सॉफ्ट लैंडिंग की असफलता के बावजूद चंद्रयान-2 की बड़ी सफलता। चंद्रमा के ऑर्बिट में स्थापित ऑर्बिटर ने भटके लैंडर विक्रम को ढूंड निकाला : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार

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सॉफ्ट लैंडिंग की असफलता के बावजूद चंद्रयान-2 की बड़ी सफलता। चंद्रमा के ऑर्बिट में स्थापित ऑर्बिटर ने भटके लैंडर विक्रम को ढूंड निकाला : वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार

- राजेश कुमार

मिशन चंद्रयान-2 को लेकर पूरा देश उत्सुक है। सॉफ्ट लैंडिंग में असफल होने के बावजूद पूरे देश को अपने वैज्ञानिकों पर गर्व है। इतना नहीं पूरा विश्व भारत की अंतरिक्ष क्षमता की सराहना कर रहा है और यहां तक कि नासा भी इसरो के साथ कई प्रोजेक्ट में काम करने की इच्छा जताया है। रूस तो भारत के साथ हीं है। अगला मिशन चांद पर इंसान को भेजने की है इसको लेकर रूस ने मदद का ऐलान भी किया है। बहरहाल इस समय लैंडर से संपंर्क करने की कोशिश जारी है। हालांकि माना जा रहा है कि यह कठिन है क्योंकि दक्षिणी चंद्रमा के मौसम और गुरूत्वाकर्षण के बारे में किसी को भी कुछ नहीं पता। और यहां तक कहा जा रहा है कि हार्ड सॉफ्ट लैंडिंग की वजाय हार्ड लैंडिंग होने की वजह से कुछ समस्याएं आ गई हो लैंडर विक्रम में। चंद्रमा के ऑर्बिट में स्थापित ऑर्बिटर से चंद्रमा की तस्वीरं मिलनी शुरू हो गई। लेकिन यहां पर सबसे अधिक चर्चा हो रही है सॉफ्ट लैंडिंग और हार्ड लैंडिंग की। आईये जानते हैं कि ये है क्या - सॉफ्ट लैंडिंग : इसके तहत स्पेसक्राफ्ट धीमी या नियंत्रित गति या नॉर्मल गति से सतह पर उतरता है और हार्ड लैंडिंग का अर्थ है जब स्पेसक्राफ्ट निर्धारित स्पीड से तेज गति से लैंड करता है। 

- 6-7 सितंबर (2019) की रात संपंर्क टूटने के बाद लैंडर विक्रम का पता नहीं चल पा रहा था बाद में ऑर्बिटर ने लैंडर विक्रम का पता लगाया।

- चंद्रमा स्थित विक्रम लैंडर से हमारे वैज्ञानिक संपंर्क करने की कोशिश कर रहे हैं। 

- लैंडर विक्रम और इसरों सेंटर के संपंर्क फ्रिक्वेंसी के माध्यम से जुड़े हैं। इसी के सहरे अलग अलग तरह से कमांडे भेजे जा रहे हैं ताकि लैंडिर विक्रम से कोई सिग्नल मिले। 

- बयालालु गांव (कर्नाटक) में 32 मीटर का ऐंटिना लगा हुआ है जिसके माध्यम से कोशिश हो रही है।  

- मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लैंडर विक्रम अपने तीन ट्रांसपोंडर्स और अन्य यंत्र के माध्यम से सिग्नल दे सकता है। 

- लैंडर को अपने बॉडी पर लगे सोलर पैनल से ऊर्जा लेनी है। बैट्री भी लगी है ऊर्जा के लिये। लेकिन किसी को यह नहीं पता है कि वहां सूर्य की रोशनी की क्या स्थिति है।

- लैंडर विक्रम को सिर्फ एक लुनार डे (14 दिन) के लिये ही सीधी रोशनी मिल सकेगी सू्र्य की। इसकेबाद लंबी अंधेरी रात का सामना करना है। लेकिन विक्रम किस स्थिति में है पता नहीं चल पाया है। लैंडिंग के समय उसमें कोई खराबी आई है या नहीं पता नहीं। 

लैंडर विक्रम की जानकारी हमें अपने ऑर्बिटर से मिल रही है। चंद्रयान-2 के साथ गये ऑर्बिटर सफलता पूर्वक अपने कक्षा में स्थापित हो चुका है। इसी के सहारे हमें मालूम चला कि चंद्रमा पर कहां लैंडर विक्रम है। बताया जाता है कि हमारे वैज्ञानिक जिस लोकेशन में लैंडर को उतरना चाहते थे वहीं पास में लैंडर विक्रम है। ऑर्बिटर के अपने कक्षा में स्थापित होने से साफ है कि मिशन चंद्रयान-2 असफल नहीं है सिर्फ हम सॉफ्टलैंडिंग में असफल रहे। इसरो प्रमुख के सिवन ने कहा कि चंद्रमा का चक्कर लगा रहे ऑर्बिटर का लाइफ साढे सात साल तक हो सकता है। 

