजेपी के लिये। क्योंकि हेमंत सोरेन ने ऐलान किया कि यदि उनकी सरकार बनती है तो पिछड़े वर्ग को उनका हक दिया जायेगा। यानी 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। वर्तमान में सिर्फ 14  प्रतिशत ही आरक्षण दिया जा रहा है। 

 

बीजेपी और सहयोगी दलें  - 

मुख्यमंत्री रघुबर दास के नेतृत्व में बीजेपी इस बार चुनावी मैदान में उतरेगी। वे राज्य के पहले मुख्यमंत्री होंगे जो पांच साल का कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं।  28 दिसंबर 2014 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की कुर्सी संभाली थी। राज्य में अगड़े वर्ग की जनसंख्या 10 प्रतिशत के अंदर ही है। और मौटे तौर पर इनका अधिकांश वोट बीजेपी के साथ है। झारखंड में यदि जाति के हिसाब से वोट बैंक देखें आदिवासी-दलित समुदाय  के अलावा सबसे बड़ा वोट बैंक पिछड़ों में कुर्मी, वैश्य, चंद्रवंशी और यादव समाज का है। इस वोट बैंक पर एक तरह से बीजेपी ने अपनी पकड़ बना रखी है। मुख्यमंत्री रघुबर दास खुद ही वैश्य समाज से हैं। स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी, चंद्रवंशी समाज के सबसे बड़े लीडर हैं। और बीजेपी की सहयोगी पार्टी आजसू के नेता सुदेश महतो की पकड़ महतो समाज पर है। साथ ही इस बार लोक जनशक्ति पार्टी भी विधान सभा चुनाव में सक्रिय भूमिका अदा करने की तैयारी में है। झारखंड में पार्टी के नेता व राष्ट्रीय महसचिव राज कुमार राज लगातार जन अभियान चला रहे हैं। पार्टी को उम्मीद है कि दलित समाज का वोट उनकी ओर आयेगा। साथ ही राजकुमार राज की वजह से पिछड़ा वर्ग का वोट भी उनके साथ होगा। राजकुमार राज  चंद्रवंशी समाज से हैं।  स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी का दावा है कि सामाजिक अंक गणित महत्वपूर्ण है लेकिन साथ ही साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री रघुबर दास के नेतृत्व में जो विकास के काम हुए हैं वे भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। झारखंड वासी मुख्यमंत्री के प्रति उत्साहित हैं। उन्होंने दावा किया मुख्यमंत्री रघुबर दास के नेतृत्व में ही अगली सरकार बनेगी। बहरहाल झारखंड की राजनीति में  मौजूदा केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की भूमिका काफी महत्वपूर्ण होगी। 

 

झामुमो और सहयोगी दलें - 

झामुमो नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार जनअभियान में जुटे हुए हैं। सभाओं मे उमड़ती भीड से वे काफी प्रसन्न भी हैं। विपक्ष के एकमात्र लीडर हैं जिनपर पूरे चुनाव का केंद्रीय दारोमदार है। लेकिन हेमंत के लिये यह लड़ाई आसान नहीं है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। उसी प्रकार झामुमो नेतृत्व में लड रहे विपक्ष के भी दोनो पहलुओं को देखना होगा। प्रथम पहलू में कहा जा सकता है कि झामुमो को छोड़ अन्य सहयोगी दलें उतनी मजबूत नहीं दिख रही है। नेताओं की कमी नहीं लेकिन ऐसे लीडर्स की कमी दिख रही है जो वोट दिला सके। झामुमो को छोड़ अन्य किसी भी पार्टी की स्थिति नहीं है जो एकतरफा मजबूती देने में सक्षम हो। कांग्रेस और राजद जैसी पार्टियां भी बिखर चुकी है। वहीं सिक्के के दूसरे पहलू में यह कहा जा रहा है कि हेमंत के दो बड़े वादे राज्य की राजनीति में बदलाव ला सकता है। पहला ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण और दूसरा निजी सेक्टरों में झारखंडवासी को प्राथमिकता। 

मॉब-लिंचिंग की वजह से मुस्लिम समुदाय का बड़ा वोट झामुमो गठबंधन के साथ ही रहेगा। वहीं हेमंत और झाविमो लीडर बाबू लाल मरांडी आदिवासी वोट में बिखराव को रोकने की क्षमता है। समाजसेवी विजय रवानी का दावा है कि दुमका लोकसभा चुनाव में गुरूजी के हार के बाद जो लोग यह अनुमान लगा रहे हैं कि झामुमो कमजोर पड़ गया है। वास्तव में ऐसा नहीं है। हेमंत एक मजबूत लीडर है वे बूंद-बूंद इकठ्ठा कर अपनी ताकत को समेट रहे हैं। उन्हें सिर्फ आदिवासी लीडर के रूप में प्रस्तुत करना बिल्कुल गलत है। वे हर समाज को साथ लेकर चलते हैं। पीड़ितों के साथ वे हमेशा खड़े रहते। लेकिन चुनाव और वोट बैंक की लिहाज से झामुमो को कुर्मी, वैश्य और चंद्रवंशी समाज के वोट बैंक की ओर भी ध्यान देना होगा। क्योंकि पिछड़ों में इन तीनों ही समाज की जनसंख्या 10-10 प्रतिशत से अधिक है।    

बहरहाल मुख्यमंत्री रघुबर दास को विश्वास है कि उनके नेतृत्व में झारखंड का चहुमुंखी विकास हुआ है वहीं विपक्ष लीडर हेमंत सोरेन उनके दावे को खारिज करते हैं। अब देखना है कि आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीतिक किस करवट बैठती है।  

(Rajesh Kumar, Editor, timeskhabar.com)