भीमा-कोरेगांव : लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है असहमति - सुप्रीम कोर्ट।

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भीमा-कोरेगांव : लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है असहमति - सुप्रीम कोर्ट।

नई दिल्ली(टाइम्स ख़बर)। महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव प्रकरण में पांच बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने के मामले में महाराष्ट्र पुलिस को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यों वाली बेंच ने हिरासत में लिये गये सामाजिक कार्यकर्ताओं को कस्टडी में रखने की वजाय  घर पर ही नजरबंद रखने के आदेश दिये हैं अगली सुनवाई तक। अब इस मामले की सुनवाई 6 सितंबर को होगी। साथ ही अदालत ने इस मामले में केंद्र सरकार व महाराष्ट्र पुलिस को नोटिस जारी किया 

इस मामले में सुनवाई करन वाली तीन जजों की बेंच में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस ए एम खनविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचुड़ हैं। जस्टिस चंद्रचुड़ ने कहा कि पुलिस की इस तरह की कार्रवाई से असहमति जताने की प्रक्रिया प्रभावित होती है। असहमति तो लोकतंत्र के लिये सेफ्टी वॉल्व है। अगर आप इन सेफ्टी वॉल्व को नहीं रहने देंगे तो प्रेशर कुकर फट जायेगा।  तीन जजो की बेंच ने पूछा कि जांच के नौ महीने बाद आप उन्हें गिरफ्तार कर रहे हैं। 

पुलिस ने जिन्हें गिरफ्तार किया था वे हैं जानीमानी वकील सुधा भारद्धाज, वकील व मानवाधिकार कार्यकर्ता अरूण फरेरा, लेक्चरर वेरनॉन गोंजाव्लिस, पत्रकार गौतम नवलखा और तेलुगु कवि वरवरा राव। इनके गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे व देवकी जैने के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस याचिका में अदालत का ध्यान इस ओर खींचा गया कि जिन्हें गिरफ्तार किया गया है वे सभी काफी पढे-लिखे लोग हैं। उनकी गिरफ्तारी बिना सोचे-समझे की गई है।इनकी बातों के अदालत में अभिषेक मनु सिंघवी ने रखी। इनके पक्ष में 

नवभारत टाइम्स के अनुसार याचिका में इन पांच लोगों के खिलाफ आरोपों की निष्पक्ष जांच की मांग भी की गई। इन पांचों पर अनलॉफुल ऐक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट और आईपीसी की कई धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं। इन कार्यकर्ताओं के पक्ष में सीनियर वकीलों राजू रामचंद्रन, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह और लॉयर प्रशांत भूषण ने दलीलें पेश कीं। धवन ने डर जताया कि इनके बाद अब उनकी बारी है। उन्होंने कहा, 'इन लोगों ने हमारे साथ काम किया है।' सिंघवी ने कहा कि इन लोगों को भीमा कोरेगांव हिंसा के संबंध में अरेस्ट किया गया। उन्होंने कहा कि एफआईआर में इनका नाम नहीं है। 

सिंघवी ने कहा कि उस मौके पर लोगों को जुटाने में दो पूर्व जजों ने योगदान दिया था। सिंघवी न कहा कि इस मामले की जांच नौ महीने से चल रही है। सिंघवी ने कहा, 'हमें नहीं पता कि ये लोग इस महान सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए कितना बड़ा खतरा हैं। इनका कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है। इन्हें इनके घरों से अरेस्ट किया गया है। इसका असहमति जताने की आजादी पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।' 

 अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गिरफ्तारी पर रोक की मांग का विरोध करते हुए कहा, 'उन्हें अच्छा नागरिक तो होना ही चाहिए। ये गिरफ्तारियां बिना सोचे-समझे नहीं की गईं।' उन्होंने कहा कि गिरफ्तार किए गए लोगों का मामला हाई कोर्ट देख रहा है, लिहाजा सुप्रीम कोर्ट को इससे किनारे रहना चाहिए। उन्होंने कहा, 'कोई आरोपी यहां नहीं है। कोई थर्ड पार्टी उनके लिए राहत की मांग नही कर सकती।' कोर्ट ने मेहता की दलील खारिज कर दी और कहा कि जब उनका कहना है कि सरकार 'असहमति को दबा रही है' तो ऐसे में अदालत तकनीकी पहलुओं के चक्कर में नहीं पड़ सकती।