लैंडर से भले ही अभी तक संपंर्क नहीं हो सका लेकिन ऑर्बिटर की सफलता से हमें चंद्रमा के रहस्यों को समझने में बड़ी मदद मिलेगी। वहां पानी और खनिजों की स्थिति क्या है? इतना हीं नहीं इस ऑर्बिटर से हाई रिजॉन्यूशन की तस्वीरें मिलेगी। और चंद्रमा को लेकर एक मेप (नक्शा) बनाने में भी मदद मिलेगी जो कि आगे कि मिशन में काफी काम आयेगा। 

 

6-7 सितंबर की रात और ऐतिहासिक होता यदि चंद्रमा पर लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग होती लेकिन अज्ञात कारणों से ऐसा नहीं हो सका। जब चंद्रमा की सतह से लैंडर विक्रम की दूरी सिर्फ 2.1 किलोमीटर बची थी तभी अचनाक संपंर्क टूट गया। प्रक्षेपण के बाद पहला फेज ऑर्बिटर चांद की ऑर्बिट में स्थापित हो गया और रोवर प्रज्ञान के साथ लैंडर विक्रम को सॉफ्ट लैंडिंग करना था लेकिन नहीं हो सका। इसरो प्रमुख सिवन का कहना है कि यदि एंटिना की दिशा सही रहा तो काम आसान होगा। वैज्ञानकों का कहना है कि जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में खोए ऑर्बिट को ढूंढने का अनुभव है लेकिन चंद्रमा पर ऑपरेशन फ्लेक्सिबिलिटी नहीं यानी विक्रम चंद्रमा की सतह पर पड़ा हुआ है उसे हिला नहीं सकते। 

  चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने में सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन को सफलता मिली है। यदि भारत भी सफल होता तो चौथा देश बन जाता साथ हीं चंद्रमा के दक्षिणी ध्रूव पर लैंडिंग कराने वाला पहला देश बन जाता। अमेरिका, रूस और चीन में से किसी ने भी सॉफ्ट लैंडिंग चंद्रमा के दक्षिणी ध्रूव पर नहीं किया है। इसलिये यह भारत के लिये बड़ी चुनौती दी। असफल होने के बावजूद पूरी दुनिया भारत की इस कोशिश की प्रशंसा कर रहा है। अमेरिका, रूस और चीन भी कई बार असफल होने के बाद ही सफलता हासिल की। मीडिया में उपलब्ध डेटा के मुताबिक 1958 से कुल 109 चंद्रमा मिशन संचालित किए गए, जिसमें 61 सफल रहे। करीब 46 मिशन चंद्रमा की सतह पर उतरने से जुड़े हुए थे जिनमें रोवर की ‘लैंडिंग' और ‘सैंपल रिटर्न' भी शामिल थे। इनमें से 21 सफल रहे जबकि दो को आंशिक रूप से सफलता मिली। सैंपल रिटर्न उन मिशनों को कहा जाता है जिनमें नमूनों को एकत्रित करना और धरती पर वापस भेजना शामिल है। पहला सफल सैंपल रिटर्न मिशन अमेरिका का ‘अपोलो 12' था जो नवंबर 1969 में शुरू किया गया था। वर्ष 1958 से 1979 तक केवल अमेरिका और पूर्व सोवियत संघ ने ही चंद्र मिशन शुरू किए। इन 21 वर्षों में दोनों देशों ने 90 अभियान शुरू किए. इसके बाद जपान, यूरोपीय संघ, चीन, भारत और इस्राइल ने भी इस क्षेत्र में कदम रखा। रूस द्वारा जनवरी 1966 में शुरू किए गए लूना 9 मिशन ने पहली बार चंद्रमा की सतह को छुआ और इसके साथ ही पहली बार चंद्रमा की सतह से तस्वीर मिलीं।

बहरहाल नासा ने भारत के चंद्रयान मिशन-2 की काफी तरीफ कि और  7 सितंबर को हीं ‘ट्वीट' किया कि‘अंतरिक्ष जटिल है. हम चंद्रयान 2 मिशन के तहत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की इसरो की कोशिश की सराहना करते हैं. आपने अपनी यात्रा से हमें प्रेरित किया है और हम हमारी सौर प्रणाली पर मिलकर खोज करने के भविष्य के अवसरों को लेकर उत्साहित हैं।' चीन के लोगों ने भी इसरो वैज्ञानिकों की तारीफ की और कहा कि वे हिम्मत नहीं हारें और अपनी कोशिश जारी रखें। सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने भी भारत के वैज्ञानिकों की प्रशंसा की और बेहतरीन प्रयास बताया। 

भारत इससे से भी आगे की सोच रहा है। योजना पर कार्य जारी है। नील आर्मस्ट्रांग पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने चंद्रमा की धरती पर पहला कदम रखा। अपोलो-11 का यह ऐतिहासिक मिशन था। अब भारत भी इसी कोशिश में है और अभी हाल ही में रूस की यात्रा पर गये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व में दोनो देशों के बीच यह समझौता हुआ कि इस मिशन में रूस भारत को मदद देगा।